।।महान तपस्वी संत श्री श्री 1008 श्री गुलामहाराज का जीवन दर्शन।।
भारतीय सनातन संस्कृति में संत-महात्माओं की अपनी महिमा है जिन्होंने धर्म व आध्यात्म की शिक्षा से समाज के लोगो को श्रेष्ठ जीवन जीने की राह दिखाई।उनके द्वारा दी गयी शिक्षा व संदेशों से समाज व राष्ट्र में अमन चैन,भाईचारा और सुख-शांति की स्थापना हुई। संत-महात्माओं ने निर्विचार होकर जीनव जीने की कला सिखाई। संतो ने सदा मानव कल्याण को प्राथमिकता दी और समाज में सहनशीलता,सहअस्तित्व,सहयोग,समर्पण,दया-करुणा और साम्प्रदायिक सदभाव जैसे मानवीय मूल्यों की स्थापना हो इसके लिए उन्होंने जोर दिया।
ऐसे ही सीरवी समाज में गुलामहाराज जैसे तपस्वी संत तथा आराध्य महात्मा हुए जिन्होंने अपने सरल व सादगीपूर्ण जीवन से समाज के लोगो को धर्म व आध्यात्म की शिक्षा दी।
जन्म एवं बाल्यकाल:-
पाली जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर लाम्बिया ग्राम जो खैरवा के पास स्थित है जो संत श्री गुलामहाराज की तपोभूमि है। लाम्बिया के एक साधारण एव गरीब किसान श्री गमनाराम जी चोयल निवास करते थे।उनकी धर्मपत्नी मगनी बाई की पावन कोख से नर रत्न श्री गुलाराम का जन्म हुआ है। भाट पोथी के अनुसार ग़ुलाराम जी का जन्म विक्रम संवत १९२५ की माघ सुदी १३ को हुआ था।गुलाराम जी अपने मात-पिता की दूसरी संतान थी।उनके बड़े भाई का नाम चंदाराम जी था। श्रीमती मगनी बाई का अपने लाडले पुत्रो के प्रति अपार स्नेह भाव था। उनके पावन स्नेह आँचल में दोनों पुत्रों का बचपन गुजरा।
गुलाराम जी के पिताश्री गमनाराम जी बहुत ही मेहनती एव हिम्मत वाले किसान थे।उनके पास स्वयं के १३० बीघा कृषि भूमि थी।उनकी खेतीबाड़ी से अच्छी उपज पैदा होती थी लेकिन राठौड़ी राज होने से उनको कम ही मिलती थी। लाम्बिया ग्राम ठाकुर फतेहसिंह जी की जागीर थी। ठाकुर अपने स्वयं के कामकाज में लोगों को बेगार कराने बुलाते रहते थे।संतश्री गुलामहाराज जी के पिताश्री को कई बार रावले में बेगार करनी पड़ी थी। ऐसा कहा जाता है कि जब दोनों भाई जिनकी उम्र १२ व १० वर्ष की थी कि गमनाराम जी देहलोकगमन हो गए। श्रीमती मगनी बाई व दोनों पुत्रों ने हिम्मत से खेतीबाड़ी के कामकाज से अपनी आजीविका का भरण पोषण किया। एक -दो वर्ष बाद ही माताश्री मगनी बाई भी उन दोनों पुत्रों को छोड़कर वैकुण्ठधाम चली गयी। गाँव के ठाकुर फतेहसिंह जी ने ग़ुलाराम जी को अपने यहाँ पर रावले की रखवाली के लिए रख दिया। बड़े भाई चन्दाराम जी की सगाई नरसिंहपुरा गाँव में हो गयी और कुछ समय बाद उनका विवाह भी हो गया।अब उनके परिवार में खाना बनाने की समस्या भी हल हो गयी।कहा जाता है कि उस समय भयंकर अकाल पड़ा था,उस लाम्बिया ग्राम से कई लोग मालवा चले गए।उस समय ग़ुलाराम जी के बड़े भ्राता श्री चंदाराम जी अपनी पत्नी को लेकर मालवा चले गए और वही उन्होंने अपना स्थायी रहवास कर दिया।यह गाँव पुंजापुरा था जो मध्यप्रदेश के देवास जिले में स्थित है।
ग़ुलाराम जी महाराज के पोते जो स्वयं संत एव लाम्बिया गुलामहाराज जी धाम के गादीपति गंगासागर जी महाराज कोहै उन्होंने बताया कि- मेरे दादा गुलाराम जी बहुत मेहनती व हिम्मत वाले थे। ठाकुर फतेहसिंह जी के अति निकट व प्रिय थे। वे गुलाराम जी को शिकार करने अपने साथ ले जाते थे।ऐसा कहा जाता है कि ग़ुलाराम जी बंदूक चलाने में माहिर थे।
विवाह एव परिवार:-
गुलाराम जी का जीवन बड़े अभावों व विषम परिस्थितियों में गुजरा। लेकिन जीवन में कभी उन्होंने हिम्मत नही हारी। वे स्वयं अपने हमउम्र के युवाओं को हिम्मत बंधवाते थे कि जीवन मे कभी हिम्मत नही हारनी, सदैव मेहनत करते रहो और भगवान पर भरोसा राखणो। जब उनकी उम्र १९ वर्ष की हुई तो उनका विवाह गाँव बाणियावास की कंचनबाई के साथ हुआ।भाटपोथी के अनुसार उनका विवाह विक्रम संवत १९४४ की वैशाख शुक्ल १४ को हुआ। उनकी विवाह की तिथि के बारे में कहा जाता है कि विक्रम संवत १९४४ को वैशाख शुक्ल १४ को हुआ था।
ग़ुलाराम जी के विवाह के कुछ वर्ष बाद ही उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम मगाराम जी और भानाराम जी थे। जब मगाराम जी ७-८ वर्ष के हुए तब उनके अंतर्मन में भगवान के प्रति भक्ति की भावना का बीजारोपण हो गया। वे रावले के कामकाज में साथ राम नाम का जाप करने लगे। एक ओर वे ठाकुर के साथ शिकार करने जाते थे वही दूसरी ओर उनके मन में भक्तिभावना का अंकुरण होना बड़े अचरज की बात थी।
संतवाणी में कहा गया है कि,
“शिकारपुरा में रैवता, कद हेता अमरपुरा देवता।”
अब उनका मन पहले से ज्यादा भक्ति भावना में लगने लगा और वे अपनी भक्ति का कार्य छुपके-छुपके करने लगे। जब लोगो ने ठाकुर साहब को शिकायतें की कि-” ग़ुलाराम तो सब दिन माला का जाप करते है और उनका मन रावले के कामकाज में बिल्कुल नही है।” ठाकुर फतेहसिंह जी बड़े नाराज हुए और उन्होंने ग़ुलाराम को अपने पास बुलाया और उन्हें फटकारा की वह ऐसा नही करे, रावले के ड्योढ़ी के कार्य पर ध्यान देवे। कहते है कि ग़ुलाराम जी ने उस समय ठाकुर की बातों को यू ही सुनते रहे और फिर वहां से आ गए। गुलाराम जी का मन रावले की ड्योढ़ी के कार्य करने से ऊबने लगा और मन भक्ति भावना में पहले से जयाद लगने लगा तो उन्होंने रावले की ड्योढ़ी के कार्य को छोड़ दिया और भगवद भक्ति व तपस्या को अपना लक्ष्य बनाया। अपने घर मे ही वे रामनाम की माला का जाप करने लगे। तपस्या करते हुए उनके मन मे कई बार मन-मस्तिष्क में ज्वार उठता और चिंतित भी होते थे कि-“मेरे घर,परिवार और पत्नी है, भगवद्भक्ति भी करनी है और दूसरी ओर परिवार का भरणपोषण! मन मे यह कशमकश चलती रही।” भगवद्भक्ति व परिवार के भरणपोषण की कशमकश में उन्होंने अपने अंतर्मन की आवाज को सुना और पूर्ण रूप से भक्ति करने लगे तथा रामनाम का जाप करने लगे। उसी समयावधि में हिंगोला ग्राम के संत श्री जैतराम जी के संपर्क में आए और उन्होंने उनको अपना गुरु मान लिया तथा गुरु जी के पदचिन्हों पर चलने का पूर्ण फैसला कर दिया।गुरु जी कहते थे कि-“यह संसार नश्वर है। रामनाम से ही इस भवसागर से पार पाया जा सकता है।” गुरु सेवा में रत रहते हुए आप रामनाम के जाप करते रहे। ऐसा कहा जाता है कि विक्रम संवत १९७७ श्रावण शुक्ल ३ को उन्होंने पूर्ण रूप से वैराग धारण कर दिया और गुलाबी वस्त्र पहन लिए। एक दिन अचानक उन्हें क्या सूझी या देवत्व आज्ञा मिली जो भी हो उन्होंरे अपनी इंद्री(शिशन) को काट कर फेंक दिया।तन से खून बहने लगा।ग्राम के लोगो ने कड़ाव में पानी भर दिया और उन्हें जबरदस्ती उस कड़ाव में बैठा दिया। थोड़े समय पश्चात खून बहना स्वतः ही बंद हो गया।ग्राम के लोगो को बड़ा अचम्भा हुआ। ग़ुलाराम जी महाराज पहले की तरह सामान्य हो गए और अपनी भक्तिभावना में लीन रहने लगे।
संत वाणी में भी कहा गया है कि:-
“भीष्मचांदी करी हाथ से,चल्या खून रा वाळा।
हरिभक्त कोई रोटी जिम्माम्वै,ऊपर घी रा नाला।”
सनातन धर्म मे भीष्मचांदी प्रभु शंकर जी ने की थी।गुलारामहाराज जी ने ऐसा कर दिखाया कि-“वे शिव जी के अवतार है।” लोग ग़ुलाराम जी को भक्त गुलारामहाराज कहने लगे। वे अपने बेरे नवोड़ा पर बने बैलों की ओढ़(बैलों का घर जो जमीन में खोदकर बनाया जाता है,ऊपर घासफूस होता है) में रामनाम का जाप करने लगे। वे वही से पास के खैरवा गाँव चले गए, वहाँ भक्ति करने लगे,महीनों तक वही रहने लगे। वहाँ से न जाने कहाँ चले गए किसी को भी पता नही था। ग्राम के लोग भी उनके बारे में तरह-तरह की टीका-टिप्पणी करने लगे। सच कहा जाय तो गुलामहाराज जी जैसे अवतारी महापुरुष को कोई समझ ही नही पाए,यही कारण था कि उनके साथ कई बार दुर्व्यवहार भी किया गया और समाज से भी उनको बहिष्कृत होना पड़ा।गुलामहाराज जी ने इन बातों को कभी मन पर लिया ही नही,वे तो रामनाम की माला को ही सबकुछ मान बैठे थे।
संत श्री आदाराम जी ने बताया कि-एक बार ग़ुलाराम जी रावले से होकर गुजरे तो रावले से करुण रुन्दन की आवाज सुनाई दी,उस समय रावले में किसी को दंड दिया जा रहा होगा, ग़ुलाराम जी को उस करुण रुन्दन को सुनकर बड़ी दया आ गयी और उन्होंने रावले की परिक्रमा की तथा आकाशवाणी कर दी कि-“राठौड़ी राज खत्म होगा तथा गला का राज होगा तभी लाम्बिया वापस आएगा।” ऐसा कहा जाता है कि वे 12 वर्ष के लिए अनजान स्थान पर चले गए और अपनी तपस्या करने लगे। गाँव में लोगो ने उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कंचन बाई को कहा कि -“आपके पति इस संसार मे नहीं है,उनका लोकाचार करना पड़ेगा।” लोगो को श्रीमती कंचनबाई ने कहा कि,”मेरे पति ने मुझे अमर सुहाग दिया है।” लेकिन समाज के लोगों के दबाव व लोकलाज के लिए श्रीमती कंचनबाई व उनको पुत्रों ने लोकाचार करने का निर्णय लिया। ग़ुलाराम जी के घर परिवार वालों ने सामाजिक रीति-रिवाज से लोकाचार का कार्यक्रम रखा और उनके दोनों पुत्रों ने अपने सिर पर सफेद पगड़ी बांध दी। ऐसा कहा जाता है कि फतेहसिंह जी बीमार ही गए और उनको जोधपुर ले जाया गया।वहाँ ठाकुर साहब के कामदार को ग़ुलाराम जी के दर्शन हुआ और कामदार बड़े अचंभित हुए कि-“गाँव मे तो ग़ुलाराम जी के निमित्त लोकाचार हो रही है और ग़ुलाराम जी यहां! ” ग़ुलाराम जी अपने साफे में नीम के पत्ते डालकर नाच करने लगे और जोर-जोर से कहने लगे कि-“राज गला का होगा और गला आज लाम्बिया जाएगा।” यह बात कामदार ने सुनी और लाम्बिया ग्राम आकर कहा कि-“लोकाचार मत करो,मैंने स्वयं ने ग़ुलाराम जी को देखा है,वे अभी भी जिन्दे है।” ऐसा कहते है कि उनके निम्मित होने वाले द्वादशी कार्यक्रम के ठीक एक दिन पहले ग़ुलाराम जी लाम्बिया ठीक रात्रि को 12 बजे लाम्बिया के सरोवर किनारे पधारे जहां आज उनकी तपोभूमि का धाम है। उस रात्रि को एक किसान अपने बेरे पर जा रहा था,उसने ग़ुलाराम जी से पूछा कि-“आप कौन हो?” ग़ुलाराम जी ने बताया कि-“मैं तो गला हूँ।”
उसने गाँव मे जाकर यह बात बताई।सुबह गाँव वालों ने ग़ुलाराम जी को ससम्मान घर लाए और उनकी पत्नी को पुनः सुहाग पहनाया तथा पुत्रो को रंग बँधाया। धर्मपत्नी श्रीमती कंचनबाई ने गुलामहाराज जी को तिलक किया।गुलामहाराज जी बड़े प्रसन्न हुए और पत्नी से बोले कि-” जो मांगे से मिले” ऐसा कहा जाता है कि कंचनबाई ने मन ही मन उनसे पोते की कामना की थी।गुलामहाराज जी के आशीर्वाद से मगाराम जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम खरताराम रखा गया था। उसके बाद भेराराम जी,गंगासागर जी और मोहनलाल जी के रूप में तीन और पुत्र हुए।भानाराम जी के भी एक पुत्र हुआ जिनका नाम ओगड़ राम जी था।
ग़ुलाराम जी बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे एक बार पाली गए थे ,पुराने बस स्टैंड पर बाजार में जोर-जोर से कहा था कि ,”गुलाराम जी रे गले सफ़राश,
भारत मे डंका बाजे फतह का
राज होवेला मतै-मतै का।”
उनका कहना बाद में सत्य हुआ और राजा -महाराजाओ का राज समाप्त हुआ और लोकतंत्र की स्थापना हुई।
उन्होंने इस तरह की बहुत-से भविष्यवाणी की और वे आगे चलकर सही साबित हुई।
एक वाकिया उनके साथ ऐसा हुआ कि गाँव के ठाकुर ने उनके बड़े बेटे मगाराम जी को बेगार हेतु रावले में बुलवाया कि-वह बैलगाड़ी सहित हाजिर होवे। मगाराम जी ठाकुर के कामदार को कहा कि,”मेरे पास बैलगाड़ी नही है,मैं बिना बैलगाड़ी चल सकता हूँ।”कामदार ने मगाराम जी कहा कि,” काम बैलगाड़ी का है,बैलगाड़ी किसी दूसरे से मांगकर लेकर चलो।”इस पर मगाराम जी और कामदार के बीच तीखी नौक-झौंक हो गयी। उस समय जोग ऐसा हुआ कि गुलामहाराज जी वहां आ गए और उन्होंने कहा कि-” मैं चलता हूँ ठाकुर साहब के पास।” वे रावले ठाकुर साहब के समक्ष पेश हुए।ठाकुर साहब उन्हें देखकर आग बबूला हो गए और कामदार से बोले कि,” मूर्ख! तू इस फकीर को लेकर क्यो आया?इससे मुझे क्या लेना-देना है? ठाकुर साहब ने अनाप -सनाप बकना शुरू कर दिया।”
गुलामहाराज जी चुपचाप व शांत भाव से सबकुछ सुनते रहे,जब ठाकुर ने बोलना बंद किया,तब गुलामहाराज जी बोले,” सुण ठाकुर! तुम क्यो इतना घमंड करते हो? क्यो गरीबों से बेगार करवाते हो और निर्बलों को सताते हो? तुम्हारे कोई औलाद नही होगी, यह मेरा श्राप है।”ऐसा कहकर गुलामहाराज जी रावले से बाहर आ गए।गुलामहाराज जी की भविष्यवाणी सत्य हुई।लाम्बिया ठाकुर के कोई औलाद नही हुए,उनका खोज चला गया।वह रावला आज ब्राह्मणों के पास है।
कहा गया है कि,
“गुलाराम बन संत करने लगे भविष्यवाणी।
हो गए महाराज, कर्म कर तजन कल्याणी।।”
गुलामहाराज जी के जो -जो भविष्यवाणी की,वे सभी सत्य साबित होने लगी। संत गुलामहाराज जी को कई लोग अपने गुरु बनाने लगे।सोनाई माँझी ग्राम के सोनार रहते थे वे गुलामहाराज जी बड़े प्रभावित हुए और उनके शिष्य बन गए।गुलामहाराज जी के आशीर्वाद से दोनों गरीब से धनवान बन गए। आज भी पाली के सर्राफा बाजार में मूलचंद जी व पुखराज जी दो भाईयों की सोने-चांदी(ज्वेलर्स) की दुकान है वहाँ गुलामहाराज जी की दिव्य तस्वीर है।वे नित्य पूजा आराधना करते है।
दिव्य चमत्कार:-
-गुलाराम जी की पूनागर माता जी के प्रति गहरी आस्था एयर श्रद्धाभक्ति थी। वे अपने खेती के काम को छोड़कर पुनागर चले जाते थे और उनके खेत में गुलाराम बनकर खेती कर रहे थे,लोगो ने देखा कि -जो आदमी मुझे स्वयं को कहकर गये हो वो यहाँ कैसे हो सकते है? एक दिन उन्होंने गुलाराम जी अनुनय-विनय किया कि आप सही-सही बताये।गुलाराम जी ने केवल इतना ही कहा कि बाबा भोलेनाथ जाने।
-गुलामहाराज जी के बड़े भ्राताश्री चंदाराम जी को मालवे में पुंजापुरा ग्राम के सीरवियों ने समाज से बहिष्कृत कर दिया था।इस बात की जानकारी गुलामहाराज जी को होने पर वे बड़े दुःखी हुए और अपने भाई से मिलने वे पुंजापुरा गए। ऐसा कहा जाता है कि भाभी ने उनके लिए ज्वार के सोगरे बनाये।भाभी ने सब्जी के बारे में उनसे पूछा तो बावजी ने कहा कि,”आप तो छाछ ला दो,भोजन प्रसाद कर लेंगे।” भाभी जी ने कहा कि,”छाछ तो अपने यहां नही है,पड़ोस में है लेकिन वे देते नही है।” गुलामहाराज जी अपनी भाभी को कहा कि -“आप जाओ तो सही,छाछ डाले तो ला देना नही तो फिर आ जाना।” चंदाराम जी की धर्मपत्नी छाछ लेंगे गयी लेकिन अपने समाज की पड़ौसन औरत ने मना कर दिया।भाभी जी छाछ की खाली कुलड़ी लेकर आ गयी।
गुलामहाराज जी ने अपनी भाभी से कहा कि,”आप तो मिर्च-लच्छन की चटनी बना दो।” भाभी जी ने ऐसा ही किया और उन्होंने भोजन प्रसाद कर मकान के पिछवाड़े में बैठकर मलाजाप करने लगे। कुछ समय बाद न जाने क्या हुआ कि मौहल्ले ने जोर-जोर से रुन्दन की आवाज सुनाई देने लगी।लोग आपस मे पूछताश करने लगे कि- क्या हुआ?
पता चला कि-तीन भाईयों के बीच उनका एकमात्र पुत्र जो उम्र में अभी छोटा ही था,चला गया। यह बात गुलामहाराज जी को हुई तो वे स्वयं उस मृत बालक को देखने चले गए। वहाँ की करुण रुन्दन को सुनकर गुलामहाराज जी का हृदय भी अति द्रवित हो गया। ऐसा कहा जाता है कि गुलामहाराज जी ने वहां दंतिये से अपनी दाहिने हाथ की अंगुली पर कट लगाकर खून निकाला और उस खून को मृत बालक के होठों व आँखों पर लगा दिया तथा उन्होंने मन ही मन उसे जीवित होने का आशीर्वाद दे दिया। ऐसा करते ही बालक उठ खड़ा हुआ।वहाँ पर लोगों को बड़ी खुशी व प्रसन्नता हुई। गुलामहाराज जी वहाँ से अपने भाई के घर चले गए और पुनः। रामनाम की माला का जाप करने लगे।बालक ने अपने आस-पास इतने लोगो को देखा तो वह स्वयं विचार में पड़ गया।उसने पूछा कि,”आप लोग सभी यहाँ क्यो हो?” लोगों ने उसे बताया कि,”बेटा! तुम मर गए थे,इसलिए हम सब यहाँ एकत्रित हुए है।” उस बालक ने फिर सारी बात बताई कि-” दो लोग जिनके काले कपड़े पहने हुए थे, वे मुझे जबरदस्ती ले गए।एक संत-महात्मा आए और उन्होंने उनको रोक दिया,फिर वे छोड़कर चले गए।” अब लोगों को यकीन होने लगा कि-“चंदाराम जी के भाई साहब बड़े दिव्य संत-महात्मा है।” लोगों ने उस बालक से पूछा कि,”बेटा!तुम उस संत-महात्मा को पहचान सकते हो क्या?” उस बालक ने कहा कि,”हाँ, मैं उन्हें पहचान सकता हूँ।” लोग उस बालक को चंदाराम जी के घर ले गए और गुलामहाराज जी मकान के पिछवाड़े में तपस्या में लीन थे,बालक को संकेत कर बताया कि -“क्या यह संत-महात्मा थे?” बालक ने बड़े प्रसन्न व हँसते हुए कहा कि-“हाँ-हाँ, यही गुलाबी वेश वाले संत-महात्मा थे।”
बच्चे के परिवार से उनकी दादी व माता जी ने पाँच किलो घी से भरी चँवरी लाकर चंदाराम जी के घर रखी।उन्होंने छाछ न डालने की माफी मांगी।गुलामहाराज जी ने वह घी की चँवरी लेने से मना कर दिया लेकिन गाँव वालों ने वही जाजम बिछाकर चंदाराम जी को पुनः समाज मे ले लिया।
लोगों ने गुलामहाराज जी के चरण वन्दन किया।गुलामहाराज जी ने वहाँ के सीरवियों को ठाकुर की पदवी दी। अब पुंजापुरा के लोग अपनी तरह-तरह की समस्या,तकलीफे व दुःख भरी पीड़ाएँ लेकर आने लगे। गुलामहाराज जी वहां से तुरंत निकल गए और पुनः मारवाड़ आ गए।
:- एक बार लाम्बिया ग्राम में भायल बंधुओ ने मौसर करने की सोची,उन्होंने गुलामहाराज जी को अपने साथ हरिद्वार चलने के लिए कहा, तब उन्होंने कहा कि,”आप चलो,मैं आ रहा हूँ।” भायल परिवार के बंधुजन वहां से चले गए,जब वे हरिद्वार पहुँचे तो गुलामहाराज जी उन्हें आगे मिले।उन सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। गाँव वाले लोगों ने कहा कि महाराज तो दो दिन से यही पर थे। यह उनका चमत्कार था।
:-एक बार की बात थी कि गुलामहाराज जी बानियावास से विठोड़ा बैलगाड़ी पर जा रहे थे।अचानक उनको क्या सूझा कि-लकड़ी में लाल चुंदरी लेकर घुमाने लगे,उसी समय ट्रैन भी पास से गुजरी,बावजी ने जोर-जोर से लकड़ी घुमाई।ट्रैन के ड्राईवर ने कोई खतरा समझकर गाड़ी वही रोक दी। ट्रैन का टीटी व गार्ड आए और बावजी से पूछा कि-” आपने गाड़ी क्यो रुकवाई? ऐसा क्या देखा?” कहते है कि गुलामहाराज जी ने हँसते हुए कहा दिया कि-ऐसे ही।ट्रेन के गार्ड ने कहा कि-“गाड़ी तेरे बाप की थोड़े ही है।”
गुलामहाराज जी उस गार्ड को जवाब दिया कि,”गाड़ी न तो तेरे बाप की है और न मेरे बाप की है।यह गाड़ी गला की है और यहाँ पर स्टेशन बनेगा।” ट्रैन के गार्ड व टीटी ने समझा कि-“बाबा पागल है और वे दोनों पुनः ट्रैन पर चढ़ गए।” थोड़े समय बाद वहाँ स्टेशन बन गया, जो राजकीयवास स्टेशन के नाम से जाना जाता है।
:- गुलामहाराज जी का पुंजापुरा (मालवा) आना जाना रहता ही था। एक बार वे अपने पुत्र मगाराम को साथ ले गए। अपने भाई से मिलकर जब वे पुंजापुरा से बस द्वारा इंदौर आए। इंदौर में एक जाट-जाटणी की नजर गुलामहाराज जी के पुत्र मगाराम पर पड़ी तो वे दौड़कर उनके पास आए और गुलामहाराज जी से कहने लगे कि-“यह पुत्र हमारा है,तुमने हमारे पुत्र को तुमने चुराया है।”
जाट-जाटणी व गुलामहाराज जी के बीच तीखी नौक-झौंक हो गयी।जाट-जाटणी ने पुलिस चौकी में शिकायत की।गुलामहाराज जी अपने पुत्र को चौकी में लेकर पेश हुए।चौकी प्रभारी ने गुलामहाराज जी को मोड़े पर बैठने का इशारा किया लेकिन गुलामहाराज जी ने कहा कि-“मैं तो मुज़रिम हूँ। मुजरिम आपके सामने कैसे बैठ सकता है।”
थानेदार बड़ा होशियार था,उसने बच्चे से पूरी पूछताछ की तथा उसने बच्चे के चेहरे को गौर से देखा तो पाया कि “यह बच्चा जाट-जाटणी का नही बल्कि महाराज का ही है।” थानेदार साहब ने जाट-जाटणी को फटकारा और वहां से निकल जाने का आदेश दिया।उन्होंने गुलामहाराज जी को बच्चे के खाने खिलाने के लिए कुछ पैसे दिए और अपने सिपाई को साथ भेजा कि-महाराज जी को इंदौर-जोधपुर वाली गाड़ी में बैठाकर आ जाओ। सिपाई गुलामहाराज जी को बैठाकर चला गया। भीलवाड़ा से पहले टीटी आया और उसने टिकट या पास मांगा तो गुलामहाराज जी ने कहा कि-“मेरे पास तो टिकट-पास कुछ नही है। यह माला ही मेरा टिकट व पास है।” टीटी ने जंजीर खींची और गुलामहाराज जी को नीचे उतार दिया। गुलामहाराज जी अपने पुत्र को लेकर नीचे उतर गए और एक पेड़ के नीचे माला लेकर वही रामनाम का जाप करने लगे। गाड़ी को जाते देख बच्चा भी हठ करने लगा लेकिन बावजी तो माला की धुन में ही रहे। रेलगाड़ी वहाँ से एक-डेढ़ किलोमीटर जाकर बंद हो गयी,गाड़ी आगे चलती भी नही।ड्राइवर ने गाड़ी को पीछे चलाया तो उसे बड़ा अचरज हुआ कि,” वही गाड़ी पीछे चली जाती है लेकिन आगे नही।”आखिर ड्राइवर ने गाड़ी पीछे ली और टीटी व रेलकर्मियों ने गुलामहाराज जी से पुनः गाड़ी में बैठने का अनुनय-विनय किया।गुलामहाराज जी ने उनसे कहा कि,”मेरे पास टिकट व पास नही है।” टीटी ने पुनः बावजी से कहा कि,”आप तो गाड़ी में विराजो, आपरे मारवाड़ जंक्शन तक रो पास है।” गुलामहाराज जी के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी आगे चलने लगीं।गाड़ी पर बैठे लोगों ने खूब अचरज किया।यह बड़ा चमत्कार था।
:-गुलामहाराज जी के परम भक्त पोकरदास जी हिंगोळा वाले एक बार सापुनी गए।सापुनी के महादेव मंदिर पर गुलामहाराज जी माला जाप कर रहे थे।उन्होंने अपने दुशाले को अपने समक्ष लपेटकर रखा।पोकरदास जी ने देखा कि “वह दुशाला नही बल्कि पवित्र ग्रंथ गीता है,उनको बड़ा आश्चर्य हुआ।” पोकरदास जी अपने गुरु जी के चरणों मे गिर पड़े।उन्होंने अपने गुरु जी हिंगोळा बुलाकर बँधावा किया।कहते है कि संत श्री गुलामहाराज जी ने अपना पहला चौमासा हिंगोळा में ही किया था।
:- हिंगोळा चौमासा के बाद गुलामहाराज जी का जगह-जगह खूब बँधावा होने लगा। सीरवी समाज मे जहाँ भी भोजन प्रसादी का कार्य होता तो समाजी बन्धुजन गुलामहाराज जी को जरूर आमंत्रित करते और उनका ढोल-नगाड़ों के साथ बँधावा करते थे। सोनाई माँझी में टीकमाराम जी और अमराराम जी सैणचा के यहां मौसर का कार्यक्रम था।गुलामहाराज जी को निमंत्रित किया गया।अमराराम जी ने टीकम जी से कहा कि-“बावजी गुलामहाराज जी का बँधावा करना है।”
गुलामहाराज जी सोनाई माँझी के मुख्य फला पर पधारे और उनके बँधावे की तैयारी होने लगी।बँधावा किया जा रहा था कि- गाँव के कानाराम मालवीय लुहार ने जोर-जोर से कहा कि,”इस नपुंसक व खंडत का क्यों बँधावा करते हो?बँधावा करो तो मेरा कर लो।” यह बात गुलामहाराज जी के कर्ण तक पहुंच गई।गुलामहाराज जी उसी क्षण मार्ग में रेजे पर लेट गए और उन्होंने अपनी लँगोट से माया का विराट रूप दिखाया।लोगों को बड़ा अचरज हुआ।कानाराम लुहार वहाँ से भाग गया। ऐसा कहा जाता है कि गुलामहाराज जी तुरन्त वहां से अदृश्य हो गए।यह सोनाई माँझी में हुआ बड़ा चमत्कार था।
:- सापुनी ग्राम में नेमाराम जी सीरवी रहते थे,वे गुलामहाराज जी बावजी के भक्त थे।उन्होंने अपने पिताजी केसाराम जी के निम्मत मौसर करने की आज्ञा मांगी।गुलामहाराज जी ने तो उन्हें मना किया,लेकिन काफी अनुनय-विनय करने पर बावजी ने उन्हें मौसर करने की अनुमति दे दी।नेमाराम जी ने गुलामहाराज जी से कहा कि,”बावजी !हमारे यहाँ पानी की बड़ी समस्या है।मौसर में लोग आएंगे उनके लिए पानी की व्यवस्था कैसे करे?”
गुलामहाराज जी बोले कि-“तालाब के पास बेरी(कुआँ) है,वहाँ से पानी हो जायेगा।” लोग बोले कि,”बावजी! बेरी तो सुखी पड़ी है।” गुलामहाराज जी बोले कि-“बेरी में जो मिट्टी व कचरा पड़ा है उसे साफ कर दो,पानी हो जाएगा।”
गाँव के लोगों ने दो मजदूरों को काम पर लगाया और बेरी से कचरा व मिट्टी बाहर निकाला। कहते है कि गुलामहाराज जी ने एक चादर बेरी पर ओढ़ा दी और गाँव वालों से कहा कि -“यह चादर सुबह तक मत हटाना और न ही कोई इस चादर से झाँके।” गाँव के दो आदमी सुबह जल्दी गए और चादर के कोने को ऊपर कर उसमें ककड़ डाला तो पानी की आवाज आई।उनका आश्चर्य का ठिकाना न रहा। सुबह गुलामहाराज जी ने पूजा पाठ कर चादर हटाई तो उन्होंने कहा कि “किसी ने इस चादर को छुआ है ,इस कारण पानी उतना ही ऊपर आया है।” उस मौसर में पानी की आपूर्ति इसी बेरी से हुई।गुलामहाराज जी की कृपा से सापुनी धन्य हो गयी। यह बेरी उस काल से सापुनी के लोगों के लिए जीवनदायिनी बनी हुई है।यह बेरी ग़ुलाराम जी महाराज की बेरी के नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं।
:- रामपुरा ग्राम की विजयनाड़ी जहाँ माँ श्री अम्बे म मंदिर है उस स्थान की उस ससमय पूजा अचलदास जी नाम का व्यक्ति करता था।एक दिन ऐसा हुआ कि -ग़ुलाराम जी महाराज आए और वे गादी पर बैठ गए और अचलदास जी को इशारा किया कि वह उसकी गोद मे बैठ जाए लेकिन अचलदास जी उल्टे बावजी को भला-बुरा कर दिया।अचलदास जी के कपड़ो पर आग लग गयी। ग़ुलाराम जी महाराज जी उस आग को बुझाया और एक बात कही कि-“इस गादी पर कोई सीरवी सेवा करेला ।” उन्होंने उसी रामपुर ग्राम के नारायण लाल जी के पिताजी को कहा कि-“आपरे गाय ब्यावेला,उसका सफेद बछड़ा होगा जिसकी पीठ पर मेहंदी जैसा दाग व्हैला।” वास्तव में ऐसा ही हुआ कि-दूसरे दिन गाय ब्याही जिसके सफेद बछड़ा हुआ जिस पर मेहंदी के धब्बे का निशान था। लोगो ने बड़ा आश्चर्य व्यक्त किया।ग़ुलाराम जी महाराज का वहाँ पर बँधावा किया गया।कहते है कि घरों के मटकों में पानी की जगह दूध हो गया था। ऐसा वहाँ चमत्कार हुआ।उन्होंने अपनी छड़ी से एक लाइन खींची थी और लोगो को बताया था कि-यहां से पक्की सड़क गुजरेगी।बाद में हकीकत में उसी जगह से पक्की सड़क बनी जो आज खैरवा -मारवाड़ जंक्शन तक जाती है।
सन्त श्री ग़ुलाराम जी महाराज ने ऐसी कई भविष्यवाणी की जो सही साबित हुई।उन्होंने इसे कई छोटे-मोटे चमत्कार दिखाए जो आज भी लोग चर्चा करते है। संत श्री ग़ुलाराम जी महाराज का जीवन बड़ा ही सादगीपूर्ण रहा।उनके विचार और दृष्टिकोण बड़े ही उच्च थे। वे प्रभु भोलेनाथ के अवतारी थे।जिन्होंने समाज मे धर्म व आध्यत्म की धारा को प्रवाहित किया।
वैकुण्ठधाम की यात्रा:- संत श्री ग़ुलाराम जी महाराज ने अपने जीवन के अंतिम समय में बाड़सा ग्राम में थे।उन्होंने बाड़सा के लोगों को कहा कि-“यदि कोई लाम्बिया से मुझे लेने आ जाय तो मना मत करना।” कहते है कि थिडे समय बाद तो उनके ज्येष्ठ पुत्र बैलगाड़ी लेकर लेने आ गए।
बाड़सा। के लोगो ने उनका बँधावा कर गाड़ी में बैठाया और विदा किया।लाम्बिया ग्राम आते ही उन्होंने सरोवर की पाल पर बैठकर कहा कि-“अब गला अपने धाम चला जायेगा।”उन्होंने पोष सूद ५ संवत २०२४ को जीवित समाधि ले ली।समाधि के उसी पावन तपोभूमि पर उनकी छतरी लगी हुई है और भव्य मंदिर बना हुआ है।
उनके लारे बहुत बड़ा भंडारा हुआ जिसमें 45 मण गुड़ से लापसी का भोजन प्रसाद बनाया गया और लोगो को भोजन प्रसाद हुआ।संत सही ग़ुलाराम जी महाराज बहुत बड़े तपस्वी व आध्यात्मिक महापुरुष हुए।उनकी समाधि स्थल ग्राम लाम्बिया में हर वर्ष माघ सुदी १३ को मेला भरा जाता है। बड़ी संख्या में भक्तजन आते है और मिन्नते मांगते हैं।
ट्रस्ट के गठन:- महान संत श्री ग़ुलाराम जी महाराज के नाम से एक ट्रस्ट के गठन हुआ जो उस धाम पर लगने वाले मेले व सामाजिक व शैक्षिक उन्नयन के प्रति कार्य करता है। इस ट्रस्ट के नाम “संत श्री ग़ुलाराम जी महाराज क्षत्रिय सीरवी समाज विकास सेवा संस्थान लाम्बिया(पाली) रखा गया है।इस ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष सीरवी समाज के बड़े भामाशाह,पाली के जिला प्रमुख एव समाजसेवी श्री चतराराम जी वरपा बानियावास वाले थे। दूसरे अध्यक्ष के रूप में समाजसेवी श्रीमान लुम्बाराम जी गेहलोत धामली वालो ने अपनी सेवाएं संस्थान को दी।तीसरे अध्यक्ष के रुप मे श्री लालाराम जी सोलंकी निवासी लाम्बिया ने तथा ट्रस्ट के चौथे अध्यक्ष के रूप में समाजसेवी श्री शेषाराम जी लाम्बिया ने अपनी सराहनीय सेवाएं संस्थान को दी। वर्तमान में इस संस्थान के अध्यक्ष श्रीमान मोहनलाल जी भायल निवासी लाम्बिया है जो बड़े उत्साह से संस्थान के चहुमुखी विकास के लिए कार्य कर रहे है। आज वहाँ प्रतिवर्ष सीरवी समाज के होनहार बालक-बालिकाओ का प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है जो बहुत ही सराहनीय व प्रशंसनीय कार्य है।
ट्रस्ट के सभी अध्यक्षों ने अपनी कार्यकारिणी के सहयोग से बहुत ही श्रेष्ठ व उत्कृष्ट कार्य किया। आज ट्रस्ट के सेवार्थः कार्यो से बहुत बड़ा हॉल, ऑफिस व तीन शेड बना हुआ है।उसमें वृक्षारोपण का कार्य हुआ तथा वहाँ लेटबाथ की उचित सुविधाएं भी बनाई।सभी अध्यक्ष व उनकी कार्यकारिणी के साथ सहयोग करने वाले भामाशाह अभिनंदन के अधिकारी है।
सभी अध्यक्षों, उनकी कार्यकरिणी , भामाशाहो तथा योगदान करने वाले कर्णधारों का दिल से वन्दन-अभिनंदन।
जय संत श्री ग़ुलाराम जी महाराज की।