धर्म ,आध्यात्म और नैतिक मूल्य परस्पर एक दूसरे से अंतः संबधित है।धर्म और आध्यत्म नैतिक मूल्यों को परिष्कृत करते है। जो व्यक्ति धार्मिक एव आध्यात्मिक है वे नैतिक मूल्यों से उतने ही उच्च नैतिकवान है। धर्म का अर्थ किसी पंथ,सम्प्रदाय या मजहब से नही है। धर्म का मूल अर्थ कर्तव्य से है।आचरण, विचार और सद्चरित्र ही धर्म है। जिस व्यक्ति का आचरण एव व्यवहार पवित्र है और जो अपने कर्मो के प्रति निष्ठावान है तथा जो जीवन के अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी करता है वह व्यक्ति धार्मिक है। धर्म का अर्थ किसी सम्प्रदाय से जुड़ने से नही है और न ही किसी मजहब के सिद्धांतों के पालन व पूजा पाठ से है।
धर्म का वास्तविक अर्थ होता है, जो धारण किया जाए। जो विचार, चरित्र और नैतिकता हम अपने जीवन में धारण करते हैं वहीं धर्म है।
धर्म मानवीय मूल्यों से है जो जीवन को सुख-समृद्धि से सुवासित करता है और नैतिक मूल्यों से सुदृढ़ करता है। श्रीकृष्ण ने गीता में लिखा है कि मनुष्य को अपने धर्म के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। अपने कर्त्तव्य के निर्वाह में मृत्यु भी हो जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन दूसरों के कर्तव्य निर्वहन में विघ्न डालना उचित नहीं है। अपने धर्म का पालन ही अपने नैतिक कर्तव्यों का निर्वहन है। आध्यात्म ईश्वरीय आनंद की अनुभूति का मार्ग है। जो ईश्वर के प्रति अगाध आस्था और विश्वास को अवलंबित करता है।आध्यात्म व्यक्ति को यह अनुभव कराता है कि ईश्वर हमारे कार्यो को बारीकी से देखता है। जो व्यक्ति आध्यात्मिक होता है वह सदा सद्मार्गी रहता है और वह श्रेष्ठ सद्कर्मो से जीवन जीता है।
धर्म और आध्यात्म हर मनुज को नैतिक मूल्यों से मजबूत करता है और व्यक्ति के जीवन की यात्रा को सरल,सुगम और आनंदित करता है।
आप सभी श्रेष्ठ धार्मिक व आध्यात्मिक महानुभावों को मेरा सादर वन्दन-अभिनंदन सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
।।धर्म,आध्यात्म और नैतिक मूल्य(१)।।
