।।समृद्ध सोच और सामाजिक उत्थान(४)।।
समृद्ध सोच के व्यक्ति बड़े ही सरल,सादगी और नम्रता के श्रेष्ठ मानवीय गुणों से युक्त होते है और वे बड़े ही विनम्र स्वभाव से अपने सामाजिक सेवार्थ कर्म को करते है। सामाजिक उत्थान की सोच अपने आपमें नम्रता के भावों से युक्त होती है।कोई भी व्यक्ति नम्रता को छोड़कर सामाजिक सेवार्थ के कर्म को गति नहीं दे सकता है। उसका सरल,सादगीपूर्ण एवं विनम्र व्यक्तित्व ही महान बनाता है।
कहा भी गया है कि :-
” अगर नम्रता साथ हो ,बनती विजय महान।
विनय नम्र व्यक्तित्व से ,बढ़ती नर की शान।
अहंकार को त्याग कर ,लिए नम्रता साथ।
ज्यों ज्यों नर ऊपर उठे ,त्यों त्यों झुकता माथ।”
उक्त भावों को लेकर ही व्यक्ति को सामाजिक सेवार्थ कर्म में सतत प्रवृत्त रहना चाहिए। नम्रता-सादगी भरा विनयपूर्ण व्यवहार ही है जिसे अपनाकर व्यक्ति लोगों से आदर, मान-सम्मान प्राप्त करता है। नम्रता में ही महानता है। समाज में लोगों से प्रेम-स्नेह मिलता है। नम्र व्यवहार से, समाज, सहानुभूति, दया, करुणा के सुवासित पुष्प अर्पण करता है। हमारी नम्रता सद्व्यवहार की सूचक है।सामाजिक सेवार्थ से जुड़े व्यक्ति कदापि जिद्दी प्रवृति वाले नहीं होते है और ना ही वे अहम के भावों को लेकर चलते है।यदि ऐसा वे करते है तो उसके बड़े सामाजिक विजन में अवरोध ही अवरोध आ जाते है।आजकल लोग स्वयं कुछ करे या न करे लेकिन वे सामाजिक सेवार्थ कर्म से जुड़े व्यक्ति की आलोचना या निंदा करने को तैयार रहते है इसलिए यह जरूरी है कि परमार्थी व्यक्ति सदा सरल,सादगी और विनम्र रहे। नम्र सीधे एवं भले व्यक्ति को लोग प्रारंभ में महत्व नहीं देते हैं, लेकिन आगे चलकर समाज, उनकी प्रशंसा सच्चे हृदय से करता है, उनके मार्ग का अवलोकन कर लोगों को उनके मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है और लोग उनके द्वारा बताए गए सच्चे मार्ग को अपनाकर आगे बढ़ने लगते हैं। नम्रता जीवन का श्रेष्ठ गुण है, इसे अपनाकर ही व्यक्ति अपने विराट लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
सारांश यह है कि सामाजिक उत्थान के विजन को लेकर चलने वाले व्यक्ति को सरलता,सादगी एवं नम्रता के गुणों को आत्मसात कर कार्य करना चाहिए।
आप सभी सरल,विनम्र और सहृदयी महानुभावों को मेरा सादर वंदन -अभिनंदन सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
प्रवक्ता
सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम,वेबसाईट।