प्रथम मैं अपने उन सभी पुरखों को कोटि-कोटि नमन-वन्दन करता हूँ जिन्हीने हमें आत्मानुशासन की सीख दी,हमें जीवन को मर्यादित ढंग से जीना सीखाया। पुरखों ने अपने जीवन प्रबंधन को बड़ी कुशलता से संचालित किया था। सभी लोग अपना जीवन आत्मसंयमित होकर जीते थे।आत्मानुशासन और मर्यादित आचरण उनके जीवन का अटूट हिस्सा था। हर व्यक्ति पूर्ण ईमानदारी व दिल की सच्चाई से इसकी पालना करते थे। उनके लिए आत्मानुशासन और मर्यादित आचरण एक लक्ष्मण रेखा की तरह थी।उन्होंने कदापि उसका उल्लंघन नही किया,यही वजह थी कि उनका जीवन सुखकारी था तथा तनाव से रहित था। जब कि आर्थिक दृष्टि से कितने विपन्न थे,गरीबी का जीवन जीया लेकिन इस आर्थिक विपन्नता को उन्होंने अपने जीवन के आत्मानुशासन को विखंडित करने नही दिया और न ही उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में अपना मर्यादित आचरण छोड़ा।
हे पुरखें!सचमुच आप कोटि-कोटि अभिनंदन के अधिकारी हो।आप सभी बधाई के पात्र हो।आप लोगों ने बहुत बड़ी विशाल सहृदयता और कठोर नियमावली से अपने जीवन को आत्मानुशासन से जीया।आप लोगों ने आने जीवन को अवसादग्रस्त नही होने दिया।आपने संयुक्त परिवार व्यवस्था का सफल संचालन कर बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। बड़े-बुजुर्गों का मान-सम्मान अवल दर्जे का था।वे छोटी-छोटी बातों पर बारीकी से ध्यान रखते थे।वे बड़े-बुजुर्गों के सामने बोलने,खाने-पीने और सामाजिक मर्यादाओ की शत प्रतिशत पालना करते थे।वे धूम्रपान का भी नशा करते थे तो छुपके-छुपके करते थे।उनके खान-पान व शयन की अपनी मर्यादाएं थी।धन्य है उनका आत्मानुशासन व मर्यादित आचरणमय जीवन।
आज हम बाप-बेटे को साथ बैठकर नशा करते हुए देखते है।क्या यह उचित है।जिस समाज में मद्य-माँस का सेवन वर्जित है,आज बड़े पैमाने पर इसका उपयोग हो रहा है।जाजम पर बाप-बेटे को साथ अफीम की मनुवार करते हुए पाते है। यह सब सभ्य समाज के लिए शोभाजनक नही है।मैं देखकर हतप्रभ हो जाता हूँ जब आज की युवा पीढ़ी आत्मानुशासन और मर्यादा से परे जीवन जीती है। आज की युवा पीढ़ी के लिए आत्मानुशासन और मर्यादाएं जैसे गुलामी की जंजीरे है। ये लोग अपने पुरखों के बतलाये रास्ते पर न चलकर जीवन को अपने ही अंदाज में जी रहे हैं।यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी तनावग्रस्त ज्यादा रहती है।आजकल बढ़ती आत्महत्याएं इसका प्रमाण है।समाज में बढ़ता अपराध सबकुछ बया कर रहा है। जिस समाज में प्रेम व आत्मिक स्नेह की निर्मल गंगा प्रवाहित हो रही थी,वही आज जहाँ-तहाँ देखे तो हम वह अमृतमयी प्रेमधारा विलुप्त होती नजर आ रही है। जिस समाज में “सीर” अर्थात सहयोग,समर्पण,सहकारिता और समरसता का खूबसूरत नजारा था,आज वह अस्ताचल की ओर जा रहा है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या हम आत्मानुशासन और मर्यादाओ से परे जीवन जीकर समाज को खड़ा करेंगे?क्या हम मूकदर्शक होकर पुरखों के द्वारा बनाये इस सुंदर सामाजिक ढांचे को नष्ट-विनष्ट होते हुए देखेंगे? क्या हम अपनी युवा पीढ़ी को नई राह दिखाने के लिए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?क्या हम अपनी समाज को बुलंदियों की ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए ईमानदारी से प्रयास नही कर सकते है?
हम सबको जीवन की खुशहाली के लिए ईमानदारी व दिल की सच्चाई से प्रयास करना ही होगा। जीवन में कोई समस्या ऐसी नही है जिसका समाधान नही है। हम यदि दिल की सच्चाई और पूर्ण ईमानदारी से समाज को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास करे तो सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा सकते है। हम सबको समाजहित में “अपना समाज,अपना गौरव” के मूल ध्येय को लेकर आम सहमति से एक सर्वमान्य विधान बनाने की दिशा में पहल करनी चाहिए। आज हम देखते है कि जैन व पुरोहित समाज ने इस दिशा में कदम उठाए हैं।उन्होंने समाज की युवा पीढ़ी को नैतिक मूल्यों से युक्त रखने के लिए अपने सामाजिक ढांचे में बदलाव किए हैं।हम लोगों को भी ऐसी ही पहल करनी होगी।समाज के धनाढ्य वर्ग को इस दिशा में बड़ा त्याग व अर्पण करना चाहिये।इस वर्ग को धन का अहंकार न कर सामाजिक ढांचे को खड़ा करने में अहम योगदान करना चाहिए।सामाजिक परम्पराओ, आदर्श मूल्यों और सामाजिक प्रतिमानों के साथ जीवन जीने की शैली को अपनाना चाहिए।समाज के विधान में कोई आम व खास नही होता है,सब एक समान हो।ऐसा प्रयास करना चाहिए।समाज में जिस तरह से रिश्ते टूट रहै है और भौतिकवादी मानसिकता सिर चढ़कर बोल रही है यह बड़ा चिंतनीय विषय है।
आज हम देखते है कि रिश्तो में जो माधुर्य व सौम्यता होनी चाहिए,वह नदारद ही है।बुजुर्गो और युवा पीढ़ी के बीच बढ़ती दूरियां (gap) एक सभ्य समाज के लिए शुभ नही हैं।
आइये,आप और हम सभी सीरवी समाज को सभ्य समाज के शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिस्थापित करने की दिशा में सकारात्मक व विशाल सहृदयता से चिंतन-मंथन करे।
हम तो सभी से निवेदन कर कहते है जी,
“जिस समाज में हम जन्मे है उसके लिए कुछ अच्छा करना है।
पुरखों के आदर्श प्रतिमानों और सद्कार्यों से समाज का नाम ऊँचा करना है।”
आप सभी महानुभावों को मेरा दिल से सादर अभिनंदन-वन्दन सा।🙏🙏
आपका अपना
हीराराम गेहलोत, सोनाई माँझी
प्रवक्ता-सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम” वेबसाइट
लाजवाब था पुरखों का आत्मानुशासन और मर्यादित जीवन।।
