।।बिखरता सामाजिक ताना-बाना और सीरवी समाज(३)।।
सीरवी समाज एक कृषक समाज है जिसका अपना गौरवमयी इतिहास रहा है। समाज के लोगों ने अपने पुरुषार्थ ,कार्य के प्रति समर्पण और ईमानदारी की मिसाल कायम की।आज भी जहाँ कही समाज के बंधु-बहना को जिम्मेदारी मिलती है तो वे उस जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा एव दायित्वबोध की भावना से निभाते हैं।उसकी वजह हमारे डीएनए में हमारे पुरखों के वे संस्कार और आदर्श है जिसे हम लेकर आगे बढ़ रहे हैं।समाज के पुरखो ने उच्च मानवीय मूल्यों औऱ सामाजिक प्रतिमानों को आत्मसात कर जीवन जिया और उन्होंने अपनी बौद्धिक चातुर्य, विवेक एव सद्व्यवहार से अपनी पीढ़ी को श्रेष्ठ संस्कारों एव आदर्श मूल्यों की सीख दी।जहाँ परिवारों में मर्यादाये व सीमाएं कभी खंडित नही हुई और न ही परिवारों में संतानो के प्रति मानसिक अवसाद या तनाव रहा हो।यह सही है कि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी लेकिन सामाजिक समरसता की स्थिति अति उत्तम थी।भाईयो के बीच का आपसी आत्मिक स्नेह और अपणायत काबिलेतारीफ थी। पारिवारिक जीवन मर्यादित था। सभी लोग मर्यादित आचरण एव व्यवहार करते थे।समाज में लोग बड़े-बुजुर्गों के प्रति आदर का भाव रखते थे।श्रेष्ठ सामाजिक परम्पराओ के अनुसार सामाजिक गतिविधियों का संचालन होता था।जहाँ धनी और गरीब सभी पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से समाज के तय मानदंडों को पालन करते थे। कभी-कभार ऐसा हो जाता था तो समाज के लोग बैठकर मामले को उचित न्यायिक तरीके से हल कर देते थे।यही कारण था कि उस समय का हमारा सामाजिक ताना-बाना बहुत सुदृढ़ और वंदनीय था।
आज समाज आर्थिक रुप से साधन -सम्पन्न है लेकिन सामाजिक समरसता की बात आती है तो हम कमजोर होते जा रहे है। आज हमारे घर-परिवारों में संतान को लेकर बड़े-बुजुर्गों में तनाव व मानसिक अवसाद बढ़ता जा रहा है।यह मानसिक अवसाद सुखमय जीवन के लिए खरपतवार है।इस खरपतवार को कैसे खत्म किया जाय?इस पर समाज को मिल-बैठकर चिंतन करने की आवश्यकता है। यदि समाज में इस पर समय रहते ध्यान नही दिया तो यह समाज के लिए शुभकारी नही होगा। कुछ लोग समाज मे चन्द युवाओँ के सामाजिक परम्पराओ के विरुद्ध किए गए उनके कृत्यों को बहुत ही हल्के में लेते है और कहते है कि “अपने तो अपने परिवार का ध्यान रखना है,समाज को सुधारने का ठेका नही लेना है।” ऐसी विकृत एव तुच्छ मानसिकता से समाज का उद्धार नही हो सकता है। समाज का हित हर समाजी बन्धुजन-बहनो के लिए सर्वोपरि हो और सब समाजी सामाजिक समरसता,एकात्मकता और हमारे सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ़ बनाने के लिए “श्रेष्ठ व सभ्य सीरवी समाज” के सृजन में अपनी महत्ती भूमिका निभाए।
हाल ही में ऐसे केस सामने आ रहे है कि हमारे युवा व युवती सगौत्र विवाह के बंधन में बंध रहे हैं।ऐसे कृत्य को हम कैसे जायज ठहरा सकते है? समाज में ऐसे कृत्य होने लगे और समाज ऐसे सामाजिक नियम विरुद्ध कृत्यों को मौन होकर देखता रहेगा तो यह सभ्य समाज के लिए उचित नही है। एक भरापूरा व खुशहाल परिवार बिखर रहा है,उनके बच्चे जीते-जी बिन मात व बिन पिता के हो रहे हैं। एक माँ अपने बच्चों को असहाय छोड़कर सगौत्र विवाह कर रही है।एक युवा जानबूझकर नादान हो रहा है और अपनी कुटिल नीति व चालबाजी से ऐसे घर-परिवार को तबाह कर रहा है।यह सभ्य समाज के हित मे नही है। हम सबका परम दायित्व बनता है कि-हम सब मिलकर एक सर्वमान्य सामाजिक विधान बनाए औरस विधान को समाज के पटल पर लागू करे।जो परिवार ऐसे विधान को न माने उस परिवार के साथ समाज कोई व्यवहार नही करे। हम सबको “एक समाज,श्रेष्ठ-सभ्य समाज” की दिशा में बड़े मन से कोई न कोई कार्य करना ही होगा।व्यक्ति समाज से बड़ा नही होता है,एक व्यक्ति की पहचान समाज से होती है। हमारे पुरखों की न्याय प्रणाली को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सामाजिक विधान के द्वारा लागू कर ही हम सब अपने बिखरते सामाजिक ताने-बाने को बचा सकते है।
मेरा समाज के श्रेष्ठजनों एव प्रबुद्धजनो से विनम्र निवेदन है कि वे सभी सीरवी समाज को “श्रेष्ठ व सभ्य समाज” के नव निर्माण की दिशा में एक “सर्वमान्य सामाजिक विधान” बनाने के लिए अपने विचार जरूर रखे।आज हम सब इस तकनीक के माध्यम से अपने विचारों का समाजहित में सर्वश्रेष्ठ सदुपयोग करे।
यह चिन्तनीय आलेख मेरा नही है उस हर सीरवी समाजी का है जो अपने समाज को सभ्य व श्रेष्ठ बनाने की चिंता करता है और समाज में सामाजिक परम्पराओ के नियम विरुद्ध कृत्यों से हैरान व परेशान है।
आइये आप और हम सब सीरवी समाज की सामाजिक समरसता,एकात्मकता और मजबूत सामाजिक ताने-बाने के लिए अपने विचार रखे और उन श्रेष्ठ विचारो एव सुझावों से एक “सामाजिक विधान” बनाने की दिशा में एक पहल करे।
जय माँ श्री आईजी सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
सचिव
श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान जवाली(पाली)
बिखरता सामाजिक ताना-बाना और सीरवी समाज(३)।। सीरवी समाज एक कृषक समाज है जिसका अपना गौरवमयी इतिहास रहा है।
