।।समृद्ध सोच और सामाजिक उत्थान(७)।।
मानव एक सामाजिक प्राणी है और समाज के बिना मानव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। जो व्यक्ति अपने समाज के सामाजिक प्रतिमानों,मूल्यों ,रीति – रिवाजों और परम्पराओं के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करता है उसकी हर कोई मुक्तकंठ से प्रशंसा करता है। ऐसे व्यक्ति ही समाज की सांस्कृतिक विरासत के रक्षक बनकर समाज की नव पीढ़ी को एक श्रेष्ठ नजीर पेश करते है। सामाजिक उत्थान के लिए हर व्यक्ति में ऐसी श्रेष्ठ सकारात्मक समृद्ध सोच का होना जरूरी है जिससे सामाजिक कल्याण -उत्थान को नव गति सके।
किसी कवि ने बहुत ही सुंदर लिखा है कि :-“विकास खोज रोज रोज
जीवन है कांटो का सोज।
तप यहां तीव्र चाहिए हर सोच,
मेहनत ही जीवन की धुरी है।
देश -समाज की तरक्की के लिए,
सामाजिक समरसता जरूरी है।”
जिस व्यक्ति को सामाजिक समरसता की समझ ही नहीं है उसकी सोच वहां तक जाती ही नहीं है वह व्यक्ति सामाजिक उत्थान और कल्याण में कैसे सहभागिता अदा कर सकता है? समृद्ध सोच में सामाजिक समरसता सर्वोपरि होती है। हम सनातनी है जिसका अपना सामाजिक दर्शन है जिसमें मानवीय आदर्श मूल्यों के अनुरूप जीवन जीने का श्रेष्ठ सिद्धांत है।सामाजिक समरसता हमारे सामाजिक आदर्श का प्रत्यय है जो “आत्मवत सर्वभूतेषु ” की विराट सोच से जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
”आत्मवत सर्वभूतेषु” का अर्थ है -सभी को अपना समझ कर किया जाने वाला व्यवहार अर्थात आत्मिक अपनायत भरा व्यवहार। जब तक समाज के हर जन में सामाजिक समरसता की समझ विकसित नहीं होती है तब तक वह समाज सभ्य और श्रेष्ठ नहीं बन सकता है। समाज में कई व्यक्ति ऐसे होते है जो सामाजिक समरसता के प्रति अनभिज्ञ ही रहते है।वे पारिवारिक रिश्तों के ताने – बाने को भी नहीं समझते है बल्कि अपनी विकृत मानसिकता से एकला चलो की नीति से चलते है।ऐसे व्यक्ति सामाजिक समरसता को कदापि पुष्पित पल्लवित नहीं कर सकते है।जिस व्यक्ति के मन मस्तिष्क में आत्मीयता और समादार का भाव नहीं होता है वह सामाजिक उत्थान में कैसे सहभागिता निभा सकता है?
सामाजिक समरसता के लिए सनातन संस्कृति में भगवान श्रीराम का प्रेरणादायी जीवन सबसे बड़ा प्रतीक है। उन्होंने जीवन जीने के उच्चतम मर्यादा के मानकों पर खरा उतरते हुए वह कर दिखाया जो आज भी हम सबके लिए प्रेरणादायी है। प्रभु श्रीराम ने सामाजिक,पारिवारिक,आंतरिक और बाह्य सभी प्रकार की समरसता के लिए अपना सर्वस्व त्याग और अर्पण किया। जो व्यक्ति प्रभु श्रीराम के आदर्श मूल्यों से जीवन जीता है वह सचमुच महान है।ऐसे व्यक्ति की विराट एवं समृद्ध सोच अति वंदनीय और प्रशंसनीय है। सामाजिक समरसता की सोच ही श्रेष्ठ और श्रेयस्कर है। हमारे पुरखों में सामाजिक समरसता की गहरी समझ थी,यही कारण था कि उनके पारिवारिक रिश्तों में अद्भुत,अद्वितीय,अविश्वसनीय,
अतुलनीय और अकल्पनीय सामाजिक समरसता ताना – बाना था।जिसने सामाजिक एकात्मकता को मजबूती प्रदान की।
आप और हम सबका दायित्व बनता है कि हम सब सामाजिक समरसता की सोच से कार्य करे और सामाजिक उत्थान में अपनी सहभागिता ईमानदारी से निभाए।
आप सभी श्रेष्ठ वंदनीय महानुभावों को मेरा सादर वंदन -अभिनंदन सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
प्रवक्ता
सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम,वेबसाईट।