समाज के लोकोत्सव

मारा देश त्योहारों लोकोउत्सवों का देश है, जिस प्रकार हिंदू धर्म में अलग-अलग देवताओं के अनुयाई हैं और अलग अलग ढंग से पूजा अर्चना व व्रत आदि करते हैं। उनके अलग-अलग पर्व होते हैं, जैसे गजानन्दजी का व्रत बुधवार को, हनुमानजी का व्रत मंगलवार को, संतोषी माता का व्रत शुक्रवार को व सत्यनारायणजी भगवान का व्रत पूर्णिमा को तथा अनंत चतुर्थी का व्रत आदि कर उजमणा कर अपने देवता की पूजा अर्चना करते हैं। ठीक उसी प्रकार श्री आई माताजी ने अपने पंथ के डोरा बन्दों को हर शनिवार व हर माह की शुद् बीज को पर्व मानने का उपदेश दिया है, उनमें भी वर्ष के चार सुद बीज ( चैत्र सुद बीज, वैशाख सुद बीज, भादरवा सुद बीज, तथा माघ सुद बीज ) को अपने पंथ का बड़ा त्यौहार मानते हैं। हमारा सीरवी समाज का कृषि कर्म मुख्य धंधा है। उसका वर्ष आषाढ़ से प्रारम्भ होता है, क्योकि इसी माह में वर्षा आरम्भ होती है और खेतों में जुताई बुवाई करके कृषि कर्म का वर्ष प्रारम्भ होता है। सर्व-प्रथम आषाढ़ की पूर्णिमा को आषाढ़ी पर्व मनाया जाता है। वैसे तो हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी व्रत त्यौहार आदि के रूप में मनाया जाता है लेकिन कुछ दिन विशेष रूप से खास होते हैं जिनकी लोक जीवन में बहुत अधिक मान्यता होती है। वैसे हिन्दू धर्म में प्रमुख त्योहार है- दीपावली, होली, रक्षाबंधन, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, विजयादशमी, मकर सक्रांति, शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी, श्रावणी तीज, दुर्गा अष्टमी, बसंत पंचमी अादि, त्‍यौहार सीरवी समाज के जाति के लोग बड़ी उमंग से मनाते हैं लेकिन कुछ ऐसे त्‍यौहार है जो सीरवी जाति के लोगों के लिये विशेष रूप से महत्‍व रखते हैं। सीरवी जाति के कुछ महत्‍वपूर्ण व्रत और त्‍यौहार इस प्रकार है :–

फाल्गुन माह के मनाये जाने वाले पर्व :

महाशिव रात्रि: महाशिव रात्रि व्रत फाल्‍गुन मास की कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है । प्राय: सीरवी महिलायें शिवजी का व्रत रखकर भगवान शिव को जल चढ़ाकर फल आदि ग्रहण करती है। भरकर रोली, मोली, चावल, दूध, घी, बेल पत्र आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करते हैं । होली का बड़ कुल्‍ला: सीरवी जाति के लोग होली से पन्‍द्रह दिन पहले किसी शुभ दिन गाय के गोबर से सात बड़कुल्‍ला बनाते हैं। फाल्‍गुन शुक्‍ल एकादशी को गोबर की पांच ढाल, एक तलवार, एक चांद सूरज, आधी रोटी, एक होलिका भाई और एक पान बनाते हैं। बड़कुल्‍ला को माला में पिरोते हैं।

 

होली: होली का पर्व फाल्‍गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली के आठ दिन पहले से होलाष्‍टक प्रारम्‍भ होता है। सीरवी जाति के लोग इसे ‘होली का डांडा’ रोपना भी कहते हैं। होली का डांडा रोपने के बाद जब तक होली नहीं जलती तब तक कोई भी शुभ कार्य करना सीरवी समाज में वर्जित माना जाता है, सीरवी समाज मे होली रंगारंग गैर नृत्य कार्यक्रम आयोजन करते है। इस रंगारंग होली गैर नृत्य में सीरवी जाति लोग अपनी राजस्थानी वेश-भूषा में गैरीयों ने चंग की थाप पर बड़े ही उत्साह के साथ गैर नृत्य करते है, साथ ही महिलाओं द्वारा फागुनी (लूर) पर गीतों को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। इस दिन सायंकाल के बाद भद्रा रहित लग्‍न में कच्‍चे सूत की लड़ी, जल का लोटा, बूट अर्थात कच्‍चे चने की डाली आदि से पूजा करने के बाद होलिका दहन किया जाता है। होली दहन के दूसरे दिन होलिका के उत्‍सव पर एक दूसरे के गुलाल और रंग लगाकर प्रेम व भाई चारे का उदाहरण प्रस्‍तुत करते हैं ।

चैत्र माह के मनाये जाने वाले पर्व : 

शीतला सप्तमी: विशेष कर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला सप्तमी-अष्टमी का पर्व त्यौहार हमारे सीरवी समाज में मनाया जाता है। इस पर्व को बसौड़ा यानी (बासी खाना) भी कहते हैं। इस दिन सीरवियों के घरों में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं। फिर दूसरे दिन प्रात:काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद बासौड़ा का प्रसाद अपने परिवारो में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करते है। इस दिन सिर नहीं धोते , सिलाई नहीं करते, सुई नहीं पिरोते , चक्की या चरखा नहीं चलाते हैं। हमारे सीरवी समाज में यह अगता माँ और दादी रखते हैं। जिस घर में शीतला माता का पूजन और व्रत शुद्ध मन से किया जाता हैं वहाँ शीतला माता धन – धान्य, सुख़-समृद्धि, आरोग्य,बच्चो पर चेचक (बोदरी छोटी माता) आदि से से रक्षा करती हैं

 

नवरात्री: चैत्र मास बहुत ही शुभ मास माना जाता है। क्योंकि इसी से हिंदू नव वर्ष या कहें संवत्सर की शुरुआत होती है। चैत्र मास का विशेष आकर्षण होते हैं मां की उपासना के नौ दिन चैत्र नवरात्री शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है,माता दुर्गा को समर्पित यह त्योहार हमारे सीरवी समाज में अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इन दिनों सीरवी समाज के बन्धु विधि-विधान से मां की पूजा करते हैं तो मां प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं।

 

गणगौर: हमारे सीरवी समाज में गणगौर ,आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है। गणगौर का त्योहार चैत्र गणगौर पर्व गणगौर दशमी से अथवा एकादशी से प्रारंभ होता है, ‘गण ‘यानि शिव ‘गौर ‘यानि पार्वती इससी मिलकर बना है यह पर्व गणगौर, सीरवी जाति के लोगो के लिए गौरवमय पर्व है। इस पर्व में कुँवारी लड़कियाँ भी इच्छित वर पाने के लिए ईश्वरजी और माँ पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु के लिए यह पूजा धूम-धाम से करती हैं। यह काफी बड़ा त्योहार है। व्रत करने वाली महिलाएँ 16 सुहागन स्त्रियों को 16 शृंगार की वस्तुएँ भेंट करके भोजन करवाती हैं।

 

राम नवमी: चैत्र शुक्ल नवमी को प्रभु श्री राम की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि रामलला का जन्म इसी दिन हुआ था। इसलिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।

बैसाख माह में मनाये जाने वाले पर्व :

आखा तीज: अर्थात् अक्षय तृतीया वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इस दिन सीरवी जाति के लोग अपने बच्चों कि शादी-ब्याह करने की शुरुआत कर देते है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अपने बच्‍चों का विवाह पूरी रीति-रिवाज के साथ विवाह रचाते हैं। इस त्‍यौहार के दिन मारवाड़ क्षेत्र के सीरवी जाति के कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं।

आषाढ माह में मनाये जाने वाले पर्व :

गुप्त नवरात्रि : प्रत्येक वर्ष में चार नवरात्रि होते हैं। वर्ष की पहली नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आरंभ होती है जिन्हें वासंती नवरात्र भी कहते हैं वहीं बड़े स्तर पर शारदीय नवरात्र मनाये जाते हैं जो कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से आरंभ होते हैं। लेकिन चैत्र के पश्चात आषाढ़ व आश्विन माह के बाद माघ माह में भी शुक्ल पक्ष से नवरात्रि शुरु होते हैं लेकिन इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्र शुरु होते।

 

आषाढ़ पूर्णिमा :आषाढ़ पूर्णिमा का दिन बहुत ही खास होता है। इस दिन को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा आदि के रूप में भी मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। आज कल सीरवी बंधुओं के अपने समाज के ही गुरूओं तथा अन्‍य समाज के गुरूओं से गुरू शिष्‍य का संबंध बन गया है ओर अब इस त्‍यौहार को हर्सोउल्‍लास के साथ मनाया जाता है ।

श्रावण माह में मनाये जाने वाले पर्व :

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृ्तीया तिथि का दिन हरियाली तीज या सिंघारा तीज के नाम से जाना जाता है. यह त्यौहार विशेष रुप से नवविवाहित व विवाहित महिलाओं के द्वारा किया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार हरियाली तीज को शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस प्रकार यह पर्व हमारे सीरवी समाज में आस्था ओर प्राकृ्तिक सौन्दर्य और चारों ओर हरियाली छाने से मन में उठने वाली उंमग का त्यौहर है। इस दिन बारिश होने पर इस त्यौहार की छटा ओर भी बढ जाती है। इस दिन झूले डाल कर लोकगीतों गायन और नाच के इस त्यौहार को मनाया जाता है. व विशेष रुप से माता- पार्वती की पूजा की जाती है।

 

नाग-पंचमी: प्रत्येक वर्ष की श्रावण मास, शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी का पर्व श्रद्धा व विश्वास के साथ हमारे सीरवी समाज में मनाया जाता है। इस मास में नाग देव की पूजा करने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है। विधिपूर्वक विधि-विधान से इस दिन उपवास रख नागों की प्रतिमा या चित्र का पूजन करना शुभ रहता है। इस दिन घर की दहलीज को गोबर से लीप कर शुद्ध कर दुर्वा, दूध ओर कुशा सहित पूजा की जाती है।

 

रक्षा बन्धन : भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व रक्षा बन्धन, यह त्‍यौहार सीरवी जाति में श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस पर्व के दिन बहने अपने भाईयों कि कलाई पर राखी बांधती और माथे पर तिलक लगाती है। भाई प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति में अपनी बहन की रक्षा करूंगा। प्राचीन काल से ही यह पर्व भावनात्मक बंधन व बहन के प्रति एक भाई की जिम्मेदारियों का स्मरण कराने का दिन है। रक्षा- बंधन के दिन भद्रा समय के बाद राखी बांधी जाती है। सीरवी जाति में राखी का त्‍यौहार बड़े ही हर्षोउल्‍लास से मनाया जाता है।

भाद्रपद माह में मनाये जाने वाले पर्व :

श्री आईजी अवतरण दिवस : आई पंथ ( सीरवी समाज ) में बीज पर्वो की विशेष महिमा है! माँ श्री आईजी के अनुयायी पूरे देश में प्रतिवर्ष बीज पर्वो को बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते है। संवत् 1521 की भादरवा सुद बीज को आई माताजी बिलाड़ा पधारे थे हर वर्ष यह त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर देवी देवताओं के चढ़ावे की बोलियां बोली बोली जाती है। जिसमें समाज बंधुओं ने बढ चढ कर हिस्सा लेते, बीज के दिन पूजा-पाठ,सत्संग,महाप्रसाद,सम्मान समारोह सहित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जिसमें बडी संख्या में लोगों ने भाग लेते। व्यापारी वर्ग भादवा सुद बीज को अपने व्यापार का अवकाश रखते है।

 

गणेश चतुर्थी : भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था। आधुनिक समय में, लोग घर के लिए या सार्वजनिक पंडालों को भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति लाते है और दस दिनों के लिए पूजा करते हैं। त्यौहार के अंत में लोग मूर्तियों को पानी के बडे स्रोतों (समुद्र, नदी, झील, आदि) में विसर्जित करते हैं। सीरवी जाति के लोगों द्वारा हर साल बहुत साहस, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

 

कृष्णजन्माष्टमी : हम सभी जानते है कि श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। पवित्र माह सावन के समाप्त होते ही भाद्रपद (भादो) महीना शुरू होता है। इसी महीने के शुरू होते ही अष्टमी के दिन यह पर्व पूरे देश भर में हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। कृष्ण जन्माष्टमी हमारे सीरवी जाति में पूरी आस्था व उल्लास से मनाते है। हमारे समाज में मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। सीरवी जाति में जन्माष्टमी का उत्सव मंदिर मे विशेष पूजा अर्चना करके तथा दर्शन करके मनाया जाता है।

 

गोगा नवमी : गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं, भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की नवमी गोगा नवमी के नाम से प्रसिद्ध है। सीरवी जाति की महिलाएँ गोगा नवमी को सुबह जल्दी उठ नहा धोकर खाना बना लें खीर, चूरमा, गुलगुले आदि बनाकर जब मिट्टी की मूर्तियां लेकर महिलाएं अाती है तो इनकी पूजा होती है। रोली, चावल से टीका कर बनी हुई रसोई का भोग लगाएं। गोगाजी के घोड़े के आगे दाल रखी जाती है और रक्षाबंधन की राखी खोल कर इन्हें चढ़ाई जाती है। गोगा नवमी के नाम से प्रसिद्ध ये त्यौहार गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि गोगाजी की गिनती पांच पीरों में भी है, ऐसी धारणा है कि गोगा जी से मन्नत मांगने वालों के काम सिद्ध होते हैं. सांपों से रक्षा के लिए भी गोगा जी की पूजा की जाती है. इनकी कहानियां भी बहुत प्रचलित हैं. इसके आलावा गोगा जी को नीले घोड़े वाला और त्रिशूल वाले पीर के नाम से भी जानते हैं।

आश्विन माह में मनाये जाने वाले पर्व :

शारदीय नवरात्र: आश्विन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि का पर्व शारदीय नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत उपवास , आद्यशक्ति माँ जगदम्बा के पूजा,अर्चना,जप ध्यान का पर्व है। सीरवी समाज मे नवरात्र के उपलक्ष में सतसंगत प्रति दिन श्री जगदम्बै-नवदुर्गा का महिमा-भजन कार्यक्रम होते है। शारदीय नवरात्रि पर्व के मंगल अवसर पर नवदुर्गा के प्रति अपना कृतज्ञता ज्ञापित करने सीरवी समाज में डांडियों की धूम के साथ कई विशेष कार्यक्रम किए जाते है जिसके चलते बडेर भवन में समाज बन्धुओं का आवागमन विशेष मेला सा प्रदर्शित रहता है।

 

दशहरा अथवा विजयादशमी : आश्विन शुक्ल दशमी के दिन विजयदशमी (दशहरा) का त्योहार मनाया जाता है। दशहरा हिन्दू त्योहारों में महत्वपूर्ण त्योहार है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में हर्ष और उल्लास के साथ इस त्योहार को मनाया जाता है। इस दिन को असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में मान्यता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था। रावण वध से पूर्व राम ने दुर्गा की आराधना की थी व मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था। ,दशहरा का त्यौहार सीरवी समाज में उत्साह और धार्मिक निष्ठा के साथ मनाया जाता है।

कार्तिक माह में मनाये जाने वाले पर्व :

धनतेरस : हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्योहार है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को ‘धनतेरस’ या ‘धनत्रयोदशी’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन सीरवी जाति के लोग आपने घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ कर देते हैं। दीपावली के लिए विविध वस्तुओं की ख़रीद आज की जाती है। सीरवी जाति के लोग इस दिन घर के टूटे-फूटे पुराने बर्तनों के बदले नये बर्तन खरीदते हैं । इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्‍यधिक शुभ माना जाता है। धनतेरस का त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन यानि दिपावली के दो दिन पहले बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

 

दीपावली: कार्तिक मास की अमावस्‍या को दीपावली का पर्व सीरवी जाति के लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्‍मी को प्रसन्‍न करने के लिये सीरवी लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़-सुथरा कर सजाते हैं। सीरवी जाति में यह मान्‍यता है कि कार्तिक अमावस्‍या को भगवान श्री रामचन्‍द्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर रावण को मार कर अयाध्‍या लौटे थे। अयोध्‍या-वासियों ने श्री रामचन्‍द्र जी के लौटने की खुशी में दीप मालायें जलाकर महोत्‍सव मनाया था। दीपावली के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। इस दिन गणेश जी कि पूजा से ऋद्धि–सिद्धि एवं माँ लक्ष्मी के पूजन से घर में स्थाई सुख-समृद्धि का वास होता हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयां व उपहार बांटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है।

 

गोवर्धन पूजा: कार्तिक मास की शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्‍सव मनाया जाता है। सीरवी जाति की महिलायें गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल, दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा प्ररिक्रमा करते है।

पौष माह में मनाये जाने वाले पर्व :

मकर संक्रान्ति: पौष मास में जब सूर्य देवता धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते है तब मकर संक्रांति का त्‍यौहार मनाया जाता है, मकर संक्रांति उन त्योहारों में से एक है जो की पुरे भारत में मनाया जाता है। अंग्रेजी कलेण्‍डर के अनुसार मकर संक्रान्ति हमेशा 14 जनवरी को होती है। दक्षिण भारत तमिलनाडु में इसको पोंगल कहा जाता है। इसकी तुलना नवान्न से की जा सकती है जो फसल की कटाई का उत्सव होता है। हमारे सीरवी समाज में हर त्योहार पर अलग-अलग पकवान बनाने और खाने की परंपरा है. मकर संक्रांति के त्यौहार पर तिल और गुड़ के पकवान बना के खाने की परंपरा है। और गायों को चारा खिलाते हैं। शाम को बहन बेटियों को खाने पर आमंत्रित करते हैं और चूरमा दाल बाटी अथवा स्‍वादिष्‍ट भोजन बनाते हैं। इस दिन राजस्‍थान में अनेक जगहों पर पतंगे उड़ाई जाती है, लोग पुरे दिन अपनी छतों पर पतंग उड़ाकर हर्ष और उल्‍लास के साथ इस त्यौहार को मनाते है। हालांकि हमारे पुराणों के अनुसार पतंग उड़ाने का मकर संक्रांति से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है।

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