*डायलाणा में बड़लो हऴा रो*।
*छायां करी जगदम्बे माई।।*
श्री आई माताजी ने नारलाई में परचा दिखा कर डायलाणा में हलों का बड़ बनाकर यहां पर चमत्कार किया जो आज श्री आई माताजी के बहुत बड़े धाम के रूप में पूरे भारतवर्ष में नमनीय है।
जीजीवड़ डायलाना मंदिर, ट्रस्ट द्वारा संचालित विकास के नये सोपान स्थापित कर रहा है, यहां जंगल में मंगल है,बड़ की शाखाओं से बने चारों ओर बड़ ही बड़ के मध्य जीजी माता का भव्य मंदिर शोभायमान हो रहा है आसपास में बजरंग बली बालाजी और महादेव जी भी विराजमान हैं।
आगन्तुकों के लिए भोजन एवं ठहरने के लिए शानदार सुविधायुक्त कमरे बने हुए हैं। *भोजनशाला की व्यवस्था *श्री रामलाल जी सैणचा गांधीधाम* वालों द्वारा प्रारंभ की गई दो वर्ष तक इनकी तरफ से भोजनशाला चलाई गई फिर 36000/- अक्षरे छत्तीस हजार रुपए प्रति वर्ष के 365 सदस्य चैन्नई, बंगलौर, मैसूर, हैदराबाद, मुंबई, पुणे, सूरत, अहमदाबाद और देश के कोने-कोने से बना कर राशि की बैंक में एफडी करवाई गई जिससे वर्तमान में अनवरत रूप से भोजनशाला चल रही है
श्री जीजीवड़ डायलाना ट्रस्ट के *वर्तमान अध्यक्ष श्री डूंगाराम जी गहलोत सिवास, सचिव श्री राजाराम जी परमार सरपंच डायलाना, कोषाध्यक्ष श्री हीराराम जी चोयल ठाकुर जी गुड़ा,सह कोषाध्यक्ष श्री जेताराम जी चोयल गुड़ा अखेराज, मुनीम श्री लालाराम जी बरफा बाबागांव एवं पुजारी श्री सुजाराम जी गहलोत चाणौद* अपनी सराहनीय सेवाएं दे रहे हैं।
यहां पर *स्वर्गीय चेनाराम जी परमार गुड़ा जैतसिंह जी और स्वर्गीय नेनाराम जी परिहार देसूरी भी अध्यक्ष* पद का दायित्व निर्वहन कर चुके हैं।
तहसील देसूरी से 16 किमी दूर पंचायत मुख्यालय का गांव है – *डायलाना।*
छत्तीस कौम की लगभग 800 घर की बस्ती में सीरवी, देवासी, मेघवाल, राजपुरोहित, घांची, कुम्हार, दर्जी, सरगरा, लोहार और नाई यहां पर बसे हुए हैं।
डायलाणा में सीरवी समाज के लगभग 250 घर में पंवार, राठौड़,काग, सिन्दड़ा, परिहार, सोलंकी, चोयल, मुलेवा,बरफा और परिहरिया यहां निवास कर रहे हैं।
*सोजत में जिस समय श्री आई माताजी विराजमान थे तब मेवाड़ के रायमल जी ने श्री आई माताजी की शरण ली थी,तब श्री आई माताजी ने रायमल जी को मेवाड़ के महाराणा बनने का वरदान दिया और उनके पीछे आ रही फौज को रोक कर उन्हें दो महीने मेड़ता रुकने का आदेश दिया दो माह बाद मेवाड़ की राजगद्दी मिलने का वरदान दिया जो सत्य साबित हुआ और रायमल जी मेवाड़ के महाराणा बने जिसे हम सभी आज भी आरती में गाते हैं कि*-
*मेवाड़ धरा रायमलजी पाई।*
*हिन्दूआं सूरज लाज बचाई।।*
आज के दिन डायलाना गांव में श्री आई माताजी के *दो पाट* स्थापित है जिनमें *एक पाट राणा रायमलजी द्वारा स्थापित पाट है एवं दूसरा सीरवी समाज द्वारा स्थापित पाट हैं*।
सीरवी समाज द्वारा डायलाना में रायमलजी के पाट स्थान के पास ही साथ में पाट स्थापना एवं बडेर प्राण प्रतिष्ठा समारोह *विक्रम संवत् २०७९,जेठ बदी बारस शुक्रवार दिनांक 27 मई 2022* को श्री भगा बाबा जी, भंवर महाराज जी के कर कमलों से संपन्न हुई थी।इस अवसर पर श्री आई माताजी के धर्म रथ भैल और दीवान साहब नहीं पधारे। *यहां पर भैल जीजीवड़ डायलाना मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के समय से बन्द है।*
वर्तमान में यहां पर *कोटवाल श्री दीपाराम जी भीकाजी परमार, जमादारी और पुजारी श्री तेजाराम जी चमनाजी काग* अपनी सराहनीय सेवाएं दे रहे हैं।
सरकारी नौकरी में यहां से श्री *वक्ताराम जी रुपाजी परमार* केरली उच्च माध्यमिक विद्यालय में *प्रधानाचार्य* पद पर आसीन है।
राजनीति में यहां से श्री *वक्ताराम जी वीरम जी काग* डायलाना के सरपंच रहे एवं वर्तमान में श्री *राजाराम जी वक्ताराम जी परमार सरपंच* पद पर आसीन है।
यहां से व्यापार व्यवसाय हेतु गुजरात, मुंबई, पूना और हैदराबाद में सीरवी अपनी सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं।
यहां से सर्वप्रथम दक्षिण भारत जाने वालों में सुजान जी रामाजी परमार गुजरात और श्री चमनाजी भीकाजी काग मुंबई गये थे।
डायलाणा सीरवी समाज एवं आई पंथ का नारलाई के बाद दूसरा बड़ा धाम है जहां श्री आई माताजी का चमत्कारी स्थल है। बिलाड़ा पधारने के बाद माधव जी द्वारा निर्मित धर्म रथ भैल में विराजमान होकर आपने मारवाड़ गोड़वाड़ में गांव गांव भ्रमण कर डोरा बंद बांडेरु बनाये। आपने 1557 के माघ सुदी बीज को दीवान पद की स्थापना के साथ फ़रमाया कि मैं इस रथ में सदैव मौजूद रहूंगी, मेरा यह रथ गांव गांव भ्रमण कर मेरे बांडेरुओं को मेरे दर्शन करायेगा। और तब से वर्तमान समय तक में पूरे भारतवर्ष में एक मात्र श्री आई माताजी का धर्म रथ भैल श्री आई माताजी के आदेशानुसार पिछले साढ़े पांच सौ साल से गांव- गांव भ्रमण करता है, लेकिन धाम स्थल पर *लम्बे समय से भैल का रुकना एवं आगमन नहीं होना सोचनीय है*। पाली और जोधपुर जिले के 350 गांवों में से पांच दस गांव में भैल आगमन नहीं होना सोचनीय और विचारणीय है किसी प्रकार के विवाद का चाहने पर समाधान होता है पर नहीं चाहने पर अपने आप समाधान भी नहीं होता है। सीरवी समाज की एकता और धर्म पर बने रहने का श्री आई माताजी का धर्म रथ भैल बहुत बड़ा माध्यम है तभी साढ़े पांच सौ साल बाद भी भैल का संचालन हो रहा है कहावत है कि चमत्कार को नमस्कार है। सभी बुद्धिजीवी सीरवी बंधुओं, कोटवाल जमादारी एवं बांडेरुओं से विनती है कि पहल कर सभी को मां श्री आई माताजी के दर्शन लाभ का अवसर दिलाया जाये।
शुभ कामनाओं सहित – दीपाराम काग गुड़िया।