।।सांस्कृतिक मूल्य और नारी सम्मान ।।
सर्वप्रथम मैं अपने राष्ट्र के उन सभी ऋषि मुनियों,मनीषियों,महान ग्रन्थों के रचनाकारों,संतो और पुरखों को कोटि-कोटि चरण वंदन करता हूँ जिन्होंने हमारी महान संस्कृति को बनाया और उस संस्कृति के ऐसे मूल्यों की परम्पराओ को अपनाया,जिससे मानव जीवन सुखकारी और मंगलकारी बन जाता है।संस्कृति के संस्कार जीवन को स्वर्णिम व स्वप्निल बनाते है इसमें किंचित भी संदेह नही है।प्राचीन गौरवशाली परम्पराए आज भी समाज को सभ्य बनाने के लिए मंगलकारी सिद्ध हो रही है। हमारी संस्कृति आज के इस वैश्विक महामारी कोरोना के भयंकर प्रकोप से बचाने का कार्य कर रही है।भारत ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के बड़े से बड़े देश इस बात को स्वीकार करते है।विश्व की महाशक्ति अमेरिका व रूस के शासनाध्यक्ष भी भारतीय संस्कृति के मूल्यों में अभिवादन की महान परम्परा हाथ जोड़कर अभिवादन करने की सीख दे रहे हैं। आज जब हम यह सब होते हुए देखते है तो अपनी महान संस्कृति के प्रति हमारा गौरव और बढ़ जाता है। हर भारतीय को गर्व होता है कि ये है हमारी महान संस्कृति,जिसको विश्व स्तर पर सर्वमान्यता मिलती है।
आज हर कोई हमे सलाह दे रहे हैं कि जब आपस मे मिले तो एक दूसरे से हाथ न मिलाए,गले न मिले।एक दूसरे को दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करे। भारतीय संस्कृति की इस महान परम्परा से एक साथ बहुतों से लोगों को दिल से अभिवादन किया जा सकता है और कोरोना जैसी बीमारी से अपने आपको संक्रमित होने से बचा सकते है।
विश्व में जितनी भी लाईलाज बीमारियां है,उसके बचाव के लिये हम सब अपनी संस्कृति के मूल्यों को आत्मसात कर जीवन जिए तो हम ऐसी बीमारियों से संक्रमित होने से अपने आपको बचा सकते है। एड्स जैसी लाईलाज बीमारी जो यौन संबंधों के कारण होती है,यदि हम संस्कृति के प्राचीन मानक प्रतिमानों व आदर्श मूल्यों के साथ मर्यादित जीवन जीने का संकल्प ले तो ऐसी बीमारियों से अपने आपको बचा सकते है।
आज विश्व में ऐसी भयंकर लाईलाज बीमारियां अपना रौद्र रूप दिखा रही है लेकिन हम सब जानते हुए भी अनजान हो रहे हैं।यह बड़ी विडंबना है कि भारत जैसे राष्ट्र में जहां की संस्कृति के मानक मूल्यों को आत्मसात कर जीवन जीने से उन सभी लाईलाज बीमारियों से बचा जा सकता है लेकिन लोग संस्कृति के मानक मूल्यों को दरकिनार कर अमर्यादित जीवन जीने का कार्य कर ही जाते है और लाईलाज बीमारियों के शिकार हो जाते है।आज की युवा पीढ़ी को विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है।यदि जीवन से ही प्रेम नही है और जिंदगी को बर्बाद करने का ही निर्णय कर लिया है तो भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों से परे अपना जीवन जिए।इस राष्ट्र की यह बड़ी विडंबना है कि लोग अच्छे व महान मूल्यों को भी खोट की तरह देखते है और अपना कुतर्क गढ़ जाते है। अपने मन की कुंठित भावनाओ को पुष्पित व पल्वित करने का ही कार्य कर रहे हैं।हमारी महान संस्कृति के मूल्यों के साथ जो छेड़छाड़ हो रही है और विशेषकर युवा पीढ़ी प्राचीन मूल्यों को धत्ता बताकर अपना जीवन जी रही है,वह उनके जीवन को ही बर्बाद कर रही है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि यह सब जानते हुए भी हो रहा है।भारतीय संस्कृति में Boy Friend (BF) व Girl Friend(GF) कतई उचित नही है लेकिन यह बड़ी तेजी से हमारी युवा पीढ़ी के दिलो-दिमाग में पनप रही है।यह हमारी संस्कृति के मानक मूल्यों को अक्षुण्ण रखने में बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहे हैं।हमारी संस्कृति पतिव्रता व पत्नीव्रता के धर्म की सीख देता है।इतिहास में बहुत सी महिलाओं ने अपने सत्तीत्व के महान उदाहरण दिए है तथा महापुरुषों ने भारतीय संस्कृति के महान मानक मूल्यों से जीवन जी कर बड़ा उदाहरण दिया है।वे किसी भी स्थिति-परिस्थिति में विचलित नही हुए।हमारी संस्कृति में वे सब महान मूल्य व परम्पराए है जिसके आत्मसात कर जीवन जीने से जीवन को स्वर्णिम व स्वप्निल बनाया जा सकता है।
आज भारत में नारी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है और नारी के साथ न जाने कैसे-कैसे जघन्य अपराध हो रहे हैं?इसे हम शब्दो मे बया नही कर सकते है।आप सभी जानते है।यह बड़ी विडंबना है कि हम नारी सम्मान की बड़ी-बड़ी बातें तो करते है और दिखावा खूब करते है लेकिन नारी सम्मान देने में हम ही पीछे हट जाते है।आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?यह बड़ा प्रश्न है।समय रहते इसका समाधान ढूंढना ही होगा।समाधान भी है जरूरत है,हम अपनी संस्कृति के मानक मूल्यों और परम्पराओ के साथ जीवन जिए, घर परिवार में अपने बच्चों को सही ढंग से संस्कारित करे।बच्चों की गलतियों पर उन्हें डांटे और प्रेम से समझाए कि यह उचित नही है।गलत-सही ,उचित-अनुचित,सभ्य-असभ्य का ज्ञान बच्चों को उनके प्रारम्भिक जीवन काल मे ही बताए।यदि ऐसा हम कर पायेंगे तो हम अपनी युवा पीढ़ी के जीवन को स्वर्णिम बनाने में सफल हो जायेंगे।
युवा पीढ़ी को हमारी विशेष-विशेष सीख है कि वे अपनी महान संस्कृति के मानक प्रतिमानों,मूल्यों और परम्पराओ को आत्मसात कर जीवन जिए। युवक-युवतियो को एक ही संदेश है कि “कीचड़ में पैर डालकर धोने से अच्छा है कि अपना पैर कीचड़ में डाले ही नही।” आज इसकी जरूरत है।
आज ही भारत में 7 वर्ष पूर्व हुई वह दर्दनाक घटना जिसने भारतीय संस्कृति को शर्मसार किया था और निर्भया के साथ जिस तरह से दरिंदगी करके उसकी हत्या कर दी गयी थी,उन चार दरिंदो व कातिलों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया है।ऐसी घटनाएं जीवन मे कदापि दुबारा न हो और न हमारी संस्कृति शर्मसार हो।युवा पीढ़ी इससे सबका जरूर लेवे।
युवा पीढ़ी को एक संदेश यह है कि वे अपने जीवन को स्वर्णिम बनाने के लिए भारतीय संस्कृति के मानक मूल्यों और प्रतिमानों को जरूर अपनाए और जीवन मे ऐसे कोई दुष्कर्म नही करे जिससे मात-पिता के मान-सम्मान को ठेस पहुँचे।हमारी महान संस्कृति दुष्कृत्यों से शर्मसार न हो,ऐसा प्रयास जरूर करे।
आइये,हम सब अपनी महान संस्कृति के मानक मूल्यों को आत्मसात कर जीवन जिए और प्राचीन भारत में जो नारी को सम्मान मिलता था,वही सम्मान मिले और एक बार हर कोई बोले कि,”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,तत्र देवता रमन्ते।”
आइये,हम “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ।” के महान उद्देश्य के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पण करें।
अपनी संस्कृति की गौरवशाली परम्परा को कोटि-कोटि वंदन।
सभी बंधुजन-बहनो को मेरा हार्दिक अभिनदंन-वंदन सा।🙏🙏
जय माँ श्री आईजी ।
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
हमारी संस्कृति आज के इस वैश्विक महामारी कोरोना के भयंकर प्रकोप से बचाने का कार्य कर रही है।
