चिंतनीय आलेख:-बिखरता सामाजिक ताना-बाना और सीरवी समाज(१)
सीरवी समाज के लोग बड़े मेहनती,पुरुषार्थी और ईमानदार है तथा दिल के सच्चे है इसमें कोई संशय नही है।हमने अपने पुरखों के श्रेष्ठ सामाजिक मूल्यों एवं आदर्श प्रतिमानों से आर्थिक उन्नति प्राप्त की और आर्थिक रूप से समृद्ध व सशक्त हुए है।यह सब हमारे पुरखों के बतलाए आदर्श प्रतिमानों को आत्मसात कर जीवन जीने का सुखद परिणाम है। एक सीरवी समाजी होने के नाते समाज की आर्थिक समृद्धि को देख मुझे गर्व की अनुभूति होती है।आज चहुँ ओर एक बात सुनने को मिलती है कि पिछले एक-दो दशकों में सबसे तेज आर्थिक रूप से किसी समाज की प्रगति हुई है तो वह सीरवी समाज है। निश्चित ही हमने अपने पुरखों के बतलाए आदर्शो पर चलकर आर्थिक सम्पन्नता पाई है।हम सब अपने पुरखों के ऋणी है।उनके आदर्शो से हमने जैन जैसी सभ्य एवं आर्थिक रुप से समृद्ध समाज के लोगों का विश्वास पाया और उनसे ही व्यापार के गुर सीखे।आज हमारी आर्थिक समृद्धि की वजह हमारे पुरखों के आदर्श है। हम उन्ही के आदर्श मूल्य, प्रतिमान एवं परम्पराओं को लेकर जीवन जियेंगे तो हमारा जीवन सुखमय-आनंदमय होगा अन्यथा हमारा जीवन कष्टमय ही होगा।
सीरवी समाज ने आर्थिक सम्पन्नता पाई लेकिन सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से हम विपन्न होते जा रहे हैं।आज हमारी युवा पीढ़ी हमारे पुरखों के आदर्शो, प्रतिमानों और परम्पराओं से विस्मृत होती जा रही है।हमारी युवा पीढ़ी को सामाजिक मूल्यों, प्रतिमानों और परम्पराओ का ज्ञान ही नही है। वह भौतिकवादी मानसिकता से जीवन जी रही है।पाश्चात्य संस्कृति की ओर उन्मुख हो रही है।उसे अपनी समाज की श्रेष्ठ रीति-रिवाजों एवं परम्पराओ का तनिक भी ज्ञान नही है।कई युवाओ को अपनी गौत्र का भी ज्ञान नही है।उसके लिए हमारे युवापीढ़ी दोषी नही है उसके दोषी हम सब है।हमने कभी भी बैठकर अपने बच्चों को इसका ज्ञान कराया ही नही।हमने भौतिकवादी मानसिकता को ही जीवन का अहम लक्ष्य बना दिया है और उसी लक्ष्य को केंद्र में रखकर मायावी दुनिया में जीवन जीना शुरू कर दिया,आज उसी का दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं कि हमारा सामाजिक ताना-बाना नष्ट-विनष्ट हो रहा है।हम सब मौन होकर ऐसा नजारा देख रहे हैं।आज समाज में खिलते-फूलते परिवार बर्बाद हो रहे हैं।समाज का ही बेटा समाज की ही बहुँ को बहला फुसलाकर कर या आभासी प्रेम के जाल में फसाकर ले जा रहा है और हम सब ऐसे सामाजिक नियम विरुद्ध कृत्य होते देख रहे हैं।एक समाज का बेटा अपने ही समाज की बेटी जिसका भरा-पूरा परिवार है,जिसके बाल-बच्चे है और जिसकी गौत्र समान है उससे विवाह की नीयत से बदला फुसलाकर ले जा रहा है और अपना घर परिवार बसा रहा है।क्या यह सामाजिकता है? हम एक समाजी होने के नाते कुछ भी नही कर पा रहे है। क्या हम सब लाचार हो गए है?आखिर ऐसी क्या लाचारी है हमारी!!!
यदि एक समाज मौनवृत ऐसे सामाजिक नियम विरुद्ध कृत्य को होते देख रहा है तो यह सीरवी समाज के लिए सबसे बड़ी विडंबना है।
हम सीरवी समाज का दायित्व बनता है कि अपने सामाजिक मूल्यों ,आदर्श प्रतिमानों एवं परम्पराओ को अक्षुण्ण रखने की दिशा में कुछ ठोस कार्यवाही करें।हम अपने सामाजिक आदर्श प्रतिमानों,मूल्यों और परम्पराओ को खोकर सभ्य समाज का सृजन कदापि नही कर पायेंगे। हम सबका दायित्व बनता है कि हम समाज स्तर पर जो सामाजिक नियम विरुद्ध कृत्य हो रहे हैं उसे रोकने की दिशा में ठोस सामाजिक विधान तैयार करे और बिखरते सामाजिक ताने-बाने को बचाये।
यदि समय रहते सीरवी समाज ने सामाजिक समरसता व एकात्मकता के लिए ठोस निर्णय नही लिया तो हम अपने ही हाथों अपने समाज का अस्तित्त्व मिट्टी में मिला देंगे। जीवन मे कोई ऐसी समस्या नही है जिसका समाधान नही है। बस जरूरत है हम सब समाजहित में अपना सर्वश्रेष्ठ त्याग और अर्पण कर अपना दायित्व निभाए। एक समाज चाहता है तो बहुत कुछ कर सकता है। अन्य समाजों में सामाजिक विधान बनाये और उन्होंने इसे अपनी समाज मे लागू किया तथा अपने समाज को श्रेष्ठ पायदान पर स्थापित किया। हम भी इस दिशा में एकात्मक रुप से एक सर्वमान्य सामाजिक विधान बनाये और एक सशक्त,श्रेष्ठ व सभ्य सीरवी समाज का सृजन करे। हर व्यक्ति को समाज की जरूरत होती है वह बिना समाज के रह नही सकता है।हम अपने पुरखों के द्वारा जो सामाजिक न्याय प्रणाली थी उसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सुधार कर एक सामाजिक न्याय प्रणाली का सर्वमान्य विधान तैयार करे और उसे समाजहित में लागू करे।
सीरवी समाज के सभी वन्दनीय महानुभावो से मेरी विनती है कि आप समाजहित में इस आलेख को गहनता से जरूर पढ़े और अपने विचार साझा करे।👏👏
(क्रमशः…)
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
सचिव
श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान,जवाली(पाली)
चिंतनीय आलेख:-बिखरता सामाजिक ताना-बाना और सीरवी समाज(१)
