मारवाड़ जंक्शन से 2 किमी दूर चिरपटिया मार्ग पर रेवड़िया हेमलियावास कलां, मारवाड़ जंक्शन और नरसिंहपुर के मध्य नगर पालिका मारवाड़ जंक्शन का छोटा सा ग्राम है- *हेमलियावास खुर्द।*
छत्तीस कौम की केवल 100 घर की बस्ती में राजपूत, रावणा राजपूत, सीरवी, गुर्जर, राजपुरोहित, मेघवाल, देवासी, वैष्णव, कुम्हार,गर्ग और सरगरा यहां पर बसते हैं।
हेमलियावास खुर्द में सीरवी समाज के केवल *तीन गौत्र भायल, चोयल और आगलेचा* के 08 घर है। इनमें से मूलाराम जी भायल का परिवार सबसे पुराना बसा हुआ हैं। और ये गांव चौधरी भी है। बाद में चेलावास से एक चोयल परिवार एवं दूसरा चोयल परिवार भगवानपुरा से आकर यहां बसा। यहां आगलेचा परिवार सुरायता से आकर बसा।दो अन्य गौत्र के यहां आकर बसे लेकिन भायलों में से *यहां से ठाकरवास, पड़ासला कलां और प्रतापगढ़ जाकर बस गए।* इस तरह से वर्तमान में भायल परिवार का मात्र एक घर, चोयल परिवार के दो घर और आगलेचा परिवार का यहां पर एक घर है। अब इनकी संख्या बढ़कर चार से मात्र आठ हुई है।
भेराराम, केसाराम, जस्साराम/मूलाराम जी भायल
ओमप्रकाश, अमराराम/धन्नाराम जी चोयल
लक्ष्मण/मांगीलाल जी चोयल
(एक मात्र डोरा बंद)
सोहनलाल/ ढगलाराम जी आगलेचा
योगेश/ पारसमल जी आगलेचा
यहां पर सीरवी समाज के घरों की संख्या नगण्य होने से *श्री आई माता जी की बडेर बनी हुई नहीं है।* यहां पर श्री आई माताजी के धर्म रथ भैल का आगमन भी अब तक कभी नहीं हुआ है। यहां के सीरवी *हेमलियावास कलां आकर अपनी जात जरुर करवाते हैं।* बडेर नहीं होने से यहां पर *कोटवाल जमादारी भी नहीं है* खेड़ा जरुर खुला हुआ है, सीरवी समाज के कागज, पत्र, निमंत्रण पत्रिका आदि भायल परिवार के नाम से आते हैं परंतु धन्नाराम जी चोयल पंच के रूप में निमंत्रण पर सामाजिक समारोह में उपस्थित होते हैं।
सरकारी नौकरी में यहां पर एकमात्र मूलाराम जी भायल के पुत्र *भेराराम जी फौजी रहे थे बाद में वरिष्ठ अध्यापक अंग्रेजी पद पर बांता* रहे और बांता में मकान बनाकर आधी बार वहां रहते हैं। बाकी सीरवी समाज से अब तक सरकारी नौकरी में कोई बंधु नहीं है।
व्यापार व्यवसाय के लिए यहां से पुणे, वापी, मुंबई और हैदराबाद में सीरवी अपना परचम लहरा रहे हैं। दक्षिण भारत जाने वालों में सर्वप्रथम 1974 में श्री धन्नाराम जी मन्नाराम जी चोयल चैन्नई गये, ढगलाराम जी, लालाराम जी, पारसमल जी, मदन लाल जी पुत्र श्री रूपाराम जी गांधीधाम गए थे, ओम प्रकाश जी चोयल मुंबई और सोहनलाल जी आगलेचा मुंबई गए थे।
गांव के विकास कार्य में सीरवी समाज का कहीं कोई नाम-निशान नहीं है। दक्षिण भारत के संगठन के पदाधिकारी रूप में भी हेमलियावास खुर्द के सीरवी बंधुओं का कहीं कोई नाम नहीं है।
*यहां पर आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व श्री पालारामजी भायल मेणों से लड़ते हुए जुझार (शहीद) हुए थे। बताया जाता है कि आपका सिर मारवाड़ जंक्शन के पास गिरने के बाद आपका धड़ मेणों से लड़ता रहा, बिना सिर 25-30 के सिर केवल धड़ के हाथ की तलवार से अलग हो गए। आपका धड़ हेमलियावास खुर्द के तालाब की पाल के पास गिरा उसी स्थान पर आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मगनीबाई आपके साथ सती हुए। जहां इतने वर्षों से चबूतरा बना हुआ था,अब यहां से अन्यत्र गये हुए ठाकरवास, पड़ासला खुर्द और प्रतापगढ़ के भायल मिलकर मंदिर का निर्माण कार्य करवा रहे है।*
धन्नाराम जी चोयल से पूछे जाने पर बताया कि घरों की संख्या बहुत कम होने से फिलहाल बडेर निर्माण की कोई योजना नहीं है।
श्री पूनाराम जी सोलंकी हेमलियावास कलां को साथ लेकर इस बार हेमलियावास खुर्द की जानकारी प्राप्त की जो आपको निश्चित ही पसन्द आयेगी ऐसी आशा करता हूं।
हेमलियावास खुर्द ग्राम की खुशहाली और चंहुमुखी विकास की मां श्री आई माताजी से कामना करता हूं-दीपाराम काग गुड़िया।