व्यावहारिक जगत में श्री आई माताजी को साथ रखिये

व्यावहारिक जगत में श्री आई माताजी को साथ रखिये

श्री आई माताजी में विश्वास की कमी के कारण, दूषित वातावरण का असर पडने के कारण एवं पूर्व के संस्कारों के कारण बहुत बार हम लोगों के मन में परिवार को लेकर चिन्ताएँ आ सकती हैं। उस समय जगत का महत्व दैवी शक्ति की अपेक्षा अधिक हो जाता है। वस्तुतः जागतिक चिन्ता तभी आती, जब दैवी शक्ति गौण हो जाती हैं और जगत् प्रधान। इसलिये खूब सावधान रहना चाहिये कि एक क्षण के लिये भी श्री आई माताजी गौण नहीं होने पायें। आप विश्वास रक्खें कि जैसे-जैसे माताजी को मुख्य उद्देश्य मानते जायेंगे वैसे-वैसे यह चिन्ता हटती जायगी। एक बात और है—साधना मार्ग में खासकर श्री आई माताजी-शरणागति में किसी भी जागतिक चिन्ता को मन में स्थान ही नहीं देना चाहिये। यदि हम माताजी के हो गये, नहीं, सदैव ही माताजी के थे, हैं और रहेंगे तो हमसे सम्बद्ध यावन्मात्र पदार्थ भी माताजी के ही हैं। क्या माताजी को अपनी चीजों का ध्यान नहीं है ? क्या हम उनसे ज्यादा चतुर एवं बुद्धिमान हैं, जो उनकी अपेक्षा भी अधिक अच्छी तरह किसी चीज की संभाल करेंगे ? वस्तुतः सच्ची बात तो यह है कि जो दयामय माताजी की ओर सँभाल है, वही सच्ची सँभाल है। हम तो मूर्खतावश सँभालने के लिये जाकर बिगाड़ ही सकते हैं, किंतु माताजी से कभी भूल होती नहीं। इसलिये जब कभी स्त्री, पुत्र,परिवार, धन, मान, प्रतिष्ठा आदि को लेकर मन चिन्तित होने लगे, उस समय विचार करना चाहिये कि मैं तो माताजी का , ये सब चीजें भी उन्हीं की हैं। सारे जगत की सम्पूर्ण दया इकट्ठी करने पर भी माताजी की दया की एक बूँद के बराबर भी नहीं है। आईं माताजी क्या हमारा अमंगल करेंगे ? कभी नहीं, इसमें ही हमारा मंगल है। हमारा सब कुछ उन्हीं का है, वे अपनी चीज को जैसा रखना चाह रहे हैं वही ठीक है। देखें आई माताजी की भक्ति केवल मानसिक प्रक्रिया ही नहीं है, यदि यह क्रिया रूप में न आयी तो भक्ति में कमी है। यद्यपि आधुनिक जमाने में यह कम देखने को मिलता है, किंतु जितने भी ऊँचे-ऊँचे भक्त हुए हैं,सबने व्यावहारिक जगत में दैवी शक्ति को साथ रखा है। आप देखेगें कि किस प्रकार माताजी के भाडेरु ओ के विश्वासी भक्तों ने अपने आप व्यावहारिक जीवन में आई माताजी की दया का पद-पद पर अनुभव किया
सारांश यह है कि जगत की अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों को लेकर व्यस्त होने की आवश्यकता नहीं है। आई माताजी के प्रत्येक विधान को मंगलमय देखने की चेष्टा करें। यह बात मानने की ही नहीं है, वस्तुतः ऐसी ही बात है।माताजी का भयंकर विधान अनन्त आनन्द से ओत-प्रोत रहता है। अन्त:करण शुद्ध होने पर मनुष्य बिल्कुल इसी प्रकार अनुभव करता है। समय-समय पर आई माताजी की-गाथाओं को पढ़ते रहना चाहिये। वे कथाएँ कल्पना नहीं हैं, वास्तविक हुई घटनाएँ हैं। वे अन्तःकरण को पवित्र करेंगी, उनसे बहुत आत्मबल बढ़ेगा—यह मेरा अपना खास अनुभव है। मुझे इन आई माताजी की गाथाओं के पढ़ने से अत्यधिक लाभ हुआ है।

अन्तिम बात यह है कि किसी भी परिस्थिति में घबराइये नहीं। कृपामय श्री आई माताजी को, आप जितनी कल्पना भी नहीं कर सकते उससे अधिक आपका ध्यान है।

पूर्व संपादक
सीर वी सन्देश पत्रिका
महेंद्र कुमार राठौड़ कापसी जिला धार मध्य प्रदेश

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