श्री आईमाता जी का भेल(धर्म रथ) की शुभ शुरुआत ने समाज में धर्म व आध्यात्मदर्शन की पावन सरिता का प्रवाह किया है।श्री आईमाता जी द्वारा की गई इस शुभ शुरुआत ने समाज के जन-जन में धार्मिक आस्था और विश्वास में अभिवृद्धि की और श्री आईपंथ के नियमों के प्रचार-प्रसार से लोग नैतिक मूल्यों से आबद्ध हुए है इसमें कोई संशय नही है।निश्चित ही एक युगान्तकारी पहल है जो समाज में नव चेतना का संचार कर रही है।इस नव चेतना के वाहक के रूप में समाज के श्रेष्ठ शिक्षाविद परम आदरणीय श्रीमान दीपाराम जी काग निवासी गुड़िया(जैतारण) ने सीरवी समाज में धार्मिक आस्था,विश्वास और उसकी सामाजिक श्रेष्ठ परम्पराओ,मूल्यों तथा मानकों के लिए अपना एक वर्ष श्री आईमाता जी भेल को समर्पित करने की पहल की है वह अति वन्दनीय और सराहनीय है। हम सब परम आदरणीय श्रीमान दीपाराम जी काग से प्रेरणा लेवे और समाज को कुछ देने की भावना से अपना कर्तव्यकर्म ईमानदारी से करे।
हर समाजी बंधुजन-बहने समाज की विरासत,उसके आदर्श प्रतिमान व परम्पराओ का गौरवगान करे और मन में समाज के प्रति उत्तम भाव व धारणा रखे।
हम तो दिल की सच्चाई से कहते है कि:-
” जिस सीरवी समाज में हम जन्में है वह हमारे लिए बड़ा है।
अहो देखो!समाजहित श्रेष्ठ करने के लिए कितना कर्मक्षेत्र पड़ा है।”
हम सभी सीरवी समाजी महानुभाव श्री आईपंथ के नियमो की पालना पूर्ण ईमानदारी और सच्चाई से करे।श्री आईपंथ का दसवां नियम:-“दस कन्या को धर्म परणाओ।” है।यह नियम समाज को उत्तम सीख दे रहा है कि वह अपनी कन्या(बेटी) का शुभ विवाह धार्मिक रीति-रिवाज से करे और कन्या के लिए वर पक्ष से धन की किसी प्रकार से मांग नही करे बल्कि अपनी श्रद्धानुसार उसका विवाह कर उसे घर से विदा करे।बेटी का रुपया-पैसा लेना शुभ नही है। यह पुण्य नही पाप है।श्री आईमाता जी ने जो सीख दी है और हमें जो राह दिखाई है उस राह पर चले और दसवें नियम की पूर्णतः पालना करे।यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि समाज में कन्या के विवाह के लिए रुपये-पैसे लेने की गलत परम्परा चल पड़ी है जो सही नहीं है। सनातन धर्म में कन्या दान को श्रेष्ठ व परम पुण्य कार्य समझा गया है।हमारे समाज में भी कन्या दान को उत्तम माना गया है।
“भारत का आध्यत्म चिंतन-आईपंथ” नामक पुस्तक में लिखा है कि:-
“वर पक्ष से पैसा मत लेना,
कन्या का धर्म विवाह करना।
अपनी श्रद्धा शक्ति के बल,
कुंकुम कन्या हाजिर करना।।”
समाज में श्री आईपंथ के दसवें नियम की अनुपालना सही से हो इसके लिए समाज को इस पर सामाजिक विधान बनाना चाहिए जिसमे इस गलत चलन पर रोक लग सके। समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो अपने बेटों की शादी के लिए कन्या पक्ष को रूपये देने का लोभ-लालच देते है,यह भी गलत है।
सीरवी समाज को चाहिए कि आर्थिक रुप से विपन्न परिवारों को अपनी लाडली के विवाह ने सामाजिक स्तर पर योगदान करें या सामुहिक कन्या विवाह की शुरुआत हो जिससे श्री आईपंथ के दसवें नियम की पालना हो सके।
युवा पीढ़ी से भी विनती है कि वे विवाह के उपरांत अपने गृहस्थी को सामाजिक श्रेष्ठ मानकों से चलाए औऱ गृहस्थ रूपी वाटिका को अपने श्रेष्ठ सद्कर्मो से खुशहाल बनाए।
मुझे आप सभी पर अगाध विश्वास है कि आप श्री आईपंथ के दसवें नियम की पालना पूर्ण ईमानदारी ,सच्चाई और दृढ़ संकल्पवादी सोच से करेंगे।
आप सभी श्रेष्ठजनों को मेरा सादर प्रणाम सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
।।श्री आईमाता जी भेल(धर्म रथ):-एक युगान्तकारी पहल(१३)।।
