मानव जीवन में युवा शक्ति राष्ट्र-समाज की प्रेरक शक्ति है। नैतिक मूल्यों से युक्त व्यक्ति ही राष्ट्र-समाज का नव सृजन कर सकता है।जिस व्यक्ति नैतिक मूल्य और सामाजिक आदर्श प्रतिमानों की समझ है और उसके अनुरूप जीवन जीता है वही इंसान है। जिस व्यक्ति में नैतिक मूल्यों का अभाव है उस व्यक्ति का जीवन नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण जैसा है। नैतिक मूल्यों के बिना ज्ञान न केवल बेकार हैं, बल्कि राष्ट्र-समाज के लिए भी खतरनाक हैं। हम अपनी युवा पौध को नैतिक ज्ञान कैसे देवे?किस तरह से हम नैतिकता का पाठ पढ़ाये कि-उनका भावी जीवन सुखमय-आनंदमय हो? क्योंकि आज हमारे सामने चुनौतियां बढ़ गयी है।आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का है जिसमे तकनीक का इतना प्रभाव है कि हमारे द्वारा दिया गया नैतिक ज्ञान प्रभावहीन हो रहा है।आज आदर्श प्रवचन और नैतिक भावों से परिपूर्ण बातें युवाओ को बकवास लगती है। आज का युवा जो पाश्चात्य संस्कृति में रंगा हुआ उसे मानवीय नैतिकता की बाते अव्यवहारिक लगती है। आज युवाओ में अश्लील व फूहड़ बातों का चलन तेजी से बढ़ रहा है।स्मार्ट मोबाईल के चलन ने हमारे सामाजिक सुदृढ नैतिक स्वरूप को तहस-नहस सा कर दिया है।आज घर-परिवार में तकनीक के प्रति इतना आकर्षण बढ़ गया है कि हम अपने पारिवारिक भूमिका का निर्वहन भी जिम्मेदारी से नही कर पा रहे हैं।मोबाईल के इस आकर्षण ने हमारी दुनियां को बदल कर रख दिया है। बच्चो में चिड़चिड़ापन,उद्दण्डता और अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है। बच्चे माता-पिता, बड़े बुजुर्गों तथा गुरुजनों का आदर नही करते है। यह स्थिति सभ्य समाज के लिए शुभ नही है।सभ्य समाज की संरचना के लिए नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक आदर्श प्रतिमानों का होना बहुत जरूरी है। आज हम सब बच्चो में नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक आदर्श प्रतिमानों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता महसूस कर रहे है। हम इसके लिए क्या प्रयास करे?इस पर गहन चिंतन-मनन की आवश्यकता है।सर्वप्रथम हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने परिवार की पाठशाला को संस्कार शाला बनाये।हम बच्चों को उनके जीवन के बाल्यकाल से ही श्रेष्ठ संस्कारो की सीख देवे। जो संस्कार उसके बाल्यकाल में डाले जाते है वे ही उसके जीवन को उज्ज्वल बनाने में महत्ती भूमिका निभाते हैं।कहते है कि “जैसा बोयेंगे वैसा काटेंगे।” हम घर-परिवार रूपी उद्यान में अपने बच्चों की सुंदर पौध को संस्कार रूपी ज्ञान से सिंचित करे। हम घर-परिवार में स्वयं मर्यादित आचरण की जिंदगी जिए।घर परिवार में मात-पिता के बीच का मनमुटाव,नौकझौंक,पारिवारिक झगड़ा व कलह बच्चों के लिए उचित संस्कार नही दे सकते है। जिस परिवार में रिश्तो का माधुर्य है उनके बच्चे नैतिक मूल्यों से ज्यादा युक्त होते है। हम सबका दायित्व बनता है कि हम नैतिक बाते ही नही करे बल्कि नैतिकता को व्यवहारिक जामा पहनाए अर्थात नैतिक मूल्यों के अनुरूप जीवन जिए।हमारी नैतिकता की झलक हमारे आचरण में हो,यह प्रयास सभी करे।हम सबका दायित्व बनता है कि हम बच्चो को भौतिकवाद की ओर उन्मुख न कर उन्हें नैतिकवाद की ओर ले जाए, उन्हें धर्म व आध्यात्म की सीख देवे।धर्म व आध्यात्म की सीख बच्चों को सदा सही व नेक राह का राही बनाने में मददगार होती है।वह किसी भी स्थिति-परिस्थिति में नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक आदर्श प्रतिमानों से परे जीवन जीने की ओर प्रवृत्त नही होता है।उसके दिलोदिमाग में नैतिक मूल्यों के प्रति अगाध श्रद्धा व निष्ठा रहती है।हमारा दायित्व बनता है कि हम बच्चों को पूजा -आराधना करना सिखाये,समाज व धर्म के ईष्ट देवी-देवताओं का ज्ञान कराए,सामाजिक मूल्यों एवं प्रतिमानों का ज्ञान कराए।धार्मिक या सद्साहित्य पढ़ने को देवे।हम घर-परिवार में धार्मिक पाठ व यज्ञ समय-समय पर कराते रहे,उनसे बच्चो का जुड़ाव बढ़ाये।हमारी आराध्य व कूलदेवी का ज्ञान कराए।हमारी गौत्र व सामाजिक परम्पराओ का ज्ञान कराए। ऐसा करके ही हम उनके भावी जीवन को नैतिक मूल्यों से युक्त बनाने में सफल हो सकते है। हम सब परिवार की पाठशाला को संस्कारशाला बनाने में सफल हो जायेंगे तो निश्चित ही हम आज के सांस्कृतिक प्रदूषण को न केवल कम करने में सफल होंगे बल्कि इसे समाप्त कर अपने देश को पुनः नैतिक मूल्यों एवं आदर्श प्रतिमानों से युक्त एक श्रेष्ठ संस्कारो से युक्त राष्ट्र-समाज का निर्माण करने में सफल हो जायेंगे।
(गतांक से आगे…)
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
नैतिक मूल्यों का पराभव और युवा पीढ़ी(१)।।
