सीरवी समाज के सभी दानवीर महानुभावों और समाजसेवियों को मेरा सादर चरण वन्दन सा।🙏🙏
जय माँ श्री आईजी सा।
यह पोस्ट लिखते हुए मुझे गर्व होता है कि अपना समाज अपने नाम में समाहित “सीर” शब्द की सार्थकता की दिशा में तेज गति से बढ़ रहा है।यह भावना समाज को नव ऊंचाईयां प्रदान करेगी,ऐसा मुझे विश्वास है। समाज के लोगो मे दान की प्रवृति में गजब का अर्पण और उत्साह देखने को मिलता है। आज समाज में जहां देखो वहाँ कुछ न कुछ नया हो रहा है। समाज के लोगो की दान की अच्छी प्रवृति के कारण ही सांस्कृतिक धरोहर के रूप में माँ श्री आईजी के धाम “वडेर” बन रहे हैं।शिक्षा मंदिर और छात्रावास बन रहे हैं।जगह-जगह गौ-शाला में समाज के बंधुजन अपनी महत्ती भूमिका निभा रहे है। बड़ी वडेरों में नियमित भोजन शाला का संचालन हो रहा है। अपनी मातृभूमि के विद्यालयों में उदार दिल से योगदान कर रहे हैं। समाज के धनी वर्ग विराट सोच और विशाल सहृदयता से आर्थिक रूप से विपन्न बंधुजनों की मदद कर रहे हैं।आज श्री आईजी सेवा समिति,सीरवी किसान सेवा समिति ,संस्कार केंद्र और अन्य ट्रस्ट जैसे श्री आईजी बालिका फाउंडेशन इस दिशा में सराहनीय योगदान कर रहे है। यह सब देखकर हर सच्चे सीरवी का सीना गर्व से फूल जाता है। समाज सेवा को समर्पित सभी सामाजिक संस्थाओं से जुड़े सभी वन्दनीय कर्मशील कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता व भामाशाह जन बधाई के पात्र है। वे सभी साधुवाद के सच्चे अधिकारी है।
सीरवी समाज बालिका शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना सर्वोत्तम योगदान कर रहा है।आज बिलाड़ा और जवाली के बालिका संस्थान नारी शिक्षा उन्नयन की दिशा में श्रेष्ठ उदाहरण है।
दान देने वाले की सभी प्रशंसा करते हैं। दान देने की प्रथा आज से नही प्राचीन काल से चली आ रही है।प्राचीन भारत में राजा शिवि, मुनि दधीच, कर्ण आज भी दान के कारण अमर हैं। आपके पास जो भी है यथा-धन, वस्तु, अन्न, बल, बुद्धि, विद्या उसे किसी अन्य जीव को उसकी आवश्यकता पर, चाहे वह मांगे या न मांगे, उसे देना परम धर्म, मानवता या कर्तव्य है। प्रकृति अपना सब कुछ जीवों को बिना मांगे ही दे रही है। ईश्वर भी, भले हम मांगें या न मांगें हमारी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार हमें देता है। अत: वह हमसे भी अपेक्षा करता है कि हम भी, हमारे पास जो है उसे दूसरों को दें। शास्त्रों में कई ऐसे प्रसंग हैं जिसमे लिखा गया है कि जो दीनों(गरीबों) की सहायता नहीं करता वह कितना भी यज्ञ, जप, तप, योग आदि करे उसे स्वर्ग या सुख नहीं प्राप्त होता। जिस व्यक्ति में या समाज में दान की भावना नहीं होती उसे सभ्य नहीं कहा जाता। उसकी निंदा होती है और उसका पतन होता है, क्योंकि समाज में सुखी-दुखी, और संपन्न-विपन्न होंगे ही और सहयोग की आवश्यकता होगी। अत: समाज के अस्तित्व और प्रगति के लिए सहयोग आवश्यक है। दान देने के समय आपके मन में, अहं का, पुण्य कमाने का या अहसान करने का भाव नहीं होना चाहिए, उस पात्र का आपको कृतज्ञ होना चाहिए कि उसने आपके अंदर सद्भाव जगाकर आपको कृतार्थ किया। आपको अपने ईष्ट देवी देवता के प्रति कृतज्ञता होनी चाहिए कि उसने आपको कुछ देने के योग्य बनाया। दान से ही ईष्ट देवी देवता प्रसन्न होते है।
अत: अपने ईष्ट देवी-देवता की प्रसन्नता के लिए, अपने को उत्कृष्ट बनाने के लिए और समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें जरूरतमंदों की सहायता बड़े व उदार मन से करनी चाहिए।
आइये,आप और हम सब मानवीय सेवा के लिए उदार दिल से और अपनी श्रद्धा भक्ति से दान जरूर करे।
परमार्थ ही जीवन का यथार्थ है।जीना उसी का सफल है जो अपने लिए नही औरों के लिए अपना अर्पण करता है।
संस्कृत में कहा गया है कि
“आत्मार्थं जीवलोकेस्मिन् को न जीवति मानवः ।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥”
इस दुनिया में अपने लिए कौन मानव नहीं जीता अर्थात सब जीते हैं ,लेकिन जो मनुष्य परोपकार के लिए जीए उसे ही जीया कहते हैं।
आप सभी श्रेष्ठ वन्दनीय महानुभावों को मेरा दिल से सादर वन्दन-अभिनंदन सा।🙏🙏
सभी के उज्ज्वल व प्रगतिमय जीवन की मंगलमयी शुभकामनाओ और परमार्थ के लिए विराट हृदय से दान की अपेक्षा में।
सदैव आपका अपना
हीराराम गहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
अपना समाज अपने नाम में समाहित “सीर” शब्द की सार्थकता की दिशा में तेज गति से बढ़ रहा है।यह भावना समाज को नव ऊंचाईयां प्रदान करेगी,ऐसा मुझे विश्वास है। समाज के लोगो मे दान की प्रवृति में गजब का अर्पण और उत्साह देखने को मिलता है।
