*कुक्षी/मध्यप्रदेश*। कुक्षी नगर में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी 11 से 13 अप्रैल तक मनाये जाने वाले प्रकृति की उपासना एवं निमाड़ मालवा क्षेत्र का लोकपर्व गणगौर की विशेष धूम रहेगी। इस पर्व की औपचारिक शुरुआत चेत्र माह की कृष्णा पक्ष की एकादशी से होकर दसवे दिन विसर्जन तक रहती है।
सिर्वी समाज का प्रमुख पर्व होने से दीपावली की तरह की जाती है तैयारी अखिल भारतीय सिर्वी महासभा मध्यप्रदेश के महासचिव एवं सिर्वी समाज सकल पंच अध्यक्ष कान्तिलाल जी गेहलोत ने बताया कि वैसे तो यह त्यौहार प्रत्येक हिंदू घरों में मनाया जाता है लेकिन क्षेत्र में रहने वाले सिर्वी समाज का यह प्रमुख पर्व होने से इसे दीपावली की तरह विशेष अंदाज में मनाया जाता है तथा समाज द्वारा इसकी महीनो पूर्व तैयारी आरंभ हो जाती है। दीपावली की तरह अपने घरों की सफाई,रंगाई-पुताई आदि के साथ मोहल्ले को दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
*संगीत,कला, परम्परा तथा आस्था के अनेक रंगों का प्रतीक पर्व*
यह पर्व राजा धनियार (ईश्वरजी) व रणुमा (गणगौर) के ग्रस्त प्रेम एवं शिव-पार्वती के पूजन आराधना से जुड़ा हुआ होकर कन्याओं के योग्य वर की प्राप्ति के लिए गौरी आराधना से जुड़ा हुआ संगीत,कला,परंपरा तथा आस्था के अनेक रंगों का प्रतीक पर्व है। मुख्य रूप से यह पर्व चेत्र शुक्ल तृतीया गणगौरी तीज से प्रारंभ होकर तीसरे दिन पंचमी को आकर्षक रथ नृत्य के साथ विदाई रूप में समापन का स्वरूप लेता है। यह रथ धनियर राजा व रणुबाई की प्रतीकात्मक काष्ठ प्रतिमाओं के होते हैं जिन्हें राजसी वेशभुषा पहनाकर सजाया-संवारा जाता है तथा आकर्षक स्वरूप प्रदान किया जाता है।
*एकादशी को माता की मुठ धराने के साथ पर्व की औपचारिक शुरुआत*
चैत्र कृष्ण एकादशी को माता की बाड़ी में ज्वारे बोने के साथ गणगौर पर्व की शुरुआत होती है इसे माता के मुठ रखना कहते हैं। जिस स्थान पर ज्वारे बोये जाते हैं उसे माता की बाड़ी कहा जाता है अलोणे कण्डे यानी शुद्ध सुखे गोबर का पानी लगाएं बिना बने कण्डे के भूसे का मिश्रण कर उसमें गेंहू बोए जाते हैं। इन गेंहू का अंकुरण ज्वारे कहलाता है। नगर में माता की मुख्य बाड़ी मंगलवारिया स्थित पुरानी धान मंडी में पंडित कमल रावत के यहां बोई जाती है। माता की बाड़ी के लिए ज्वारे अंकुरण हेतु गेहूं सिर्वी समाज के प्रतिष्ठित भायल परिवार आई माता चौक के यहां से प्रदान किया जाता है।
*गणगौर पर्व पर बालिकाएं व महिलाएं लाती है श्रंगारित फूल-पातीयां*
गणगौर पर्व पर सिर्वी समाज की बालिकाओं व महिलाओं द्वारा जवाहर चौक से प्रतिदिन श्रंगारित फूल-पातीयां ढोल की थाप पर चल समारोह पूर्वक लाई जाती है। महिलाओं द्वारा झालरिया गीत गाकर प्रतिदिन तंबोल प्रसादी वितरण की जाती हैं। इस प्रकार प्रकृति का यह लोक जीवन से जुड़ा लोक पर्व क्षेत्र में एक नवीन ऊर्जा का संचार करता है। श्रद्धा और आस्था का यह उत्सव लोक रंजन के साथ जीवन को धर्म की मूल भावना से भी जोड़ता है।
*डांडिया एवं मटकी नृत्य का विशेष आकर्षण*
सिर्वी समाज सकल पंचो के मार्गदर्शन में समाजजनों द्वारा शाम को ढोल की थाप पर विशेष डांडिया नृत्य होता है वहीं रात्रि में संगीत कला से जुड़ा मटकी नृत्य आकर्षण का केन्द्र बना रहता है।
*विशाल शोभायात्रा के साथ होता है विसर्जन*
माता के जवारे विसर्जन करने हेतु 200 प्रतिमाओं का विशाल चल समारोह नगर के प्रमुख मार्ग से होता हुआ जवाहर चौक पहुंचता है वहां ढोल की थाप पर गणगौर की प्रतिमा लिए महिलाएं आकर्षक नृत्य करती है जिसे देखने क्षेत्र के भारी संख्या में लोग जवाहर चौक पर एकत्रित होते हैं। इस प्रकार नगर में गणगौर महोत्सव के दौरान मेले की तरह भीड़भाड़ एवं धूम रहती है।