मान्यवर, स्वजातीय बन्धुओं !! जय श्री !!
आज समाज में कुछ बन्धुओं द्वारा अपनी आर्थिक स्थिति उजागर करने की नियति से समाज मेंं एक नई परंपरा लागू करने का प्रयास चल रहा है। जिसे स्वरुचि भोज यानि ” बफर्ट्स ” नाम से जाना जाता है। बफर्ट्स नामक इस भोज व्यवस्था के लिए आयोजन कर्ता अपने मेहमानों को सेवा नहीं देता,बल्कि मंच पर स्वयं की तारीफ का साधन व आगन्तुकों को अपने प्रांगण की सजावट समझते हुए उनसे सेवाएं बटोरता है। गौरतलब है कि हमारे समाज में मेहमान को भगवान का दर्जा देने व उचित सेवाएं देना अपना कर्तव्य समझा जाता है ।
आप श्रीमान जी से हमारा विनम्र निवेदन है कि स्वरुचि भोज के नाम बफर्ट्स प्रकार व्यवस्था पर चिन्तन कर गम्भीरता से उचित निर्णय लिरावें। बन्धुओं; मनुष्य जीवन ईश्वर की अनमोल धरोहर है और इस धरोहर की नीव हम मानव रूपी देह पर लगी है। ब्रह्म की इस धरोहर की दीर्घायु के कामना कर्ता हमारा अपना भी दायित्व बनता है,कि अपनी जीवात्मा व देह का सौहार्द पूर्ण सुरक्षा हेतु हम सदा प्रयासरत रहें। हम समाजियों को पूर्ण जानकारी है कि भोजन मनुष्य के जीवन की दिनचर्या का हिस्सा है, इसे अनुचित विधि से ग्रहण करने से जीवन की सार्थकता का स्तर गिरने लगता है।
आज कुछ समाजियों द्वारा पुरुष कारी का अभाव व पर्याप्त स्थान नही होने का हवाला देते हुए स्वरुचि भोज के नाम बफर्ट्स नामक प्रकार बनाकर समाज मेंं भोजन पाने की व्यवस्था थोपी जा रही है। किसी उत्सव,समारोह में भोजन परोसने व व्यवस्था संभालने की बात जब समाजियों के सामने आती है तब जानी मानी छत्तीस ही कौम,जन हितार्थ सीर (सीरवी ) समुदाय की यादें ताजा करते है। समाज मेंं एक दूसरे की सहायता करना हमारी अपनी पहचान रही है । समाजियों को देखना होगा कि भोजन आयोजन कर्ता अपने माता पिता, भाई -बहन, परिजनों व समाज से कितना लगाव रखता है, या समाज की ओट में धनवान होने का अपना परिचय दे रहा है ।
समाजी बन्धू का अपनी संस्कृति से जुड़े उत्सव आयोजन पर समाज को किसी प्रकार का कोई ऐतराज नही होता है, यदि आयोजन कर्ता संस्कारहीन विषय अपनाता है, तो समाज के लिए विषय गम्भीरता से सोचने का बन जाता है। समारोह में जहां हजारों निमंत्रित मेहमान होते है वहां सैकड़ों भाईपा/परिजन भी होंगे, समाज के रीति रिवाजों के अनुसार जीवन यापन कर्ताओं को उपर्युक्त समस्याओं का सामना करना ही नही पड़ता है। भोजन पाने का प्रकार बफर्ट्स के साथ आज के खान -पान की बदौलत मोटापे से जूझ रहे वर्तमान पीढ़ी का पाचनतंत्र संतुलन बिगड़ने की संभावना बढ रही है।
आज समाज मेंं अङौस पड़ोस की छोटी सोच के आधार पर बफर्ट्स नामक -खड़े खड़े भोजन पाना जैसी एक दिव्यांग व्यवस्था का चलन हमें देखने को मिल रहा है, वह हमारे सीरवी समाज की संस्कृति व रीति-रिवाज के विरुद्ध है। यह विषय आपके संज्ञान में आएं, हमारा प्रयास है। श्रीमान ; शास्त्रों में खड़े खड़े पानी पीना भी निषेध माना गया है तथा बफर्ट्स रूपी खड़े खड़े खान पान से भोजन को स्वीकार करने वाला यन्त्र जठराग्नि कमजोर होता है। भोजन पाने के विषय में कारागार का कैदी लायन में खड़ा होकर खाना लेता जरूर है, मगर : भोजन पाने का विधान तो बैठकर ही अपने शारीरिक व मानसिक इंद्रियों को तृप्त करता है । बीते कुछ समय पहले समाज के यज्ञोत्सव, महोत्सवों में लाखों की संख्या में समाजियों ने पत्तल या अपने अंगुछे की चाळ में भी भोजन लिया, परन्तु; भोजन का ग्रास भले एक ही हों, उसे आहूति का रूप मान -सम्मान के साथ उकड़ू /पालती बैठकर ही प्रसाद /भोजन ग्रहण करने का विधान रहा है ।
अंतत : बैठकर-विधिवत खान -पान से जठर तीव्रता ठीक रहती है। आज समाजियों की विडम्बना देखिए, समारोह /उत्सव आयोजन कर्ताओं द्वारा हजारों की पत्रिकाएं छपवाकर ” आपका आगमन हमारा सौभाग्य ” हमें सेवा का मौका प्रदान करावें -वगैरह वगैरह,लाखों खर्च करते है और मेहमानों के आगमन पर परिवार सहित आप स्वंय मंच पर चित्र-चलचित्र उकेरने में व्यस्त हो जाते है। समय की बलवानता को देखते हुए स्त्री-पुरुष, छोटे-बड़े, बुजुर्ग सभी मेहमानों को मझबूरन प्लेटें ढूंढकर लायन में लगना और मांग -मांगकर, खड़े खड़े भोजन पाना होता है। यह कैसी मेहमान नवाजी है।
अन्नदाता के नाम से विख्यात हमारा समाज अन की महत्ता और मेहमान नवाजी को बखूबी समझता है। मेहमानों को बाझोट लगा, बैठाकर एक-दूसरे को निवाला देते हुए भोजन खिलाना और पाने की परंपरा रही है। विवाह, गृह उत्सव या सामाजिक समारोह में समस्त मेहमान जनों का संतोषजनक भोजन प्राप्ति के उपरांत परिजनों के साथ बैठकर भोजन पाने का प्रतिरूप, पांतियां की मर्यादा में समावेश है, साथ ईश्वर का कृतज्ञता व्यक्त करते हुए स्व जीवात्मा /देह को भोजन रूपी आहूति देना समझा जाता है। हमें; विदेशी या अन्य धर्म / समुदाय की नकल करने की आवश्यकता नहीं है, हमारे समाज में सरल, सहज, सुन्दर व स्वच्छता पूर्ण वास्तविक मनुहार के साथ भोजन खिलाने व पाने की पर्याप्त परिपाटियां, व्यवस्थाएं है। अत : आप श्रीमान शैक्षिक वर्गीय महानुभावों व समाज के बुद्धिजीवियों से अनुरोध है कि समाज मेंं नए चलन बफर्ट्स नामक रोग ग्रस्त, विषैली व्यवस्था पर चिन्तन कर अपना विरोध प्रदर्शन करावें, ताकि वर्तमान पीढ़ी को संस्कारहीन दृष्टा से मुक्ति जाएं।
आपका स्नेहि : सीरवी जसाराम लचेटा रामापुरम चेन्नई