आर ए एस जेसी प्रशासनिक एवं राजपत्रित पदों की परीक्षाओ मे जितना आजकल के युवा साथियों मे डर या गलतफहमियां है, वैसा सही मे है नही, यदि एक व्यवस्थित प्लानिंग कर व सही मार्गदर्शन के साथ तैयारी करें तो सफलता आसान हो जाती है।
जो बच्चे कोचिंग करते है, उनको तो हर तरह की जानकारी मिल जाती है मगर जो कोचिंग नही करते है ऐसे युवाओ के लिए समाज मे हर स्तर पर उच्च अधिकारियों व अच्छे केरियर काउंसलर से केरियर काउंसलिंग व गाईडेंस के कार्यक्रम जरूर होने चाहिए। समाज मे परगना स्तर पर व राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभावान सम्मान व प्रोत्साहन कार्यक्रम तो बहुत होते है लेकिन केरियर काउंसलिंग व गाईडेंस जेसे कार्यक्रम नही के बराबर होते है, जबकि इनकी आज युवाओं मे बहुत जरूरत है।
प्रशासनिक परीक्षाओं मे सफल होना इतना भी कठिन नही होता हैं, अगर समय रहते मार्गदर्शन मिल जाये, तो आगे आने वाली इन कठिन परीक्षाओं में आसानी से पार पाया जा सकता है।
यदि कक्षा दसवीं या बारहवीं से ही पुरी प्लानिंग व सही मार्गदर्शन से स्नातक तक 3-5 वर्षों में उसके द्वारा इन परीक्षाओं की तैयारी की जाये तो की गई मेहनत से उसको किसी भी प्रतियोगी परीक्षा सफलता पाने से रोक नही सकते।
लेकिन अधिकतर विद्यार्थी स्नातक के बाद इन प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरू करते है, ऐसे में वो प्रतिभागियों की एक लंबी कतार में पहले से ही वह अपने आप को काफी पीछे खड़ा कर देता है। फिर शुरू होती है इस लंबी कतार में सबसे आगे आने की कोशिश। अब इनकी उम्र भी काफी हो चुकी होती हैं क्योंकि कहते है ना कि प्यास लगने पर कुआं खोदने लगते है जो ऐसी परीक्षाओं के लिए सही समय नही है और ये प्रकृति का नियम है कि जितना बड़ा आपका लक्ष्य होगा, बाधाए भी उतनी ही अधिक होगी।
कई बार बिना सही गाईडेंस के गलतियां शुरू हो जाती है। जो भर्ती आई उसका फॉर्म लगाया, उसकी प्रक्रिया पुरी हुई नही कि दुसरी भर्ती निकल जाती है, लग जाते है उसकी तैयारी मे। जितना समय मिला, उतनी तैयारी की और परीक्षा दे दी। ऐसे में कम तैयारी में असफलता हाथ लग भी जाती है, और इस तरह से असफलता झेलने की आदत पड़ जाती है।
समय निकलता जाता है और इतनी तैयारी हो जाती है इन सभी भर्तियों के चक्कर में कि अब तो कोई भी एग्जाम दिला दो, मेरिट के थोड़ा पास तो पहुंच ही जाते हैं। लेकिन सफलता नही मिल पाती लेकिन मनोबल नही टूटता क्योंकि जिस लंबी कतार में खड़े थे, उस कतार में कुछ तो आगे बढ़ रहे हैं।
जबकि होना ये चाहिए कि किसी एक परीक्षा को लक्ष्य बनाकर ही तैयारी करे या उससे रिलेटेड सेलेबस वाली परीक्षाओं की ही तैयारी करे। दोनो हाथो मे लड्डू लेकर चलना कई बार भारी पड जाता है।
ऐसे में जीवन का बहुमूल्य समय निकलता जाता है और तब तक शादी की उम्र भी हो जाती है ऐसे समय पर कई बार तो अच्छे रिश्ते हाथ से निकलने का डर या आटा साटा जेसी परेशानियों से घर वालो के दवाब मे न चाहते हुए भी शादी करनी पडती है।
इस तरह से अपनी पढ़ाई में की हुई मेहनत और इस दौरान गंवाया अपना समय और माता पिता की महंगी पूंजी पर ग्रहण लग जाता है।
शादी के बाद परिवार की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ जाती हैं कि एक जगह बैठ कर पढ़ाई करने मुश्किल हो जाता है। और ऐसे में फिर प्रतिभागी का भावी जीवन संकट में आ जाता है। ऐसे में वो सही निर्णय कर ही नही पाता, क्योंकि अब तो उसे सब लोग ताने मारने लग जाते हैं।
इस तरह से दबाव में आकर कई बार वह प्रतिभागी अपने, अपने परिवार और समाज के साथ न्याय नही कर पाता है, और हार मानकर इस दौड़ को बीच में ही छोड़ देता है।
अतः मेरा कहना यही है कि अगर आप एक लोक सेवक बनना चाहते हो, तो आपको काफी समय पहले ही अपने आप को अपनी काबिलियत के अनुरूप तैयार करना होगा।
दसवीं कक्षा के बाद आपका हर एक कदम उसी दिशा में होना चाहिए, जो आपको अपनी तय मंजिल की और बढ़ाये।
इसके लिए दसवीं व बारहवीं के बाद ही बच्चे को कैरियर गाइडेंस जरूरी है।