।।श्री आईमाता जी भेल(धर्म रथ):-एक युगान्तकारी पहल(६)।।
श्री आईमाता जी ने श्री आईपंथ के नियम हमारे जीवन को सुख-समृद्धि एवं सुकूनदायी बनाने के लिए बताए है।ये नियम धर्मग्रंथों का सार तत्व है।ये नियम सुखी जीवन के लिए बड़े ही अनमोल है।हम सबका दायित्व बनता है कि हम श्री आईपंथ के नियमों को आत्मसात कर जीवन जिए।जो मनुष्य अपने आपको नियमों से आबन्ध कर जीवन जीता है उनका जीवन धन्य हो जाता है।श्री आईपंथ के नियम हमें भौतिकवादी व भोगवादी मानसिकता से दूर रहने की सतत प्रेरणा देता है और हम अपने सांस्कृतिक आदर्श मानकों व सामाजिक प्रतिमानों के अनुरूप जीवन जीने को स्वप्रेरित होते है।ऐसा होने से ही हम भीतर से निर्मल रहते है। निर्मल मन वाले व्यक्ति पर श्री आईमाता जी की अपार कृपा होती है।
इस मनुज जीवन में सब दुःखो का कारण धन है। जो धन अनीति-अन्याय या किसी व्यक्ति की मजबूरी का फायदा उठाकर प्राप्त किया जाय ,उससे सदा नुकसान ही होता है।
ऐसा धन व्यक्ति को क्षणिक समय के लिए खुशी व प्रसन्नता दे सकता है लेकिन अन्ततोगत्वा उसे निराशा ही हाथ लगती है।
श्री आईमाता जी ने श्री आईपंथ के तीसरे नियम में बताया है कि:-“तीजो धन पर ब्याज न लेवो।” श्री आईमाता जी ने उस समय की परिस्थितियों को समझकर अपनी भोलीभाली किसान कौम विशेषकर सीरवी समाज को संदेश दिया है कि-“कोई धन पर ब्याज न लेवे और न ही ब्याज पर धन लाए, दोनों सही नहीं है। जो व्यक्ति धनी है वे अपने धन पर ब्याज नहीं लेवे,यह ब्याज भी अनीति का है।अनीति से कमाए धन से नुकसान ही नुकसान है। जिस धन से घर-परिवार की सुख-शांति को क्षति पहुँचे ऐसे धन की लालसा नहीं रखनी चाहिए।” श्री आईमाता जी ने कौम को संदेश दिया कि- “वे सेठ-साहूकारों से धन उधार न लाए, उनके ब्याज को चुकाना भारी पड़ जाता है। इससे घर-जमीन तक बिक जाते है। परिवार की सुख-शांति नष्ट हो जाती है।”
श्री आईमाता जी अपनी कौम को इस संदेश के माध्यम से सीख दी कि-वे धन पर ब्याज नहीं लेवे।अपने संगे-संबंधी या समाज में कोई बंधु आर्थिक रूप से कमजोर है तो उसकी सहायता करें, उसे ऊपर उठाने के लिए सहयोग करे। यह एक पुनीत कार्य है। ऐसे परमार्थ कार्य से समाज आर्थिक रूप से सम्पन्न बनता है। अतः हम सब प्रयास करे कि- धन पर ब्याज नही लेंगे और अपनों को ऊपर उठाने के लिए योगदान करेंगे।
श्री आईमाता जी ने मनुष्यों के बीच की भौतिक दूरी कम करने तथा आत्मीय संबंध बढ़ाने के उद्देश्य से धन पर ब्याज न लेने की बात कही है।
“भारत का आध्यात्म चिंतन-आईपंथ” पुस्तक में लिखा गया है कि:-
” तीजो धन पर ब्याज न लेवो,धन से दान कर पुण्य कमाओ।
दीन दुःखी असहाय निर्बल को,अपने धन से राहत दिलाओ।।
संचय संकुचित भावना से,धन पर कभी अनुचित न कमाना।
परमार्थ परहित धन लगाकर, जग में अपना नाम कमाना।।
दान धन को सदा बढ़ाता,ब्याज स्वार्थ के जंग लगाता।
संचय करते अंत आ जाता,धन धरा सब पीछे रह जाता।।
जीवन के उच्च आदर्श भुलाकर,हम धन के पीछे कभी न भागें।
अनैतिक तरीके से धन कमाने की,वृति हम मन से त्यागे।।”
हम सभी पद्य में निहित मर्म को समझे और अनैतिक रूप से धन कमाने की जो ब्याज लेने की वृत्ति है उसे सदा के लिए त्याग देवे।
आप सभी श्रेष्ठ समाजी बंधुजन-बहनों को मेरा सादर वन्दन-अभिनंदन सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
।।श्री आईमाता जी भेल(धर्म रथ):-एक युगान्तकारी पहल(६)।।
