संत पुरुषों ने कहा है – यदि एक साथ ही सूद और मूल धन लिया जाता है तो मूल धन से अधिक ब्याज नहीं लेना चाहिए। अनाज पेड़ों के फूल, ऊन और बैल घोड़े आदि कर्ज लेने पर उनके दाम के १/४ प्रतिशत से ज्यादा ब्याज नहीं लेना चाहिए। निश्चित ब्याज को दर से से अधिक ब्याज नहीं लेना चाहिए। अधिक ब्याज लेने की कुसीद भी कहते हैं। मेहनत मजूरी के रूप में ब्याज लेना(कायिक) और कष्ट देकर ब्याज बढ़ावा देना (कारिक)- ऐसा ब्याज न लेना चाहिए। लेकिन काल समय में वरिष्ठ ने धन बढ़ाने के निमित्त जितना ब्याज देने को कहा है ब्याज पर जीने वाला उतना ही ब्याज ले। वह भूखा न रहे। लोभ को पाप का बाप कहां गया है।