राजस्थान:–रानी तहसील मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर जीवंद कलां पंचायत का छोटा सा गांव है- जीवन्द खुर्द

रानी तहसील मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर गुड़ा केसर सिंह, नीपल, बोरडी, और गुड़ा रूपसिंह के बीच जीवंद कलां पंचायत का छोटा सा गांव है- *जीवन्द खुर्द*।
यहां पर छत्तीस कौम के मात्र 70 घर है, जिनमें चारण, मेघवाल, देवासी, सीरवी, कुम्हार, भोमिया राजपूत, दरोगा और वैष्णव है।
*सीरवी समाज के मात्र 11 परिवार है जो एक मात्र चोयल यहां पर बसे हुए हैं।*
जीवंद खुर्द गांव में एक भी परिवार नहीं है, एक ही परिवार के ग्यारह घर बेरा नवोड़ा पर बसे हुए हैं।
यहां पर बडेर पक्का बना हुआ है, लगभग 30 वर्ष पूर्व जति भगा बाबा जी के कर कमलों से पाट की स्थापना की गई थी। अब मंदिर के जीर्णोद्धार की तैयारी चल रही है।
वर्तमान में यहां पर *कोटवाल घीसाराम जी केसाजी चोयल, जमादारी श्री मांगीलाल जी मूलाजी चोयल और पुजारी श्री मोटाराम जी इंदाजी चोयल है।*
यहां पर सरकारी नौकरी में एकमात्र *श्री छगनलाल जी पेमाराम जी चोयल केसूली में एलडीसी है*। एक हादसे में सोमेसर रेल्वे स्टेशन पर ट्रेन से उतरते समय पटरी पर गिर जाने से दोनों पैर कट गये पर अपने ऊपर विकलांगता को हावी नहीं होने दिया और होंसले के साथ आप सरकारी सेवा कर रहे हैं। श्री मुकेश जी हकारामजी ने डी फार्मा किया है, बहिन सीता पुत्री हकाराम जी ने भी डी फार्मा किया है, श्री भोलाराम हंसाराम जी ने डी फार्मा किया है तथा श्री सोहन लाल पुत्र खुमाराम जी ने डी फार्मा किया है ।
राजनीति में यहां से किसी ने अभी तक खाता ही नहीं खोला है।
व्यवसाय में यहां से मुंबई और पुणे दो नगरों में सीरवी अपना व्यापार व्यवसाय चला रहे हैं। यहां से *श्री मांगीलाल जी मूलजी चोयल सबसे पहले मुंबई* गए थे।
ग्राम विकास के कार्य में फिलहाल सीरवी समाज का कोई नाम नहीं है।
*जीवंद खुर्द का सीरवी समाज के इतिहास में नाडोल के पीर गुमानसिंह जी (गुमानिंग पीर) के साथ अमर नाम है।*
*जिस समय गुमानसिंह जी नाडोल से बिलाड़ा जा रहे थे उस समय जीवन्द खुर्द के कांकड़ में लक्ष्मी खंडाली गायें चरा रही थी, गुमानसिंह जी से वार्तालाप के साथ दोनों ने अपनी सगाई तय कर ली और बिलाड़ा से लौटने के बाद विवाह का वादा किया*।
*गुमानसिंह जी के देवलोकगमन पर लक्ष्मी खंडाली को जब पता चला तब अपने घर वालों को अपनी सगाई की बात बताई और सती होने की जिद्द की, परिवार ने सहयोग करने की बजाय उसे घर में कैद कर लिया,सती के सत से आप निकले और श्राप दिया कि इस गांव में आपका वंश नहीं रहेगा आज के दिन खंडाला गौत्र नहीं है अब चोयल आकर बसे हुए हैं। ढोली को ढोल थाली बजाने को कहा इन लोगों ने भी बात नहीं मानी वे भी श्रापित हुए एवं वर्तमान में गांव में नामोनिशान नहीं है।आप नाडोल जाकर गुमानसिंह जी के साथ सती हुए जो आज भी सीरवी समाज में इतिहास है*।
जीवन्द खुर्द में घरों की संख्या कम होने से *यहां श्री आई माताजी के धर्म रथ भैल का आगमन नहीं होता है,* यहां के सीरवी बन्धु अपनी सुविधानुसार जीवन्द कलां अथवा गुड़ा रुपसिंह में भैल आगमन पर जाकर जात करवाते हैं।
इस बार भैल के गुड़ा रुपसिंह आगमन पर गुड़ा रुपसिंह से *श्री मानाराम जी मुलेवा* को साथ लेकर बेरा नवोड़ा से यह जानकारी प्राप्त की।
*सीरवी समाज का जीवन्द खुर्द में नाम बनाये रखने पर चोयल परिवार का बहुत बहुत आभार।*
आपके चंहुमुखी विकास और खुशहाली की मां श्री आईजी से कामना करता हूं -दीपाराम काग गुड़िया।

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