।।समृद्ध सोच और सामाजिक उत्थान(८)।।
राष्ट्र और समाज का कल्याण उसके नागरिकों की विराट सोच और विशाल सहृदयता से किए गए त्याग और अर्पण पर निर्भर होता है। सामाजिक उत्थान – कल्याण के लिए यह आवश्यक है कि समाज के हर नागरिक को अपने समाज की सांस्कृतिक विरासत,प्रतिमानों,मूल्यों और परम्पराओं पर गर्व हो और व्यक्ति अपनी सामाजिक रीति – रिवाजों,परम्पराओं और प्रतिमानों की जड़ों से जुड़ा हुआ हो।
हम तो दिल से कहते है कि,
“जिस समाज में हम जन्मे है वह हमारे लिए बड़ा हैं,
अहो देखो !हमारे सामने समाज हित श्रेष्ठ करने के लिए कितना कर्मक्षेत्र पड़ा है।”
हर सच्चा समाजी महानुभाव उक्त भावों से युक्त होकर समाज को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए सामाजिक समरसता और एकात्मकता से अपना सर्वोत्तम त्याग और अर्पण करता है तो उस समाज का उत्थान होना निश्चित है। आज हर समाज स्वयं को विकास के पथ पर अग्रसर होते हुए देखना चाहता है और सामाजिक उत्थान हेतु नव बदलाव की बहार चल रही है।सीरवी समाज के श्रेष्ठ समाजी बंधुजन – बहनों के अप्रतिम त्याग और अर्पण का ही सुखद परिणाम है कि हमारी जन्मभूमि राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के गांवों एवं शहरों में ही नहीं बल्कि कर्मभूमि भारत के विभिन्न शहरों में भी आराध्य देवी मां श्री आईजी के बड़े बड़े धाम बने और उनकी भव्यतम तथा दिव्यतम ढंग से प्राण प्रतिष्ठाओ के कार्यक्रम हुए।यह समाज के प्रति विराट सकारात्मक सोच से किए गए त्याग का ही परिणाम है। समाज के श्रेष्ठजनों ने सामाजिक उत्थान – कल्याण हेतु उदार दिल से अपना योगदान किया।भारत के विभिन्न शहरों में श्री आई माता धाम के साथ आगंतुक समाजी बंधुजन – बहनों के लिए आवासीय एवं खान – पान की सुंदर सुविधाएं मिलना निश्चित सामाजिक समरसता एवं एकात्मकता को मजबूती प्रदान करने में मिल का पत्थर साबित होगा। समाज का शैक्षिक उन्नयन हो इसके लिए सीरवी समाज के बड़े बड़े छात्रावास भवनों का निर्माण हुआ और यह विजन सतत रूप से जारी है जो सामाजिक उत्थान को नव गति प्रदान कर रहा है।
सामाजिक उत्थान – कल्याण के लिए जिस तरह से समाजी महानुभावों की सोच विस्तृत हुई है वह निश्चित ही समाज को श्रेष्ठ एवं सभ्य बनाने की दिशा में महत्ती भूमिका अदा करेगी।
सीरवी समाज के हर समाजी बंधुजन – बहना का यह दायित्व बनता है कि वह बड़े एवं उदार मन से समाज हित में अपना त्याग और अर्पण का दायित्व निभाते रहे। समाज में चंद लोग ऐसे होते है जो सामाजिक प्रतिमानों और समाज की मानक परम्पराओं की जड़ों से जुड़े हुए नहीं रहते है उन्हें अपनी सामाजिक विरासत पर गौरव का भान नहीं है उनसे हमारा विनम्र अनुरोध है कि वे भी सामाजिक उत्थान के हिस्सेदार बने और समाज हित में अपना त्याग और अर्पण जरूर करे। प्रकृति का यह नियम है जो पौधा जड़ों से कट जाता है वह कदापि पुष्पित और पल्लवित नहीं होता है। हर सीरवी समाजी को अपने पुरखों की सामाजिक सांस्कृतिक विरासत पर गौरव का भान हो।
हम समाज की युवा पीढ़ी का आह्वान करते है कि वे अपनी सामाजिक विरासत की जड़ों से सदा जुड़ाव रखे और सामाजिक उत्थान -कल्याण के लिए अपनी विराट सकारात्मक सोच से अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान करे।
“आह्वान तुम्हारा नवयुवकों !
तुम समाज उत्थान करण में आओ।
उन्नति की सर्वोच्च डगर पर,
अपने समाज को आज बढ़ाओं।।”
आप सभी श्रेष्ठ वंदनीय महानुभावों को मेरा सादर वंदन – अभिनंदन सा।🙏🙏
आपका अपना हीराराम गेहलोत, सोनाई मांझी
प्रवक्ता:–,सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम।