श्री आईपंथ के ग्यारह नियमों में पाँचवा नियम “पंचम मात-पिता की सेवा।” की पालना हो जाय तो जीवन सुखदायी और आनंददायी हो जाता है। भारतीय शास्त्रों में मात-पिता को देवता के समान माना गया है।मातृ देवो भवः!पितृ देवो भवः!!कहा गया है। माता-पिता को संतान का प्रथम गुरु माना गया है।बच्चा अपने जीवन में संस्कार परिवार रूपी पाठशाला से ही सीखता है। हर माता-पिता अपनी संतान को अच्छे से संस्कारित करने,सामाजिक मूल्यों की सीख देने और श्रेष्ठ आचरण-व्यवहार करने की शिक्षा देते है। हर माता-पिता अपनी संतान को योग्य बनाने का सर्वश्रेष्ठ कर्तव्यकर्म करते है। संतान का दायित्व बनता है कि वह अपने माता-पिता और परिवार में बड़े बुजुर्गों की सेवा ईमानदारी,निष्ठा और समर्पण भाव से करे। आज के भौतिकवादी युग में लोग खुदगर्ज व स्वार्थी बनते जा रहे हैं।वे अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक चले जाते है और अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आते है।यह आज जहाँ-तहाँ देखा जाता है। सीरवी समाज के लिए यह गर्व की बात है कि समाज के लोग अपने वृद्ध माता-पिता के साथ ऐसा बर्ताव नही करते है। यह सभ्य समाज को परिलक्षित करता है।समाज के लोग अभिनंदन के अधिकारी है।
जो भी संताने अपने मात-पिता की सेवा बड़ी पावन आत्मा से करती है,वे उनके आशीर्वाद से खूब प्रगति करते है।
कहा भी गया है कि:-
“माँ की दुआएं और पिता का प्यार।
याद रखो भाइयों!कभी जाता नहीं बेकार।।
मात-पिता का दिल जीत लो कामयाब हो जाओगे।
वरना सारी दुनिया जीत कर भी तुम हार जाओगे।।”
श्री आईपंथ के पाँचवे नियम की पालना करने वाले अपने घर परिवार को सुख-समृद्धि से सुवासित कर जाते है।
सार रूप यही है कि मात-पिता और बड़े बुजुर्गों की सेवा का प्रतिफल जरूर मिलता है।
संत-महात्माओं ने सीख दी है कि:-
“चाहे लाख करो तुम पूजा और तीर्थ करो हजार।
अगर मात-पिता को ठुकराया तो सब ही है बेकार।”
श्रेष्ठ संतान बन मात-पिता एवं बड़े बुजुर्गों की सेवा बड़े व उदार मन से करनी चाहिए।
आप सभी श्रेष्ठ वन्दनीय महानुभवों को मेरा सादर वन्दन-अभिनंदन सा।
🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
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