हम दीपक क्यों जलाते हैं? अंधकार को हरने की सबसे इकाई ‘दीपक ‘ है ।दीपक हमारी अलौकिकमयी प्राचीन संस्कृति का प्रतीक है ।युगों- युगों से कुम्हार की चाक से निखरता हुआ मटमैली चिकनी मिट्टी की उपज यह दीपक कठोर अग्नि परीक्षा से गुजर कर एक साधारण सी काया लेकर मानव तक पहुंचता है ।दीपक जीवन भर अंधेरे के खिलाफ संघर्षरत रहकर गहन से गहनतम अंधकार को पराजित करने की सामर्थ्य रखता है ।कहते हैं कि इस सारी सृष्टि को प्रकाश और गर्मी प्रदान करने वाले सूर्यदेव ने दीपक को अंधकार से लङने की शक्ति प्रदान कर उसे अपना वारिस बताकर पूजने की परम्परा शुरू करवाई होगी ।हमारी पावन संस्कृति में दैनिक पूजा,जीवन-मरण ,शादी-विवाह,यज्ञ हवन अनुष्ठान,भजन कीर्तन,अच्छे-बुरे व सामूहिक कार्य करने में दीपक जलाने की स्वस्थ परम्परा कायम है ।हम घर में,मंदिर में तथा देवी-देवताओं के चित्र और मूर्तियों के समक्ष दीप जलाकर ‘दीपो ज्योति नमो नमः ‘कहकर उसे आत्मीय प्रणाम करते हैं ।तेल या घी से भरे दीपक में रूई की बाती रखकर उसे जलाने से जो प्रकाश मिलता है,वह मानव प्राणी को अदभुत सुख -शान्ति,आत्मिक सुख और सौन्दर्य प्रदान करता है प्रकाश ‘ज्ञान ‘का प्रतीक है और अंधकार ‘अज्ञान’ का ।ब्रह्म (ईश्वर)वह चैतन्य तत्व है,जो हमारे सम्पूर्ण ज्ञान का मूल स्त्रोत,उसका प्रकाशक और अनुप्राणित करने वाला है।अतः प्रकाश की पूजा स्वयं ब्रह्म के रूप में की जाती है ।ज्ञान एक ऐसी चिरस्थायी आन्तरिक सम्पत्ति है,जिसके द्वारा सभी बाह्य उपलब्धियां अर्जित की जा सकती है ।अतः हम ‘ज्ञान ‘की इस सर्वोत्कृष्ट सम्पत्ति को नमस्कार करने केलिए दीप जलाते हैं ।ज्ञान हमारे अच्छे-बुरे सभी कर्मों का समर्थन करता है ।इसलिए सभी शुभ समारोहों पर हम अपने विचारों और कर्मों के साक्षी के रूप में दीप जलाकर रखते है ।परम्परा तेल या घी के दीप जलाने का एक और भी आध्यात्मिक महत्त्व है ।दीपक का तेल या घी हमारी वासनाओं का प्रतीक है और बाती हमारे ‘अहं’का प्रतीक है ।आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा प्रज्वलित होकर हमारी वासनाएं धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है और अंत में हमारे ‘अहं ‘का भी नाश हो जाता है ।दीपक की लौ सदा ऊपर की ओर जलती है ।उसी प्रकार हम ऐसा ज्ञान अर्जित करें,जो हमें उच्चतर आदर्शों की ओर ले जाएँ ।इसीलिए दीप जलाते समय हम सब यह प्रार्थना करते हैं–
दीप ज्योति:परब्रह्म दीप:सर्वतमोअपह:।दीपेन साध्यते सर्वसंध्यादीपो नमोस्तुते ।। (मैं प्रात:/संध्या दीप को प्रणाम करता हूँ,जिसका प्रकाश ज्ञान तत्व (ब्रह्म)है,जो अज्ञान के अंधकार को मिटाता है और जिसके द्वारा जीवन में सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है ।)
—मोहनलाल राठौड़ उचियार्ङा
हम दीपक क्यों जलाते हैं?
