श्री आईपंथ का नवाँ नियम है:-“नव पर नारी माता जाणो।”
आराध्य देवी श्री आईमाता जी ने धर्म व आध्यात्मदर्शन का उपदेश देते हुए कहा था कि -“आप सगळा लोग नेकी पर चालजो और नारी जाति रो मान राखजो तथा पर नारी को माता समझना।” भारतीय संस्कृति में उज्ज्वल चरित्र को सर्वोच्च पायदान पर रखा है और व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह स्वयं को उच्च चरित्रवान रखे तथा अपने अंतर्मन में वासना की ज्योत को प्रज्वलित न होने देवे। वेदों में लिखा है कि:-
” मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्। आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः।। ” अर्थात जिसकी दृष्टि में पराई नारियां माता के समान हैं, पराया धन मिट्टी के ढेले के समान है और सभी प्राणी अपने ही समान हैं, वही ज्ञानी है। वही व्यक्ति परम पूजनीय और वन्दनीय है। मनुष्य जीवन मे मन,वचन,कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करना सर्वोपरि माना गया है। सनातन संस्कृति में जहाँ नारियों के लिए पतिव्रता धर्म की बात कही गयी है वही दूसरी ओर पत्नीव्रता धर्म का भी गुणगान है। “भारत के आध्यात्म चिंतन-आईपंथ” पुस्तक में लिखा है कि:-“नारी की आन बान मर्यादा की,
हम पुरुषार्थ रक्षा करे।
शील सतीत्व पर आँच न आए,
हम दैनिक ऐसा कर्म करे।”
हर पुरुष को चाहिए कि वह मन,वचन और कर्म से नारी के सम्मान ,अस्मिता औऱ गरिमा की रक्षा के लिए अपना दायित्व निभाए। आज इस भौतिकवादी व भोगवादी तुच्छ मानसिकता से युक्त जीवन में सबकुछ बदला-बदला नजर आ रहा है और व्यक्ति पथभ्रष्ट होकर इस दलदल में गिर रहा है और अपने चरित्र पर दाग लगा रहा है जो जिंदगानी को ही लील रहा है।
कहा गया है कि:-
“पर नारी पैनी ठौरी, तीन ठौर से खाय।
धन छीने,यौवन हरे और मरिया नरक ले जाय।”
समझदार व्यक्ति पर नारी के झूठे प्रेमजाल में कदापि नहीं फँसता है। और न ही वह काम वासना से प्रेरित होकर अमर्यादित आचरण व व्यवहार करता है।
पुरखों की इस बात को जीवन का ध्येय बनाये और सुखी जीवन के लिए चार बातों से परे रहने की सीख दी है।
“चोरी,चुगली,जामनी और पराई नार।
जो सुख चावे जीव तो,तज दे बातां चार।”
सुखमय-आनंदमय जीवन के लिए श्री आईपंथ के हर अनुयायी को चाहिए कि वह श्री आईपंथ के नवम नियम की पालना करे और अपने आपको उच्च मानवीय मूल्यों से युक्त सदाचारी और चरित्रवान बनाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करे।
आप सभी श्रेष्ठजनों को मेरा सादर वन्दन-अभिनंदन सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
श्री आईमाता जी भेल (धर्म रथ):- एक युगान्तकारी पहल
