चिंतनीय आलेख:- बिखरता सामाजिक ताना बाना और सीरवी समाज(२)
युवा किसी भी राष्ट्र-समाज की अनमोल धरोहर है। युवाओ के चारित्रिक विकास पर ही राष्ट्र-समाज का भविष्य तय होता है।जिस समाज के युवाओ का नैतिक बल मजबूत है और अपने धर्म व आध्यात्म के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करते है वह समाज सभ्य और श्रेष्ठ है। हमारे समाज में धर्म और आध्यात्म की शिक्षा का प्रचार-प्रसार बहुत ही कम है। हमारे धर्म गुरु या संत महात्माओ को धर्म व आध्यात्म के प्रचार-प्रसार पर विशेष फोकस रखना चाहिए।आज के इस प्रौद्योगिकी युग में युवाओ को नैतिक रूप से धर्म एवं आध्यात्म का ज्ञान ही मजबूत बना सकता है।धर्म व आध्यात्म ही हमारी युवा शक्ति को सामाजिक मूल्यों,आदर्श प्रतिमानों एवं परम्पराओ से विस्मृत करने से बचा सकता है। आज के इस दौर में हम देख रहे हैं कि हमारे युवाओ में सामाजिक आदर्श मूल्यों एवं प्रतिमानों का अवमूल्यन हो रहा है। आज समाज में ऐसे नजारे सामने आ रहे हैं जो सभ्य समाज के लिए उचित नही ठहरा सकते है।युवाओं के दाम्पत्य जीवन में माधुर्य नही है। परिवार में माता-पिता एवं बड़े-बुजुर्गों के प्रति आदर का भाव नजर नही आ रहा हैं। युवा अपनी शादी के अल्प समय में ही माता-पिता से अलग होकर अपना परिवार बचा रहे हैं। एकल परिवार के सृजन के बाद भी पति-पत्नी में आपसी मनमुटाव व झगड़ा होना आम होता जा रहा है। उसकी परिणति एक स्त्री द्वारा अपने पति व बाल बच्चों को छोड़कर घर से भागने जैसी घटनाओं के रूप में सामने आ रहे हैं। अनेकों फलते-फूलते परिवार टूट रहे हैं।ऐसी घटनाएं सभ्य समाज के लिए शुभकारी नही है। समाज मूक दर्शक होकर देख रहा है।सबसे पीड़ादायक बात यह है कि समाज के धर्म गुरु दीवान,पीरोसा, संत-महात्मा एवं समाज के संगठन अखिल भारतीय सीरवी महासभा एवं नवयुवक मंडल सब मौनवृत है और ऐसे नजारे को होते देख रहे हैं। सामाजिक परम्पराओ के विरुद्ध हो रहे ऐसे कृत्यों को रोकने की दिशा में कोई कार्यवाही नही कर रहे हैं। यदि ऐसा ही होता रहा तो एक दिन हम समाज का मूल ढाँचा ही जर्जर हो जाएगा।यह सीरवी समाज के अस्तित्व के लिए उचित नही है।समाज के धर्म गुरु,संत-महात्मा जन और बुद्धिजीवी वर्ग एक सर्वमान्य सामाजिक विधान बनाने की दिशा में सकारात्मक प्रयास करे और समाज की युवा शक्ति को सामाजिक आदर्श मूल्यों एवं प्रतिमानों से पतित होने से बचाये। सामाजिक विधान के लिए सम्पूर्ण वडेरो में बैठक रखकर सामाजिक विधान को सर्वमान्य स्वीकृति दिलाने की दिशा में प्रयास हो।
हम अपनी युवा शक्ति को श्री आई पंथ के नियमों, धर्म एवं आध्यात्म की शिक्षा देने की दिशा में कार्य करे।ऐसा करके ही हम समाज के युवाओ को चारित्रिक दृष्टि से मजबूत कर सकते है और समाज के आदर्श प्रतिमानों एवं परम्पराओ से विमुख होने से बचा सकते है।
आइये हम सब सभ्य सीरवी समाज के सृजन की दिशा में पूर्ण ईमानदारी एवं सच्चाई से प्रयास करे और समाज को श्रेष्ठ पायदान पर स्थापित करने का सर्वोत्तम प्रयास करे।
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
सचिव
श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान,जवाली(पाली) राजस्थान
चिंतनीय आलेख:- बिखरता सामाजिक ताना बाना और सीरवी समाज
