माता के मुठ धरने के साथ गूँजने लगे गणगौर माता के गीत
कुक्षी (मध्यप्रदेश ): निमाड़-मालवा का प्रसिद्ध लोकपर्व ‘गणगौर’ सोमवार को मुठ धराने के साथ शुरू हो गया। सोमवार को श्रद्धालुओं ने माता की बाड़ी में पहुंचकर बांस की टोकरियों में गेहूं अर्पित किए।
इन बांस की टोकरियों में गेहूं के जवारे बोए जाते हैं,जो गणगौर तीज पर श्रद्धालु आकर्षक रथों में विराजित कर अपने घरों पर ले जाएंगे।
प्रतिदिन महिलाएं माता की बाड़ी में पहुँचेगी व माता के गीत गाकर आराधना करती हैं। पं.श्री कमल जी रावत व परिवार के द्वारा परंपरागत रूप से माता की बाड़ी बोई जाती है।
माता के जवारों के लिए महिलाएं छोटी-छोटी टोकरियों में गेहूं भरकर बाड़ी में देने जाती हैं। इसी टोकरी में माता के जवारे बोए जाते हैं, जिसे मुठ कहते हैं। पूरे दिन माता की मुठ धराई का सिलसिला चलता रहता हैं
7 दिन तक करना पड़ती है सेवा
पं.कमल जी रावत ने बताया कि श्रद्धालुओं द्वारा जो गेहूं दिए जाते हैं, उन्हें साफ कर टोकरियों में बोया जाता है। इसके लिए मिट्टी और गोबर की खाद विशेष रूप से तैयार की जाती है। रोजाना सुबह शाम इन जवारों को पानी का छिड़काव करना पड़ता है। जिस कक्ष में माता के जवारे बोए जाते हैं, वहां आना-जाना वर्जित रहता है। गणगौर तीज पर ही यह कक्ष खोला जाता है। इस वर्ष 500 से अधिक टोकरियों में जवारे बोए गए हैं।
गूंजने लगे माता के गीत
मुठ धराई के साथ नगर में माता के गीत गूंजने लगगे एकादशी से लेकर गणगौर तीज तक प्रतिदिन महिलाएं माता की बाड़ी में जाकर माता की आराधना कर गीत गाती हैं। गणगौर तीज पर माता को जब श्रद्धालुओं के घरों पर ले जाया जाता है। उसके बाद घरों पर माता के गीत गाए जाते हैं। गीत के बाद प्रसाद के रूप में तमोल (धानी) का वितरण किया जाता है।
उक्त जानकारी सीरवी समाज,कुक्षी अध्यक्ष कांतिलाल जी गहलोत व पंच समिति ने दी
प्रषेक – मनोज सीरवी, कुक्षी
प्रतिनिधि – सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डाॅट काॅम