प्रेरणा का स्रोत…. सीरवी समाज की उन्नति में सर्वमान्य रूप से सीरवी समाज के संस्कारों व आदशों के महत्व को स्वीकारा जाता हैं। वास्तव में यह सत्य भी है, क्योंकी व्यक्ति तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक वह सफल व्यक्ति वाले संस्कारों तथा आदर्शों को ग्रहण नहीं करता। अतः ये तो सफलता की पाठशाला ही माने जाते रहे हैं । हमारी हर पीढ़ी को अपने पुरोधाओं से ये संस्कार व आदर्श विरासत के रूप में मिले और हमने भी अपनी इस विरासत को सहेजने-संवारने में कोई कसर नही रख छोड़ी। इसी का परिणाम सीरवी समाज की गौरवशाली सफलता हैं, जिसकी मुरीद पूरी दुनिया हैं।
संस्कार कोई एक घुटी नहीं होती जिसे हम अपनी पीढ़ी को पिला दें। यह तो वास्तव में हमारा व्यक्तित्व व कृतित्व भी हैं, जो हमारी भावी पीढ़ी को मार्गदर्शित करता है। इसके लिये हमें अपने आपको व्यक्तित्व व कृतित्व को इस तरह संवारना जरुरी हैं, जिससे हमारी आगे आने वाली पीढियाँ प्रेरणा ग्रहण कर सके। कहा जाता है कि जैसा वातावरण मिलता है, वैसा ही व्यक्तित्व बच्चों का बन जाता हैं। (उदाहरण जैसे किसान के बेटे को खेती सिखाने की जरूरत नहीं पड़ती और वणिक के बेटे को व्यापार)। वास्तम में यह सब हमारे संस्कारों का ही प्रतिफल है, जिसके परिणाम हमारी भावी पीढ़ी में दिखाई देते हैं। अतः यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को क्या बनाना चाहते हैं? जैसे वातावरण में हम उन्हें रखेंगे जैसे संस्कार या प्रेरणा हम देंगे, उसी का प्रतिबिंब हमें हमारी भावी पीढ़ी में दिखाई देगा।
मनोहर सीरवी (जनासनी-साँगावास, मैसूर)
पूर्व संपादक- सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम