सर्वप्रथम मेरा सीरवी समाज के सभी कर्णधारों, भामाशाहो,शिक्षाविदों और सामाजिक सेवार्थ कार्य से जुड़े निष्काम कर्मयोगियों को सादर चरण वंदन-अभिनंदन ।
आप सभी की विराट सोच,त्याग और अर्पण से सीरवी समाज ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है।समाज के लोगों के सामाजिक हित की सोच से ही समाज के बड़े-बड़े छात्रावास और शिक्षण संस्थान खड़े हुए है।सीरवी समाज के शिक्षण छात्रावास से सीरवी समाज की गरीब प्रतिभाओ के भविष्य को संवारने में बड़ी मदद की है।पाली छात्रावास से सबसे ज्यादा समाज की होनहार प्रतिभाओ ने राजकीय सेवा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है,उन प्रतिभाओ को देख कर गर्व होता है,आज शिक्षा, मेडिकल,तकनीकी,बैंकिंग,राजस्व और प्रशासनिक सेवाओं में समाज की प्रतिभाओ के लिए समाज के छात्रावास एक प्रवेश द्वार बनकर उभरे है।समाज के दानदाताओ ने बड़े व उदार मन से अपना आर्थिक योगदान किया है उसी का परिणाम है कि आज सीरवी समाज की प्रतिभाएं अपने उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित है।आज जयपुर में प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी समाज के दानदाताओ की ओर से लगभग निशुल्क आवासीय व्यवस्था की है और वहाँ समाज की होनहार प्रतिभाएं अपनी सम्पूर्ण मानसिक और शारीरिक शक्ति से पूर्ण मनोवेग से तैयारी कर रहे है।समाज के दानदाताओ की इस विराट सोच को हम सब कोटि-कोटि वंदन करते है।यह सकारात्मक सोच ही समाज को नव प्रगति के पथ पर अग्रसर करेगी।
समाज के शिक्षा के प्रचार-प्रसार से सकारात्मक समझ बढ़ती है,व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता में अभिवृद्धि होती है। शिक्षा से उचित-अनुचित,सही-गलत और आशावादी-निराशावादी दृष्टिकोण में से उपयुक्त को चुनने की निर्णय क्षमता का उदय होता है । उचित निर्णय क्षमता से सामाजिक समरसता को मजबूती मिलती है।सामाजिक समरसता से सामाजिक एकता की डोर मजबूत होती है और जब सामाजिक एकता सुदृढ़ होती है तो समाज अपने निहित लक्ष्यों की पूर्ति आसानी से कर पाता है।यह सब शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार से होता है। शिक्षा से सही समझ बढ़ती है और सही समझ से ही सामाजिक समरसता की बुनियाद विकसित होती है। शिक्षा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता में अपार वृद्धि होती है,विवेक क्षमता बढ़ती है और सामाजिक सेवार्थ के प्रति जागरूकता बढ़ती है। जैन समाज को उदाहरण के रूप में लेते है तो हम पाते है कि वे अपने सामाजिक हित चिंतन में अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को किनारे कर देते है।वे समाज मे व्यक्ति के वर्तमान योगदान और उसके कर्तव्यकर्म को देखते है।वे कभी पुराने गड़े मुर्दे उखाड़कर व्यक्तिशः बुराइयां नही करते है बल्कि अपने समाज के गौरव को कही क्षति नही पहुँचे, उसके लिए अपना सर्वोत्तम सामाजिक सेवार्थ कर्म करते है। शिक्षा के साथ उनकी सामाजिक समझ को हम नमन करते है।
अब प्रश्न उठता है कि हम कहाँ खड़े है? समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार से समाज के लोगों की समझ जितनी व्यापक होनी चाहिए उतनी हुई नही है।यह एक चिंतनीय विषय है।सामाजिक समरसता को जिस तरह से मजबूती मिलनी चाहिए थी,वह उस तरह से दिखाई नही दे रही है। हमारे पुरखे भले ही अनपढ़-निरक्षर थे लेकिन समाज को प्रथम मानकर ईमानदारी से समाजहित को प्राथमिकता देते थे।समाज के प्रति उनकी विशाल सहृदयता और सकारात्मक सोच को हम शत-शत वंदन करते है।वे अपनी समझ से सामाजिक समरसता को बड़ी दरियादिली से प्रगाढ़ता प्रदान करते थे।समाज में परिवार आपसी प्रेम-भाईचारे की मजबूत डोर से बंधे रहते थे। रिश्तो में माधुर्य-सौम्यता व आत्मिक बंधन देखने को मिलता था,आज वह सब धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। अब प्रश्न उठता है कि वे निरक्षर होकर भी समाज को सामाजिक समरसता की मजबूती डोर से बांधने में सफल हो गए और हम शिक्षित होकर भी सामाजिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान नही कर पाए?? आखिर इसकी वजह क्या है?इसके पीछे कुछ न कुछ कारण है,इन कारणों को अंतरंग गहराइयों से चिंतन करे तो हम पायेंगे कि शिक्षित व्यक्तियों में अहंकार की भावना बलवती हो जाती है।शिक्षित व्यक्ति अपने आपको सर्वे-सर्वा मानने की भूल कर जाता है।वह दूसरे के सकारात्मक प्रयासों में भी कमियां ढूंढने लग जाता है। हमारे पुरखो में ईगो(अहम) की भावनाएं नही थी,आज हमारे समाज के बड़े-बड़े डिग्रीधारी शिक्षित जनो में सामाजिक समरसता के प्रति सकारात्मक नजरिया कम ही देखने को मिल रहा है।वे सामाजिक सेवार्थ कार्यो से जुड़े लोगों के उत्साह-उमंग और उनके जोश के बारे में भी नकारात्मक नजरिया रखते है।वे सामाजिक सेवार्थ कार्यो से जुड़े व्यक्तियों को निरुत्साहित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ते है। यह मैं अपने लंबे सामाजिक सेवार्थ कर्म के अनुभव से लिख रहा हूँ। शिक्षा से समझ बढ़ती है और समझ से सामाजिक समरसता को मजबूती मिलती है लेकिन ऐसा अपनी समाज में व्यापक स्तर पर देखने को नही मिल रहा है। जिस तरह से शिक्षित व्यक्तियों में ईर्ष्या-राग-द्वेष देखने को मिलता है,उससे समाज की सामाजिक समरसता को मजबूती प्रदान कैसे होती है?यह सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है? समाज के शैक्षिक उन्नयन से समाज का नवोदय जहाँ-तहाँ दिखना चाहिए,वह दिखाई नही दे रहा है। समाज की सामाजिक समरसता के लिए हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि हम शिक्षित होने का सार्थक परिणाम देवे।छोटी-छोटी बातों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर अपने गलत तथ्यों को भी सही ठहराने का प्रयास करने से न खुद का भला होता है और न समाज का भला होता है।समाज का भला समाज के हर जन में विराट सकारात्मक सोच के विकसित होने से होगा।जब सोच ही विकृत व तुच्छ मानसिकता लिए हुए है तो सामाजिक समरसता को सुदृढ़ता प्रदान कैसे होगी? आज हम देखते है कि सामाजिक सेवार्थ कार्यो से जुड़े लोगों से ही अपने ही लोग ईर्ष्या-राग-द्वेष रखते है। हम ऐसी सोच से समाज का उद्धार नही कर पायेंगे।
कहते है कि,”छोटे मन से कोई बड़ा नही होता है और टूटे मन से कोई खड़ा नही होता है।” हम सबका दायित्व बनता है कि हम सामाजिक सेवार्थ कार्य से जुड़े महानुभावो के प्रति सही सोच रखे।जिन लोगों ने भी समाज के उद्धार के लिए अपना मिशन खड़ा किया हो,उनकी मुक्तकंठ से सराहना करे,जहाँ उचित लगे उन्हें अपना मार्गदर्शन देवे।सामाजिक सेवार्थ का दीया कही भी जले वह समाज मे उजियारा ही करेगा,ऐसी सोच रखे।किसी व्यक्ति विशेष की निंदा करने में अपनी ऊर्जा नष्ट करने के बजाय अपनी ओर से समाज को कुछ न कुछ देने का सार्थक प्रयास करे।आपका सकारात्मक सार्थक प्रयास समाज को नव दिशा देने में जरूर योगदान करेगा। समाज के उद्धार के लिए हम सबको विशाल सहृदयता और सकारात्मक दृष्टिकोण से ईमानदारी से अपना सर्वोत्तम कर्तव्यकर्म करना होगा। हम अपने सामाजिक समरसता के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखे,एक दूसरे से उलझने के बजाय मिल बैठकर समस्या का समाधान करे।समाज को हर मोर्चे पर विजित करने के लिए त्याग और अर्पण की भावना रखे। एक बार पुनः मेरा विनम्र अनुरोध है कि हम अपने सीरवी समाज को जैन समाज की तरह आगे बढ़ाना चाहते है तो हम सबको शिक्षा का सकारात्मक सदुपयोग करना होगा।अपनी बौद्धिक क्षमता को सही ढंग से सदुपयोग करना होगा। हम सबको अपना ईगो-अहंकार को एक तरफ रखकर सामाजिक हित चिंतन को वरीयता देकर आगे बढ़ना होगा।हमारी शैक्षिक समझ को सही ढंग से विकसित कर समाज को साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध करना होगा।साहित्य समाज का सुनहरा दर्पण होता है।जिस समाज का अपना साहित्य समृद्ध है वह समाज उतना ही श्रेष्ठ है। सीरवी समाज को साहित्य की दृष्टि से समृद्ध करने के लिए शिक्षाविदों को अपनी महत्ती भूमिका निभानी चाहिए।समाज की जो भी शैक्षणिक,सामाजिक या आध्यात्मिक मासिक या त्रैमासिक पत्रिकाएं प्रकाशित होती है,हम सब उनके आजीवन पाठक बने और अपने विचारों से युक्त आलेख देवे,जिससे समान की युवा पीढ़ी लाभान्वित हो सके। शिक्षाविद अपनी ओर से रचनाये लिखे।समाज स्तर पर साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के सार्थक प्रयास हो।ऐसे सकारात्मक प्रयासों से सामाजिक समरसता के सुदृढ़ीकरण को नया बल प्रदान होगा।
समाज में ऐसे बहुत से लोग जो सामाजिक सेवार्थ कार्य के लिए निकले थे लेकिन अपने ही लोगों के तानो से विचलित होकर घर बैठ गए।समाज उनकी सेवाओ से वंचित हो गया। समाज के लोगो से एक विनम्र अनुरोध है कि सामाजिक सेवार्थ कार्यो से जुड़े हुए व्यक्तियों के बारे कोई टीका-टिप्पणी करने से पहले जमीनी हकीकत को जरूर देखें और जहां तक हो सके उनसे व्यक्तिगत संवाद करे।इससे समाज का भला होगा।कोई भी व्यक्ति अपने स्वाभिमान के साथ समझौता नही कर पाता है। वह ईमानदारी से अपना कर्तव्यकर्म भी करे और लोगो की अनावश्यक आलोचना को भी सहे, ऐसा नही होता है। समाज में सच्चे कर्मयोगी बहुत ही कम देखने को मिलते है और ऐसे लोगों के बारे में भी गलत,बेतुकी और व्यर्थ की टिप्पणियां करना समाज के साथ बड़े अन्याय करने जैसा कृत्य है।हम सबका दायित्व बनता है कि हम ऐसे कृत्यों से अपने आपको बचाये,जितना बन पड़े समाज के उद्धार के लिए अपना योगदान करे। सीरवी समाज में सामाजिक सेवार्थ कार्यो से जुड़े सभी महानुभावो से मेरा करबद्ध निवेदन है कि आप जिस सामाजिक सेवार्थ कार्य से जुड़े है,उसमे अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पण करते रहे,सामाजिक सेवार्थ का अपना निहित लक्ष्य तभी पूर्ण होगा जब आप दृढ़ इरादों और बुलंद हौसलो से उस मिशन से जुड़े रहेंगे। निराशावादी लोगो की अनर्गल बयानबाजी से अपने आपको कदापि विचलित नही होने देवे। सामाजिक सेवार्थ कर्म से जुड़े रहना पूर्व कर्मो का पुण्य है,इस पुण्य को यू ही जाया न होने देवे।
सामाजिक कार्यो से जुड़े सभी महानुभावो का मेरा करबद्ध निवेदन है कि वे अपने इस लोक का ही नही परलोक को भी अपने सेवार्थ कर्म से फलीभूत बनाने का अनवरत प्रयास करते रहे।अपने मिशन-विजन से तनिक भी विचलित नही होवे।
हम तो सदा सामाजिक सेवार्थ कार्यो से जुड़े सभी निष्काम कर्मयोगियों से एक ही अपेक्षा रखते है कि सभी विशाल सहृदयता और विराट सकारात्मक सोच सीरवी समाज के उद्धार के लिए पहल करते रहे और कोई अपने विजन में व्यवधान भी डालने का प्रयास करे तो उसमें भी वे अपने आपका विश्लेषण करते रहे।
हम तो सदा कहते है कि,
“हम उनको क्यो धिक्कारे,
जो हमे नक्कारे।
अच्छा है हम अपनी कमिया स्वीकारे,
और प्यारी-सी जिंदगानी सँवारे।।”
आइये,हम सभी अपनी समाज की सामाजिक समरसता और एकात्मकता के बंधन को मजबूती प्रदान करने के लिए अपनी शिक्षा का सही सदुपयोग कर सकारात्मक प्रयास से सुदृढ़ता प्रदान करे।
सामाजिक हित चिंतन को सर्वश्रेष्ठ मानकर सर्वोत्तम अर्पण कर सीरवी समाज को गौरवमयी स्थान दिलाने का सर्वोत्तम कर्तव्यकर्म करे।
सभी बंधुजन-बहनो के मंगलमय जीवन की शुभकामनाए एवम सामाजिक समरसता-एकात्मकता के लिए सकारात्मक योगदान की अपेक्षा में ।
आपका अपना
हीराराम सीरवी (गेहलोत)
अध्यापक
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सोडावास (पाली)
शिक्षा,समझ और सामाजिक समरसता
