युवा राष्ट्र-समाज की अनमोल धरोहर है।किसी भी राष्ट्र-समाज का स्वरूप उनके युवाओं के व्यक्तित्व पर निर्भर है।यदि युवा का व्यक्तित्व उच्च नैतिक मूल्य, आदर्श प्रतिमानों एवं सिद्धांतो से युक्त है तो वह राष्ट्र-समाज उतना ही उन्नत व उत्तम है।नैतिक मूल्यों के बिना उन्नत,विकसित व श्रेष्ठ राष्ट्र-समाज की परिकल्पना सम्भव नही है।मैंने अपने गत आलेख में लिखा है कि हम सबका प्रथम दायित्व बनता है कि हम अपने परिवार रूपी उद्यान को सँवारे।उसे खूबसूरत बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करे।आजकल हम सुनते हैं कि हमारे आसपास का वातावरण बहुत दूषित हो गया है,बच्चों के चाल चरित्र में बहुत बदलाव आ गए हैं।बच्चे अनुशासित और अमर्यादित आचरण करते है। उसका कारण हम स्वयं ही है।हमने भौतिकवाद को हद से ज्यादा अहमियत दी है और हमारी असली संपदा जो हमारे बच्चे है उन पर ध्यान कम दिया है।हम देखते है कि आज व्यक्ति स्वकेन्द्रित होता जा रहा है। वह अपने ही लाभ की सोचता है।धन के अर्थोपार्जन में वह स्वयं असंयमित होता जा रहा है। भौतिकवादी मानसिकता के चलते उसके दिमाग में एक ही धयेय होता है कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाय। उसी धुन में वह अपने प्यारे बाल-बच्चो व परिवार को उचित समय नही दे पा रहा है।ऐसी स्थिति में परिवार रूपी उद्यान कैसे पुष्पित-पल्वित हो सकता है? यह सही है कि बिना अर्थ के कुछ होता नही है लेकिन अर्थोपार्जन में पागल हो जाना भी उचित नही है। आज के एकल परिवार व्यवस्था में मुखिया की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी संतान को श्रेष्ठ संस्कार,शिष्टाचार और नैतिक मूल्यों की सीख देवे। समाज के नैतिक मूल्य,प्रतिमान व परम्पराओ का ज्ञान बच्चो को देना बहुत जरूरी है। आज की कड़वी सच्चाई यह है कि बच्चो को सामाजिक आदर्श मूल्यों एवं प्रतिमानों की समझ ही नही है। बच्चो में संस्कार,आदर्श व सिद्धान्त का पता ही नही है। उसका भयावह परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं कि हमारे युवा हमारी महान सांस्कृतिक व सामाजिक आदर्श मूल्यों और सिद्धांतों से परे जीवन जी रही है। वह अपने कुंठित मानसिकताओं को ही फलीभूत कर रही है।आज हम देखते है कि प्रेम विवाह के नाम से क्या-क्या हो रहा है?समाज का मूल स्वरुप क्षत-विक्षत होता जा रहा है। आज परिवार के परिवार टूटते जा रहे हैं।हर तीसरा परिवार अपनी ही संतानों के कृत्यों से परेशान है। आज के युवा अपने मन की कुंठित भावनाओ को पूर्ण करने के लिए स्वयं निर्णय ले रहे हैं। उसे परिवार व समाज की ईज्जत-आबरू की कोई चिंता नही है। उसी का परिणाम है कि आज प्रेम विवाह के मामले बढ़ रहे हैं।विधर्मी एवं विजातीय विवाह बंधन के मामले नित बढ़ते जा रहे हैं। यह स्वरूप सभ्य समाज के लिए उचित नही है। आज राष्ट्र के युवाओ में आत्महत्या,हत्या का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।उसका मूल कारण युवाओ का अपनी महान सांस्कृतिक व सामाजिक परम्पराओ से परे विवाह की पद्धति अपनाना है। हम अपने बच्चों को उचित ढंग से सामाजिक आदर्श प्रतिमानों व परम्पराओ की सीख देवे और अपने बच्चों में उचित ढंग से संस्कारों, नैतिक मूल्यों एवं शिष्टाचार की शिक्षा देवे। परिवार के मुखिया की महत्ती भूमिका का निर्वहन करते हुए अपने प्यारे बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए बच्चों को संस्कार ,नैतिक मूल्य एवं शिष्टाचार का पाठ जरूर पढ़ाए और बच्चो की परवरिश पर उचित ध्यान देवे।ऐसा करके ही हम आसपास के वातावरण को उच्च मानवीय एवं सांस्कृतिक मूल्यों से परिपूर्ण बनाने में सफल होंगे।जब हमारा सांस्कृतिक वातावरण स्वच्छ व साफ होगा तो निश्चित ही हमारे युवाओ का व्यक्तित्व उच्च नैतिक मूल्यों एवं आदर्श प्रतिमानों से परिपूर्ण होगा। ऐसे युवाओ से हम एक श्रेष्ठ राष्ट्र-समाज को बनाने में सफल होंगे।(क्रमशः…)
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
नैतिक मूल्यों का पराभव और युवा पीढ़ी(२)
