सभी समाज बन्धुओ काे जय मां आईजी री सा।
समाज, शिक्षा व छात्रावास
अक्सर देखा जाता है कि आज कल पढाई को ले कर विशेष कर उच्च शिक्षा को लेकर कई बच्चों के माता-पिता काफी परेशान रहते है । परिवार के सदस्य यही चाहते है कि अपना बच्चा होशियार हो, उच्च अधिकारी बने और खानदान व समाज का नाम रोशन करे । पैसे वाले लाेग ताे बडी-बडी उमिदें रखकर लाखों रुपए का खर्च कर के प्रतिष्ठीत जानी– पहचानी स्कूलों व कालेज में इंजीनियरिंग व मेडिकल जैसी डिग्रियों हेतु एडमिशन दिलाकर अध्ययन करवा सकते है । ऐसी स्कूलों कालेजो में पढाई करवाना अपना इज्ज्त का सवाल समझते है । जहाँ स्कुल के साथ छात्रावास का खर्च भी बहुत ज्यादा हाेता है, जाे मध्यमवर्गीय परिवार काेई वहन नही कर सकता है।
ऐसे मे उन माता पिता के लिए बडे शहराे मे, बडी संस्थान मे अपने हाेनहार बच्चे काे पढाना एक सपना सा लगता है। भाईयों जिन परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नही हाेती है। एेसे बच्चाे के लिए समाज व समाज के भामाशाहाे का दायित्व बनता है कि उन हाेनहाराे के लिए जहां जरुरत हो, छात्रावास की सुविधा उपलब्ध करवाई जानी चाहिए, जैसा कि अन्य समाजों मे होता हैं।
हम बच्चों को अपने घर में लाड-प्यार से पाले – पोसे जाते हैं । वहाँ दूसरों से मिलजुलकर रहने का मौका नहीं मिलता । जो अपने घर में अपने परिवार के लोगों के साथ ही जीवन बिताता है, उसे अगर किसी कारण से मजबूर होकर अन्य स्थान पर जाना पडे तो वह एकदम परेशान होने लगता है । जो छात्रवास में रह चुका है वह दूसरों के साथ आसानी से हिल-मिलकर रहने लगता है ।
भाईयों छात्रावास ही हैं, जहां सबके साथ हिल मिलकर रहने से सभी भेद-भाव दूर हो जाते है और अनुशासन का पाठ छात्रों को मिलता है । यही नहीं छात्रवास की व्यवस्था के लिए छात्रों से ही पदाधिकारी भी बनाये जाते है , जिससे नेतृत्व की भावना अपने आप विकसित होती जाती है । छात्र आज्ञाओं का पालन करना सीख जाते है और आज्ञाएँ देना भी । जो दूसरों की आज्ञाओं का पालन करता है वही दूसरों को आज्ञाएँ दे भी सकता है । यह एक सफल आदमी का लक्षण है ।
छात्रवास में समय पर सारे काम करने पडते है । समय की पाबंदी का ख्याल रखना पडता है । समय के मूल्य को समझने की जरुरत नहीं है । हाँ ! हम तो जानते हैं कि जो समय की परवाह नहीं करता , उसकी परवाह समय भी नहीं करता । छात्रवास में रहने से किसी प्रकार की हानियाँ नहीं हैं । अमीर – गरीब और उँच – निच का कोई भेद – भाव नहीं होता है । सामाजिकता की भावना से खुद का काम करना एवं मित्रों के साथ अपनी जटिलताओं का व अपनी समस्याओ का निवारण कर लेता है । छात्र बुरे विचारों से दूर रहता है । उनकी देख रेख हास्टल वार्डन, समाज के शिक्षाप्रेमी भाईयों तथा उच्च अधिकारियों के साथ साथ कुछ बडे लडकों से भी हो जाती है ।
आजकल चकाचौंध व मोबाइल टीवी के युग मे छात्रों का जीवन बहुत अस्त-व्यस्त रहता है । माता-पिता के पास फुरसत ही नहीं रहती कि वे अपने बच्चों की शिक्षा-दिक्षा पर ज्यादा ध्यान दे सकें, ऐसे मे छात्रावास में अध्ययन, छात्रहित के लिए बहुत बहुत ही जरुरी हो जाता हैं। जहां सब के साथ सबकी अच्छी तरह से गाईडेंस, मार्गदर्शन व देख-रेख भी अच्छी से होती हैं ।
यदि छात्रावास हाे ताे समाज के शिक्षाप्रेमी बन्धु, बडे अधिकारी, आर ए एस, आई ए एस उनकाे मार्गदर्शन व गाईडेंस के लिए भी जा सकते है क्याेकि बहुत सारे विधार्थी एक ही जगह पर इकट्ठा सिर्फ छात्रावास मे ही मिल जाते है।
लेनिन ने एक बार कहा था कि “ विद्यार्थी का पहला कर्तव्य है अध्ययन करना , दूसरा कर्तव्य है अध्ययन करना और तीसरा कर्तव्य है अध्ययन करना ” । इसलिए छात्रों का लक्ष्य अध्ययन अथवा पढना ही होना चाहिए । उसी पर ध्यान देना चाहिए । यदि कोई बच्चा बिमार पड जाता है या किसी भी तरह की कीेई समस्या किसी के साथ आती है ताे सभी साथी उसकी सही देखभाल भी कर लेते है वह अकेला महसुस नही करता है। अंत मैं यही कहना चाहता हूँ कि अध्ययन क्षेत्र में छात्रवास अध्ययन ही सबसे अच्छी और श्रेष्ठ सुविधा है । इस अवसर को कोई छात्र नही खाेना चाहता है।
मै समाज के सभी बुद्धिजीवी, शिक्षाप्रेमी, समाजसेवी तथा दानवीर भामाशाहाे से निवेदन करुंगा की समाज मे जहां भी छात्रावास का काम चल रहा है, वहा तन, मन व धन से अपना सहयाेग अवश्य देवे।
आपका साथी।
दौलाराम सोलंकी, धणा, उदयपुर