सीरवी समाज जिसके मूल में “सीर” की भावना है।सीर का अर्थ सहभागिता,सहकारिता औऱ सहयोग की भावना। हमारे पुरखे कहते थे कि “हम तो हीरवी है,सबो रो हीर है।” वे लोग इस भावना से कार्य करते थे,समाज मे भले ही शिक्षा का स्तर न्यून था लेकिन उनकी समझ बहुत बड़ी थी।उन लोगो की इस विराट सोच,विशाल सहृदयता औऱ सकारात्मक समझ का ही परिणाम था कि अन्य समाजो में समाज के लोगों को बड़ी इज्जत दी जाती थी।अन्य समाज के लोग बड़ी दिलेरी से कहते है कि,”सीरवी समुन्दर,बाकी सब नाडा(छोटा तालाब)।” सर्वप्रथम हम सब महान पुरखो की विशाल सहृदयता औऱ कर्तव्यपरायण भावना को कोटि-कोटि वंदन-अभिनंदन करते है जिसके कारण सीरवी समाज को एक सभ्य समाज के रूप में प्रतिस्थापित किया। आज हम सब उन सभी महान पुरखो के ऋणी है।सभ्य समाज महान आदर्श प्रतिमानों औऱ मूल्यों से बनता है न् कि बातों से।
सीरवी समाज के लोगो की ईमानदारी,कर्तव्यपरायणता,
सहभागिता,सहकारिता,
सत्यता,प्रेम,भाईचारे औऱ मिलनसारिता से सब वाकिफ है।हम हर कार्य को बड़ी ईमानदारी औऱ समर्पण भावना से करते है।हम देने की विराट भावना से कार्य करते है न् कि लेने की।समाज मे स्वार्थवाद की भावना कम है।समाज में परमार्थ की भावना भी अच्छी है।यह सब हमारे लोगो की दान करने की विशाल सहृदयता की भावना से परिलक्षित होता है।समाज में बहुत कुछ अच्छा है लेकिन सबकुछ अच्छा नही है।यह सब पिछले पाँच वर्षों में जिस तरह की आपराधिक घटनाए घटित हो रही है ,उससे अंदाज लगाया जा सकता है।जिस तरह के आपराधिक मामले अखबारों में बड़े काले अक्षरों में छाए हुए मिलते है,वह बड़ी पीड़ा देने वाले होते है।सोशल मीडिया में समाज के आपराधिक मामले वायरल हो रहे है,उसे पढ़ते है तो अपने आपको ग्लानि होती है। अपने आप पर विश्वास नही होता है कि यह सब उस सभ्य समाज मे हो रहा है ,जिसे अन्य समाज “समुन्दर” की संज्ञा देते है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?समाज किस दिशा की ओर जा रहा है?सभ्य समाज में ऐसी आपराधिक घटनाओं की वजह क्या है?
समाज के हर बुद्धिजीवी को इस पर ईमानदारी से चिंतन-मंथन करने की आवश्यकता है।यह सब समाज के आदर्श प्रतिमानों औऱ मूल्यों के पतन से हो रहा है।जिस तरह से अपनी समाज के आदर्श प्रतिमानो औऱ मूल्यों का ग्राफ गिर रहा है,उसी का परिणाम है कि समाज में ऐसी आपराधिक घटनाए हो रही है जिससे समाज शर्मिंदा हो रहा है।हाल ही है समाज में चंडावल,उंदरथल औऱ पावा में जो हत्या जैसी आपराधिक घटनाए हुए है,उससे हर समाजी बड़ा दुःखी औऱ द्रवित हुआ है।सभ्य समाज में ऐसी घटनाओं को कोई जगह नही होती है। हम सब क्या करे?हम ऐसा क्या करे कि समाज में ऐसी घटनाएं आगे से न् हो?
ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हम सबको बड़े औऱ उदार मन से समाजहित में ऐसे निर्णय लेने की आवश्यकता है जिससे समाज को नई दिशा मिल सके।एक पौधे को पत्तो पर पानी डालकर उसे पल्वित नही किया जा सकता है।पौधे को पुष्पित-पल्वित करने के लिए जड़ो को अमृत जल से सींचने की आवश्यकता होती है वैसे ही सभ्य समाज के लिए हम सबको समाज के उच्च आदर्श प्रतिमानों औऱ मूल्यों को पुनः धरातल पर लाना होगा,जो हाल ही दिनों में गिर रहे है।समाज की युवा पीढ़ी को उच्च आदर्श प्रतिमानों औऱ मूल्यों की सीख देने की सख्त आवश्यकता है।इसके लिए हम वडेरो का अच्छे ढंग से उपयोग करे।समाज में ऐसी टीम बनानी होगी जो युवा पीढ़ी को समाज के मानक मूल्यों की सीख दे सके। वर्ष में कम से कम दो बार परगना वार सेमिनार का आयोजन किया जाय।सेमिनार में युवा पीढ़ी को जीवनोपयोगी मूल्यों की सीख दी जाय तथा साथ ही उनके करियर काउंसलिंग का ज्ञान दिया जाय।समाज को ऐसे साहित्य का सृजन करना होगा,जिससे युवा पीढ़ी को समाज के आदर्श प्रतिमानों औऱ मूल्यों का ज्ञान मिल सके।साहित्य समाज का दर्पण होता है।सभ्य समाज के नव निर्माण में साहित्य की अहम भूमिका होती है।हम सबको मिलकर समाज में साहित्यकारों का मान-सम्मान करना होगा और उनको प्रोत्साहित करना होगा। कहते है कि जिस समाज का साहित्य समृद्ध है ,वह समाज उतना ही सशक्त औऱ सभ्य है।आज हम सभ्य समाज के रूप में जैन समाज को देख रहे है,उसका कारण उनका समृद्ध साहित्य औऱ धर्म के मूल्यों का प्रचार-प्रसार है।आज हम कहाँ खड़े है?इस पर मंथन करने की आवश्यकता है।हमने हर ग्राम-शहर में भव्य वडेर बनाये है लेकिन उन वडेरो का युवा पीढ़ी के आध्यत्मिक ज्ञान के लिए कितना उपयोग हो रहा है?यह विचार करे।वडेरो में पूजा पाठ के समय कितने समाजी बंधुजन आते है?यह सब प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।आध्यात्मिक ज्ञान से आपराधिक घटनाए नही होती है।यह ज्ञान व्यक्ति को अंतर्मन से प्रेरणा देता है कि “अपराध करने पर नरक में स्थान मिलेगा।” यह गूढ़ ज्ञान समाज को नव दिशा प्रदान करता है।
आइये,हम सब समाज के आदर्श प्रतिमानों औऱ उच्च मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए बड़ी मानसिकता औऱ विशाल सहृदयता से सकारात्मक निर्णय कर अपना-अपना परम पुनीत कर्तव्यकर्म करे।
हम सभी ईर्ष्या-राग-द्वेष की भावनाओ को दफनाकर समाज मे प्रेम-भाईचारे से कार्य करे।एक दूसरे का सम्मान करें ।
हम तो कहते है कि,
“जिस समाज मे हम जन्मे है,उसके लिए कुछ करना है।
अपने सद्कर्मो से इस समाज का नाम सबसे ऊँचा करना है।।”
सभी बंधुजन-बहनों को मेरा सादर अभिनंदन-वंदन सा।
जय माँ श्री आईजी सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम सीरवी(गहलोत)
अध्यापक
राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,सोडावास,पाली
आदर्श प्रतिमानों को खोता सीरवी सामाज
