सामूहिक विवाह के पालनीय सूत्र
विवाह एक संस्कार है , इसे आदर्श बनाओ । सामूहिक विवाह रचाकर सारे खर्चे बचाओ ।।
सामूहिक विवाह एक पवित्र संस्कार है। मानव अपनी इच्छानुसार आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये एक ही दिन एक ही स्थान पर एक मंडप में अनेको जोड़े पूर्ण सादगी, पुरे समाज के आशीर्वाद के साथ होना ही सामूहिक विवाह माना जाता है।
सामूहिक विवाह का उद्देश्य है। आडम्बर विहित दहेज प्रथा का उन्मूलन, अपव्यय पर अंकुश लगते हुए सात्विक एवं परम्परागत पद्धति से परिचय।
पालनीय सूत्र – संगठन में शक्ति है , अतः आप संगठित होकर समाज की एकता और अखंडता को बरकरार रखते हुए अपने यहाँ होने वाले परिचय सम्मेलन एवं सामूहिक विवाह का देश के अंदर प्रत्येक प्रदेश के गाँव व् शहरों में बसे हुए हमारे सीरवी भाईयों व् माताओं के बीच समाज पत्रिका, वेबसाइट एवं पंफलेट के माध्यम से सही ढंग व् सही उद्देश्य से प्रसारण करें। स्मरण रहे दान पर ही यह कार्य संभव है अतः सभी दान दाताओं से दान प्राप्त करते हुए इस लोक मंगल, धार्मिक कार्य को आगे बढ़ते हुए यह मान ले कि आज समाज की दॄष्टि में सब समान है न कोई छोटा न कोई बड़ा। सामूहिक विवाह गरीबो के लिये है. यह नीति घातक है। इसे रोकते हुए संविधान से घोषित आयु के अनिसार विवाह किये जायें।
सामूहिक विवाह में वर पक्ष की जिम्मेदारी है कि कन्या के गुण चरित्र और स्वभाव की प्रधानता को देखते हुए दहेज का परहेज करें तथा कन्या पक्ष की जिम्मेदारी यहं कि वे वर के गुण चरित्र और स्वभाव की प्रधानता देखते हुए उनके द्वारा प्राप्त जेवर, कपड़ों में संतोष करे।
आज हर समाज का कलंक है दहेज प्रथा, जो वर-कन्या के पवित्र बंधन को कलंकित करता है। आज के संदर्भ में यही ज्वलंत प्रश्न है – क्या भारत दहेज के जाल का उन्मूलन करने में समर्थ होगा ? पुरे देश में वर्तमान में सभी समाज में फिलवक्त वर कन्या की तलाश ही इतना कठिन कार्य है कि हर माँ-बाप इसे उचित रूप से पूर्ण करने में अपने असमर्थ पाते है। उन्हें परिचय सम्मेलन एक सुविधा प्रदान करता है। आप एक स्थान पर एकत्र होकर अपनी इच्छानुसार विवाह के जोड़े तैयार करके अपना योगदान देते है। तत्पश्चात पुरे समाज के सामने वर यह प्रतिज्ञा करे. कि- मैं विधिपूर्वक, धर्मपूर्वक, आज सामूहिक विवाह के आयोजन पर अपनी पत्नी को स्वीकार करता हूँ, यह कहकर जयमाल पहनाये।
इसी तरह कन्या भी यह कहते हुए प्रतिज्ञा करे कि मैं विधिपूर्वक, धर्मपूर्वक इस सामूहिक विवाह के अवसर पर आपकी अर्द्धनिगी बनती हूँ। मैं पुरे जीवन अपने पति तथा परिवार की तन मन से सेवा करुँगी – वर माला पति को पहनाये। इसके बाद समाज उन्हें विवाह प्रणाम पत्र प्रदान करे।
प्रायः सम्पन्न लोग इसे दीन हीन का विवाह समझते हैं। यह उनकी संकुचित भावना है। अतः बेहिचक खुले दिल से वे भी आगे आये और सामूहिक विवाह रूपी इस समाज सुधार के यज्ञ में अपना आहुति अपने बच्चों के विवाह के रूप में प्रदान करे। आपका मनोहर सीरवी मैसूरु – कर्नाटक