हम तो दिल से कहते है कि,
” सुखमय मानव जीवन के मूल आधार,
शिक्षा और संस्कार है उसके सूत्रधार।।”
मानव जीवन में शिक्षा और संस्कार की बड़ी महत्ता है।बिन संस्कार और शिक्षा के सुना है संसार।मनुष्य के अवतरण से अवसान तक की स्वर्णिम यात्रा में शिक्षा और संस्कार की भूमिका अहम होती है। जहाँ संस्कार जीवन का सार है वही शिक्षा एक अनमोल उपहार की तरह है। शिक्षा और संस्कार ही व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक है। श्रेष्ठ संस्कारो और शिक्षा से व्यक्ति के उच्च मानवीय सद्गुणों का विकास होता है और व्यक्ति को मान-सम्मान और यश-कीर्ति में प्रदान करने में सहायक होता है। मनुज जीवन में संस्कार एक नींव की तरह है तो वही शिक्षा एक महत्वपूर्ण स्तम्भ की तरह है। जीवन में शिक्षा और संस्कार की महत्ता का ज्ञान तभी संभव है जब हम शिक्षा और संस्कार के मूल स्वरूप को जाने। भारतीय संस्कृति में परिवार को प्रथम पाठशाला की संज्ञा दी गयी है और माता को प्रथम गुरु बताया गया है। माँ के आँचल में बच्चे के संस्कारों का बीजारोपण प्रारम्भ हो जाता है।माँ अपने बच्चे को जिस तरह गढ़ने का कार्य करती है वे ही सद्गुण बच्चे के जीवन मे स्थायी बन जाते है और संस्कारों के रूप में परिमार्जित हो जाते है।बच्चा ज्यों-ज्यो बड़ा होता है तो परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा उसे सद्गुणों के बारे में ज्ञान कराया जाता है।बच्चे को अच्छे से उठना-बैठना सीखाना, बोलना सीखाना, बड़ों का आदर करना,नैतिक गुणों की समझ विकसित करना इत्यादि यह सब परिवार को पाठशाला में होता है। बच्चे में श्रेष्ठ संस्कारों के बीजारोपण में परिवार की भूमिका सबसे अहम होती है। मनुज जीवन की प्रथम पाठशाला परिवार बच्चे के भावी जीवन की आधारशिला है।परिवार के सदस्यों के आचरण-व्यवहार और उनकी श्रेष्ठ सोच-समझ बच्चे के संस्कारों को नई दिशा प्रदान करने में महत्ती भूमिका निभाते हैं। अतः परिवार रूपी प्रथम पाठशाला के सदस्यों का यह दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को सही व उचित संस्कारो से परिमार्जित करे।उन्हें सामाजिक-सांस्कृतिक आदर्श प्रतिमानों और मूल्यों की सीख देवे तथा बच्चे को उच्च मानवीय नैतिक मूल्यों की सीख देवे।
परिवार का हर सदस्य अपने आपको शिक्षक की भूमिका में समझे और बच्चे को सही ढंग से संस्कारी करे। सारांश रूप में कह सकते है कि-बच्चे को संस्कारी बनाने की पहली सीढ़ी घर-परिवार है। बच्चे ही राष्ट्र-समाज के उज्ज्वल भविष्य है और इन्ही पर राष्ट्र-समाज का विकास टिका है। बच्चे में अच्छे,श्रेष्ठ और नेक संस्कारो से ही शिक्षा पुष्पित-पल्वित होगी।जीवन के शिक्षा से तात्पर्य विद्यालयी शिक्षा नही है।शिक्षा का अर्थ सिर्फ किताबी ज्ञान भी नही है बल्कि शिक्षा का तात्पर्य-बच्चे को श्रेष्ठ इंसान बनाने के लिए उसे उच्च मानवीय मूल्यों और आदर्श प्रतिमानों के ज्ञान कराने से है। जैसा कि मैंने लिखा है कि परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला है,उस पाठशाला में संस्कारों की सीख बच्चे को शिक्षा प्रदान करने में महत्ती भूमिका निभाती है।बच्चों में अनुशासन,आज्ञाकारिता,
विनम्रता,सहयोग ,सहानुभूति और स्वच्छ प्रतिस्पर्धा की भावना जैसे गुण परिवार की पाठशाला से विकसित होते है। जो बच्चे को शिक्षा ग्रहण करते समय महत्ती भूमिका प्रदान करते है।
बच्चा जब स्कूल में दाखिला होता है तो परिवार की पाठशाला से बच्चे ने संस्कार व शिक्षा प्राप्त की है,वह बच्चे को विद्यालयी शिक्षा प्राप्त करने में मील का पत्थर साबित होती है।
शिक्षा का अंतिम लक्ष्य-बालक का जीवन निर्माण होना चाहिए।जैसा कि गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में था।शिक्षा के इस लक्ष्य से ही भारत ज्ञान के क्षेत्र में “विश्व गुरु”कहलाता था। शिक्षा यदि बच्चे को उच्च मानवीय मूल्यों और आदर्श प्रतिमानों की सीख देने में सफल हो जाय तो बच्चा अपने भावी जीवन को अपने बल-बुद्धि-विवेक,पुरुषार्थ और आचरण-व्यवहार से उसे सुखदायी बनाने में सफल हो जाता है। आज की शिक्षा व्यवस्था को भारतीय संस्कृति और परम्पराओ के अनुरूप किया जाना नितांत जरूरी है। इसके लिए बच्चों में सांसारिक और आध्यात्मिक शिक्षा दोनों को प्राथमिकता देने की जरूरत है। आजकल बच्चे नैतिक मूल्यों से पतित और अनुशासनहीन होते जा रहे हैं उसके दोषी हम और हमारी शिक्षा व्यवस्था है।आज की शिक्षा व्यवस्था एक प्रयोगशाला बनती जा रही है।नित नए-नए प्रयोग होते जा रहे हैं।ऐसे प्रयोगों से शिक्षा को मूल ध्येय कही न कही विचलित होता जा रहा है। आज की शिक्षा व्यवस्था का ध्येय” बच्चों का सर्वागीण विकास”करने की अवधारणा पर केंद्रित है लेकिन इस मूल ध्येय की प्राप्ति में शिक्षकों के शिक्षा देने का विराट उद्देश्य परे रह जाता है और शिक्षकों को अन्य गतिविधियों के संचालन की भूमिका दे दी जाती है। राष्ट्र- समाज के कल्याण के लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था के मूल ध्येय”जीवन निर्माण”की तरह किया जाय और शिक्षकों को वे अधिकार प्रदान किया जाय जिससे वे अपने मूल ध्येय शिक्षा को लेकर आगे बढ़े और बच्चे को राष्ट्र-समाज के सुदृढ योग्य नागरिक बनाने में महत्ती भूमिका निभाए।
आप सभी श्रेष्ठ प्रबुद्धजनो को मेरा सादर वन्दन-अभिनंदन सा।🙏
आपका अपना
हीराराम चौधरी
प्रवक्ता
सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम,वेबसाईट।
आज की शिक्षा व्यवस्था का ध्येय” बच्चों का सर्वागीण
