ज्ञानी सत् पुरुषों ने कहा है- गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। प्राचीन काल में राजकुमार गुरु के आश्रम में शिक्षा लेने जाते थे। गुरु के आश्रम में निवास करते हुए आश्रम में समस्त कार्य करते थे और साथ में विद्याध्ययन करके पारंगत बनते थे। कितने ही शिष्य अपने गुरु से भी ज्ञान में आगे बढ़ जाते थे। फिर भी वे सदैव गुरु की गरिमा को आँच नहीं आने देते थे।
गुरु प्रेरणा देता है, ज्ञान देता है, बुद्धि में वृद्धि करता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का ज्ञान प्रदान करता है।
गुरु ब्रम्हा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात्, पर ब्रम्हा, तस्मै श्री गुरवे नमः।।
गुरु उपदेशक है, गुरु प्रबोधक है, गुरु व्याख्याता है, गुरु की एक अनोखी परंपरा है। गुरु और शिष्य का सम्बन्ध अनोखा है।
धर्म गुरु का समाज में विशिष्ठ स्थान है। ऐसा भी कहा जाता है कि ‘गुरोराज्ञा अविचारणीया’। गुरु के वचन का पालन करना चाहिए। गुरु की बातों में संदेह नहीं करना चाहिए। गुरु के प्रत्येक वचन का पालन करनेवाला ही आर्दश शिष्य होता है। कितनी ही बार शिष्य के मन की बात गुरु जान जाता है। उसे ही सच्चा गुरु कहते हैं। आज गुरु शिष्य के सम्बन्धों में महान परिवर्तन दिखाई देता है। प्राचीन का में शिष्य गुरु के आश्रमों में विद्याध्ययन करने जाते थे। आश्रम में प्रत्येक नियमों का पालन करते थे और गुरु का आदर-सत्कार करते थे। गुरु को गौरव प्राप्त होता था। आज सब इसके विपरीत है।
गुरु बल का प्रतिक है, ज्ञान का प्रतिक है, गुरु प्रकाश है और गुरु ही जीवन का उद्धारक तथा प्रेरक है।
मूंगा वाचा पामता, पंगु गिरी चढ़ी जाय
गुरु कृपा बल ओर है, अंध देखता थाय
जंगल मां मंगल बने, पापी बने पवित्र
ऐ अचरज नजरे तेरे, मरण बने है मित्र
कुम्भे बाध्यु जल रहे, जल बिना कुम्भ न होय
ज्ञाने बाध्यु मन रहे, गुरुबिन ज्ञान न होय
भव भ्रमण संसार दुःख ताका वार न पार
निर्लोभी सद् गुरु बिना कवण उतारे पार
क्षणों में, उदासीनता में, किसी भी समय अचानक संयोग से मिल जाते हैं। काया स्वरूप में गुरु की प्राप्ति ही शिष्य की सच्ची परीक्षा है। श्री आई माताजी ने कहा -सात गुरु की आज्ञा पालो। सद् गुरु धर्म के जान को करना।