श्री आईपंथ के ग्यारह नियमों में सातवां नियम है:-” सात गुरू की आज्ञा मानो।” भारतीय सनातन संस्कृति में गुरू की महिमा अनंत व अपरम्पार है।भारतीय सनातन दर्शन में गुरू को ईश्वर से बढ़कर बताया गया है क्योंकि गुरू ही ईश्वर प्राप्ति का पथ प्रदर्शक होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि,
” गुरूर ब्रह्मा,गुरूर विष्णु ,गुरूर देवो महेश्वराय।
गुरूर साक्षात पर ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।”
गुरू को ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहा गया है। भारतीय सनातन संस्कृति में गुरू की इतनी महत्ता है कि हर व्यक्ति का अपना गुरु जरूर होना चाहिए। जिस व्यक्ति का अपना कोई गुरू नहीं होता है उसे “नुगरा” बताया जाता है और उसके द्वारा किए गए दान या परमार्थ से उसे कोई फल नहीं मिलता है,ऐसी मान्यता है।यही कारण है कि सनातन संस्कृति में हर व्यक्ति का अपना कोई न कोई गुरू जरूर होता है।गुरू पूर्णिमा का पर्व गुरू की वन्दना के लिए ही है। एक व्यक्ति को सच्चा गुरू मिल जाय तो वह साधारण मानव से असाधारण मानव बन जाता है और उसका जीवन धन्य हो जाता है। गुरू व्यक्ति को सदा श्रेष्ठ व सदमार्ग की ओर प्रशस्त करता है।गुरू की कृपा से व्यक्ति के सम्पूर्ण कष्ट-पीड़ा समाप्त हो जाते है और व्यक्ति का जीवन आनंदमय हो जाता है। बस,जरूरत इस बात की है कि शिष्य गुरू के प्रति श्रद्धा भाव रखे।वह गुरू को सर्वोच्च समझे और गुरू के प्रति अगाध निष्ठा व श्रद्धा भक्ति रखे। गुरू के आदेशों की पालना करे और उनके उपदेशों को आत्मसात कर जीवन जिए।
जो व्यक्ति गुरू की कृपा प्राप्त कर लेता है वह पारस बन जाता है।
कहा गया है कि,
“गुरू में है मधुरता,गुरू में है निश्छलता।
गुरू का आशीर्वाद हो,पक्की हो हर सफलता।।”
श्री आईमाता जी अपने अनुयायियों को उनके स्वर्णिम व सुकूनदायी जीवन के लिए गुरू की आज्ञा मानने का संदेश दिया है।
आइये आप और हम सब श्री आईपंथ के अनुयायी भेल के सातवें नियम की ईमानदारी और सच्चाई से पालना करे और अपने मनुज जीवन को धन्य व सार्थक बनाए।
आप सभी धर्मप्रेमी श्रेष्ठजनों को मेरा सादर प्रणाम सा।
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
श्री आईमाता जी भेल(धर्म रथ):- एक युगान्तकारी पहल (१०)
