श्री आईमाता जी ने श्री आईपंथ के अनुयायियों को धर्म व आध्यात्म का संदेश देने के लिए ” भेल ” की जो शुभ शुरुआत की,वह सीरवी समाज के लिए एक युगान्तकारी पहल रही।उस काल से आजतक श्री आईमाता जी का भेल(धर्मरथ) सीरवी समाज के लोगों को धर्म व आध्यात्म का अनवरत रूप से संदेश दे रहा है। मारवाड़ व मालवा आँचल एवं निमंत्रण पर दक्षिण भारत में जहाँ सीरवी समाज के लोगों की बहुतायत है उन गाँवो- नगरों में श्री आईमाता जी का भेल(धर्मरथ) पहुँचता है और धर्मरथ के बाबा मंडली के लोग श्री आईमाता जी की साखी, उनका जीवन दर्शन तथा श्री आईपंथ के नियमों के बारे में समाज के बड़े बुजुर्गों, माताओं-बहनों और बांडेरुओं को अपना संदेश देते है। बाबा मंडली के लोग समाज के बंधुजनों से जात के रूप में समाज द्वारा तय राशि प्राप्त करते है।श्री आईपंथ के डोराबन्द से पूरी जात की राशि 20/₹ लेते है तथा उन्हें श्री आईमाता जी की वेळ (बेल) देते है। जो डोराबन्द नहीं है उनसे आधी जात की राशि 10/₹ रुपया प्राप्त करते हैं। इस प्राप्त राशि का विवरण तैयार कर दीवान साहब को बिलाड़ा प्रस्तुत किया जाता है,इस राशि में से ही श्री आईमाता जी के भेल के सुव्यवस्थित संचालन, ड्राइवरों व भैलियों के हागड़ियों को वेतन देने में उपयोग किया जाता है। वर्तमान समय में महंगाई के दौर में जात राशि बहुत कम है।
श्री आईमाता जी के भेल(धर्मरथ) के प्रति समाज के लोगों की अटूट व अगाध आस्था,श्रद्धा और विश्वास है तथा समाज के लोग जिस तरह से श्री आईमाता जी के भेल का स्वागत-सत्कार करते है वह अपने आप में अद्भुत व अद्वितीय है। समाज के लोग प्राचीन रस्म, रीति-रिवाज के साथ भेल का बधावा करते है। महिलाओं द्वारा भेल अगवानी के समय मंगल गीत गाना ढोल थाली की थाप पर महिलाओं का नाचना और पुरुषों द्वारा श्री आईमाता जी का जयघोष करना जन जन को रोमांचित कर जाता है।श्री आईपंथ के अनुयायी ही नहीं बल्कि उस समय ग्राम के छत्तीस कौम के लोग भी उस नजारे को देखने आते है, भेल(धर्मरथ) पर विराजमान श्री आईमाता जी के दर्शन का लाभ लेते है। सीरवी समाज के ही नहीं बल्कि अन्य समाजों के लोग भी श्री आईमाता जी के भेल और बैलों की पूजा-अर्चना करते है,उन्हें हरा चारा,पशुआहार तथा गुड़ खिलाते हैं।लोग अपने उत्तम व निरोगी काया के लिए श्री आईमाता जी की भेल के नीचे से होकर गुजरते हैं।
श्री आईमाता जी भेल के प्रति सीरवी समाज या डोराबन्द लोगों की अगाध आस्था, श्रद्धा और विश्वास नई राह प्रदान करता है। समाज के लोगों को नैतिक मूल्यों के प्रति जुड़ाव पैदा करता है। श्री आईमाता जी भेल से सीरवी समाज को सामाजिक समरसता तथा एकता को बल मिलता है। श्री आईमाता जी भेल पर जो बाबा मंडली और धर्म प्रचारक आते है वे श्री आईमाता जी की स्तुति और आरती का गान करते है उस समय समाज के बंधुजन बहने बढ़चढ़ कर भाग लेते है वे अपने आपको धन्य समझते है। श्री आईमाता जी के भेल की महिमा अपरम्पार है।
हम सबका दायित्व बनता है कि हम स्वयं श्रेष्ठ समाजी बने और श्री आईपंथ के जो नियम श्री आईमाता जी ने बताए है उस पर पूर्ण निष्ठा,ईमानदारी और हिय की पावनता से उनका अनुसरण करें। उन नियमो को आत्मसात कर जीवन जिए तथा अपने जीवन को सुकूनदायी बनाए।
वह समाज ही श्रेष्ठ व सभ्य है जो अपने सामाजिक प्रतिमानों, आदर्श मूल्यों और रीति-रिवाजों की परम्पराओ को लेकर आगे बढ़ता है। हम सब सीरवी समाज को श्रेष्ठ व सभ्य बनाने के लिए संकल्प ले कि अपने बच्चों को श्री आईमाता जी के वेळ(डोरा) के बारे में बताए और उसके बाँधने के उद्देश्य समझाए तथा सभी आवश्यक रूप से बेल धारण करें।सीरवी समाज के श्री आईपंथ के अनुयायी मन से संकल्प लेवे कि:- हर पुरुष अपने दाहिने हाथ की कलाई पर तथा स्त्री गले में वेळ जरूर बाँधे महिलाओं को गले में बेल धारण करने में असुविधा हो तो दीवान साहब माधव सिंह जी ने इन्हें भी हाथ में धारण करने की छूट प्रदान की है। हमारी अलग से पहचान हो इसके लिए हम सबको श्री आईमाता जी की वेळ (बेल) जरूर बाँधनी चाहिए। हम अपने पुरखों से सीख लेवे और उनके बतलाए पथ पर चले तथा उनकी तरह हम भी श्रेष्ठ समाजी बने।
श्री आईपंथ के वन्दनीय अनुयायियों को हमारा कोटिशः वन्दन-अभिनंदन सा।🙏🙏
(शेष अगले अंक में…)
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
श्री आईमाता जी भेल(धर्म रथ):-एक युगान्तकारी पहल(३)
