।।श्री आईमाता जी भेल(धर्म रथ):-एक युगान्तकारी पहल(२)।।
श्री आईमाता जी ने जो भेल अर्थात धर्म रथ की शुभ शुरुआत कर ” श्री आई पंथ” के एक नूतन पथ की स्थापना की तथा कृषक समाज विशेषकर सीरवी समाज को धर्म और आध्यात्म की शिक्षा दी।जिसका प्रभाव जनमानस पर पड़ा।श्री आईमाता जी ने मानव समाज को अपने जीवन के उद्धार के लिए ग्यारह नियमों की पालना करने पर जोर दिया। श्री आई पंथ के ग्यारह नियम धर्म ग्रंथों का सार है,जो बड़े ही सरल व जीवनोपयोगी है। उन्होंने अपने डोराबन्द के अनुयायियों अर्थात श्री आईपंथ के लोगों को उपदेश देते हुए कहा कि:-“जो व्यक्ति श्री आई पंथ के ग्यारह नियमों की पालना कर जीवन जियेगा उनका कल्याण हो जाएगा। ग्यारह नियमों की पालना करने वाला व्यक्ति मेरा सच्चा अनुयायी होगा।”
सचमुच में श्री आई पंथ के नियम धर्म ग्रंथो का सार तत्व है।इन नियमों की पालना से जीवन संवरते देर नही लगती है। ये नियम व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने में महत्ती भूमिका अदा करते है।ऐसे व्यक्ति की यश व कीर्ति बढ़ती है।हमारे पुरखों ने श्री आई पंथ के नियमों की पालना की तथा उसी के अनुरूप अपना आचरण व व्यवहार किया।उन पुरखों के उत्कृष्ट आचरण व व्यवहार के कारण ही समाज का कद बढ़ा। हमारे पुरखों की ईमानदारी ,सच्चाई और कर्तव्यपरायणता बेमिशाल थी।वे झूठ,कपट,छल,ईर्ष्या,राग-द्वेष और वैमनस्य जैसे विकारों से सर्वथा मुक्त ही रहे। उन्होंने सदा ईमानदारी व सच्चाई की राह को ही चुना।उनके मन में श्री आई माता के प्रति अगाध श्रद्धा भक्ति व निष्ठा थी। वे हर कार्य को ईमानदारी से करते थे तथा मन में कोई खोट नही रखते थे। वे मानते थे कि-“छल-कपट या खोट रखकर कार्य करने से माताजी नाराज हो जाएगी।”
आज सीरवी समाज की अन्य समाजों में जो इज्जत या छवि है वह हमारे पुरखों की संपदा है।उन्होंने अपने उत्कृष्ट आचरण,व्यवहार और श्रेष्ठ सामाजिक प्रतिमानों से अन्य समाजों को प्रभावित किया,विशेषकर जैन समाज सीरवी समाज की मेहनत, ईमानदारी,हमीर हठ और धर्म के प्रति आस्था से बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ और उन्होंने हमारे युवाओं को अपनी पेढ़ी पर मुनीम बनाया और इन्हीं गुणों से आज सीरवी समाज व्यापार व वाणिज्य क्षेत्र में सफलता की बुलंदियों को छू रहा है, यह हमारे पुरखों की देन है। इसलिए हम सब श्री आईमाता जी के द्वारा दिए गए उपदेशों को मानते हुए धर्म के पथ पर चलें और अपने जीवन को धन्य बनाये।
श्री आईमाता जी के बड़े मुख्य धाम बिलाड़ा से जो भेल (धर्म रथ) अपने पंथ के प्रचार-प्रसार के लिए निकलता है और सीरवी समाज के गाँवो में जिस तरह से भेल(धर्म रथ) का स्वागत-सत्कार होता है,वह अपने आपमें अद्भुत,अद्वितीय ,अविश्वसनीय और अकल्पनीय है। आज भी भेल पर पधारे बाबाजी धर्म व आध्यात्म की सीख देते है,डोराबन्द लोगों को श्री आईमाता जी की बेल प्रदान करते है और उनकी जात करते हैं।
आज भी श्री आई पंथ के अनुयायी अपने दाहिने हाथ की कलाई पर ग्यारह गाँठ लगी हुई बेल बांधते हैं तथा औरते अपने गले में बेल बांधती हैं।जिस तरह ब्राह्मण जनेऊ धारण करता है उसी प्रकार यह सीरवी समाज के बांडेरुओं और माताओं बहनों का धारणीय जनेऊ है। यह बेल हर डोराबन्द व्यक्ति अर्थात श्री आई पंथ के अनुयायी को ग्यारह नियमों पर चलने की सतत प्रेरणा देता है।
इस बेल के ग्यारह नियम-राग चौपाई में “श्री आई पंथ की वाणियां” नामक पुस्तक के लेखक एव महान साहित्यकार श्री शिवसिंह जी चोयल ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है:-
*बेल आईजी री बाँधो भाई*,
*नेम धर्म सब पालो भाई*।
*प्रथम झूठ तजो सुख पाई,*
*दूजो तो मद मांस छुड़ाई*।
*तीजो धन पर ब्याज न लेवो*,
*चौथे जुआ कभी न खेलो*।
*पंचम मात-पिता री सेवा,*
*छठे अभ्यागत हो देवा*।
*सात गुरु री आज्ञा पालो*,
*आठो परहित मारग चालो*।
*नव परनारी माता जाणों*
*दस कन्या को धरम परणाओ*।
*स्वारथ काज न अकरम करना*,
*गाँठ ग्यारह सतमार्ग चलना*।
हाथ पुरुष और गले लुगाई,
बाँधो बेल कहो जय आई।
जय आई श्री अम्बे माई,
देव दनुज सब तेरों यश गाई।
बेल आईजी री बाँधो भाई,
नेम धरम सब पालों भाई।।
बेल के उक्त ग्यारह नियमों की पालना करने से व्यक्ति के जीवन का उद्धार हो जाता है। श्री आईमाता के ऐसे परम भक्तों पर श्री आईमाता जी की असीम कृपा होती है। श्री आई माता के परम भक्त आज भी बेल बाँधते है,कुछ नियमधारी डोरा बंद बिना बेल जल भी ग्रहण नहीं करते हैं और बेल के ग्यारह नियमों की पालना पर जोर देते है। हमारे पुरखे दिल के बड़े नेक व मन के बड़े साफ व सच्चे थे। वे बेल जरूर बाँधते थे। आज भी श्री आईमाता जी के सच्चे भक्त बेल बाँधते है और बेल के ग्यारह नियमों की पालना करने का सतत प्रयास करते है।
श्री आईपंथ के अनुयायियों को हमारा कोटिशः वन्दन-अभिनंदन सा।🙏🙏
(शेष अगले अंक में…)
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
श्री आईमाता जी भेल(धर्म रथ):-एक युगान्तकारी पहल
