समाज विकास में अप्रत्यक्ष बाधा !
बन्धुओं ; जय श्री आईजी
समाज विकास के विषय में हम सामान्य समाजी कभी हां तो कभी ना, कुछ भी कह देते हैं, असल में विकास का पहला पायदान समाज – समुदाय का स्वाभिमान है और वो एकता के बिना संभव नहीं है !
समाज के बुद्धिजीवियों को एक विषय सदा चिन्तित करता रहता है, कि आज बहुतर समाजी साधन-सम्पन्न होने के उपरांत, समाज का विकास क्यों नहीं हो पा रहा है ?
विकास /स्वाभिमान शब्दों का उच्चारण करना सायद आसान है, मगर उसे समझना थोङा कठिन होता है। आजके समयानुसार देखा जाए तो हमें अपने अपने तरीके से नहीं, समाज हित के स्वाभिमान को अपने परिवार – घर से समझना होगा, जो अपने समाज के अस्तित्व को दर्शाता है।
उन्नत समाज का हर स्वाभिमानी विषय को विकास के नजरिए से ही देखा जाता है। परन्तु ; लम्बे समय से देखने को मिलता है कि कई समाजी स्वाभिमान को अपने अभिमान के रुप में मानता है। जब कोई मुखिया अभिमान में आ जाता हों, तो वो समाज को स्वाभिमानी पथ से भटका देता है।
समुदाय से जुङा हर व्यक्ति अपने व अपने समाज के उच्च आदर्शों की सदा कल्पना करता रहता है। मगर, समाजी को समाज से सही दिशा निर्देश जारी नहीं होने पर वह अपने मर्जी का मालिक बन जाता है और धीरे-धीरे अपने को भी अभिमान की ओर झुकाव कर देता है।
आज समाज में किसी बन्धु का अपने सात्विक विचारों से भटक जाना भी अपने समाज में शिक्षा के साथ संस्कारों की प्राप्ति न होना ही कारण है। हर अच्छे-बुरे कार्यों में हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं, अपने संस्कारों की अनदेखी कर रहें हैं। हमारा लिखने का तात्पर्य आप बखूबी समझ रहे हैं, इसके चलते हमें अपनी ही संतान की वजह से अपमानित होना पङता है और आगे के लिए यह सिलसिला जारी भी रहता है।
समाज एकता के बारे में एक उदाहरण के तौर पर लिखना चाहता हूँ कि समाज के अभिमान अथवा स्वाभिमान को भी समाज के पंचों (मुखियाओं) द्वारा एक – दूसरे गांव के अपने समाजियों में किसी कारणवश पंचायती में हमने देखा है कि गुनाहगार कौन हैं उसकी समीक्षा नहीं होती, उसकी जांच पङताल नहीं होती।
हमारे समाज में पंचायती की अच्छी व्यवस्था रही है, परन्तु आज सच्चाई की तह तक कोई नहीं जाना चाहते, समाज में सेवा भाव नहीं, पक्ष – विपक्ष होता है और पंचायती में बस ; मुखियाओं का ध्यान-केन्द्रित होता है तो वह अपने-अपने गाँव का पक्ष लेना, स्वयं के हितैषी मात्र के लिए उनका लक्ष्य रहता है।
आपने भी समाज में चल रही आजकी न्याय प्रणाली को देखा होगा तथा हम संक्षिप्त शब्दों में लिखते हुए आपका ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं कि आज समाज की ऐसी परिस्थितियों में दिखावा रूपी एकता ही हो सकती है, शुद्ध एकता के बिना विकास को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। इसलिए कोई भी सामान्य समाजी अपनी दृढ़ता पूर्वक समाज में एकता – समन्वय भाव दर्शाने में असमर्थ रहता है।
न्याय प्रणाली में भी समाजियों द्वारा अपने स्वार्थ का निर्माण करना, कभी भी एकता का परिचायक नहीं हो सकता है।
” एकता ही समाज विकास – स्वाभिमान का अस्तित्व हैं
आपका समाज सेवक :
जस्साराम लचेटा रामापुरम-चेन्नै
समाज विकास में अप्रत्यक्ष बाधा !
