आज अपनी महान संस्कृति के नैतिक मूल्यों एवं आदर्श प्रतिमानों का युवा पीढ़ी में अवमूल्यन हो रहा है।वह बहुत चिंतनीय है। हाल ही में पुणे में एक नाबालिग लड़के द्वारा नशे में धुत होकर तेजगति से गाड़ी द्वारा दो मोटरसाइकिल सवार को टक्कर मारने से जो दर्दनाक मृत्यु की घटना हुई उसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है।आज की हमारी युवा पीढ़ी जो नशे में धुत होकर जो अमानवीय आपराधिक कृत्य कर रही है, यह सभ्य समाज व भारत जैसे महान सांस्कृतिक मूल्यों वाले देश के लिए शुभ नही है।आये दिन ऐसी अनेकों घटनाएं हो रही है जिसे हम टेलीविजन,सोशल मीडिया व समाचार पत्रों में देख व पढ़ रहे हैं। आखिर हमारी युवा पीढ़ी को क्या हो गया है?क्यो वह संवेदना शून्य होती जा रही है?आज राष्ट्र-समाज में युवा पीढ़ी का जो अमर्यादित आचरण व व्यवहार देख रहे हो,उसकी वजह हमारा वातावरण है।हमने अपने महान संस्कृति के मूल्यों और आदर्श प्रतिमानों को नजरअंदाज कर शिक्षा के स्वरूप में बदलाव किया है।इस बदलाव का कारण ही है कि आज हमारी युवा पीढ़ी अनुशासनहीन और अमर्यादित होती जा रही है।हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारी संस्कृति के मानक मूल्यों एवं भारतीयकरण से दूर होती जा रही है।आज विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विद्यार्थियों को खुली छूट दी जा रही है।गुरुजनों और शिक्षकों के हाथ बांध दिए गए हैं।वह अपने अनुशासनहीन विद्यार्थियों को किसी प्रकार का दंड नही दे सकता है।उसे कुछ कह नही सकता है।आज अपने राष्ट्र में कक्षा एक से आठ तक विद्यार्थियों को अनुत्तीर्ण न करने का नियम है, यह श्रेष्ठ राष्ट्र व सभ्य समाज के निर्माण में बाधक है।जब हम विद्यालयों में पढ़ते थे उस समय और उससे पहले के समय में जो शिक्षा नीति थी जिसमे गुरुजनों के हाथ में अनुशासन की छड़ी थी लेकिन जब से शिक्षा नीति में बदलाव कर अनुशासन की छड़ी को छीन लिया गया है तथा शिक्षा के अधिकार में चलते अनुत्तीर्ण न करने की नीति को अपनाया है तब से विद्यालयो में अनुशासनहीनता में वृद्धि हुई है। आज वे अनुशासनहीन विद्यार्थी ही युवा अवस्था में अमर्यादित आचरण एवं व्यवहार कर रहे हैं। भारत जैसे संस्कृति मूल्यों एवं आदर्श प्रतिमानों के देश में अपनी पाश्चात्य देशों की शिक्षा नीति से श्रेष्ठ राष्ट्र और सभ्य समाज का निर्माण नही कर सकते है।सरकारों को चाहिए कि वे शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करे और भारतीय गुरुकुल व्यवस्था के मानक मूल्यों के अनुरूप शिक्षा मजबूत ढांचा खड़ा करे।हम अपनी संस्कृति के मानक मूल्यों एवं आदर्श प्रतिमानों के अनूरूप शिक्षा नीति से ही भारत को विश्वगुरु बना सकते है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नही दिया तो हम अपनी युवा पीढ़ी को आदर्श,संस्कार एवं नैतिक मूल्यों से विहीन ही देखेगे जो राष्ट्र-समाज के लिए शुभ नही है। श्रेष्ठ संस्कारो एवं रोजगारमूलक शिक्षा नीति से हम अपनी युवा पीढ़ी को श्रेष्ठ आचरण व व्यवहार कुशल बना सकते है।
(क्रमश…)
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
नैतिक मूल्यों का पराभव और युवा पीढ़ी
