भक्त नरसी ने भी कहा- वैष्णव जन तो मेने कहिये, जो पीड पराई जाने रे।
पर हित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।।
नव पर नारी माता जाणो
सत् पुरुषों ने कहा है- पर स्त्री का मतलब ही है जो आपकी नहीं है। तो जो आपकी नहीं है, उसे आप अपनी क्यों मानते है? क्यों उसके रूप-रंग पर ललचाते हैं? क्यों इसके तन का सौदा करते हो? सोचिए, जैसे आप अन्य स्त्री के प्रति आकर्षक होकर अपनी धर्मपत्नी के साथ धोखा और विश्वासघात कर रहे हैं, उसी प्रकार वह स्त्री भी तो अपने पतिदेव को धोखा देकर आपसे आँखे मिला रही हो। तो यह तो विश्वासघातियों का धोखेबाजों का मिलन नहीं हुआ क्या? राजस्थानी कहावत है- ठग ठगारे पहुणा-धूर्त धूर्त का मेहमान बनता है। यहाँ कहाँ प्रीति है, कहाँ प्रेम है, कहां सुख हैं?
पर स्त्री-गामी पुरुष अपने बुजुर्गो की नजर में कुत्ता समझा जाता है, पत्नी की नजर में वह महापापी है और अपनी सन्तान की नजर में एक नीच पिता है। पर स्त्री का प्रेम क्षणिक है। वह एक ऐसा भयानक आग है, जो परिवार की स्थाई शान्ति को जला देती है। बड़े बड़े सम्राट महाराज और धनी-मानी पर स्त्री की आँखों के जहर से नष्ट ही गए। कई मंत्रियों को बेइज्जत होकर कुर्सी छोड़नी पड़ी। कई अधिकारियों को सेवा से निकाल दिया गया। पर स्त्रीगामी पुरुष चाहे कितना भी बड़ा आदमी हो, वह स्त्री की नजर में कुत्ता, लुटेरा और नीच ही है। उसके मित्र भी उस पर विशवास नहीं करते, घर में आने नहीं देते। कहीं घर पर आ भी गया तो सभी संशकित हो जाते हैं, जैसे कोई जहरीला नाग आ गया हो। एक अनुभवी ने कहा है- पर स्त्री ऐसी फूटी नाव है जो बैठने वालो को मझधार में डुबो देती है। पर स्त्री के कारण रावण जैसे पराक्रमी भी संसार में बदनाम होकर मरा। तो इस भयंकर दुःख से बचने के लिए माताजी ने कहा- नव पर नारी माता जाण।