सीरवी चौहान शाखा का उदभव :–
चौहान – चन्द्रवरदाई, मुहणोत नैणसी तथा सूर्यमल मिश्रण ने इस वंश को अग्निवंश माना हैं | कर्नल टाड, वी. ए. स्मिथ ने अग्नि कुल से उत्पन्न सभी राजपूत वंशो को विदेशी बताया हैं | डा. देवदत रामकृष्ण भण्डारकर बीजोलिया केशिलालेख से पहले इसे ब्राह्मण वंशी मानता हैं, किन्तु कर्नल टाड को देखकर अपना मत बदलकर फिर विदेशी मानने लगता हैं | वास्तव में यह वंश विशुद्ध सूर्यवंशी हैं | चौहानों के द्वारा चलाये गये संस्कृत कंठाभरण विद्यापीठ अजमेर, जो बाद में मुसलमानों ने “अढाई दिन का झोंपड़ा” में परिवर्तित कर दिया था, के शिलालेख, सुंधा माता के शिलालेख, माउन्ट आबू के शिलालेख, बीजोलिया के शिलालेखों में चौहानों को वत्स गौत्रीय “सूर्यवंशी” होना लिखा हैं | महर्षि वत्स जो वैदिक युग में हुए, के वंशज चौहान हैं | महर्षि वत्स के वंश में चहंवाण, चाहमान, चायमान, चव्वहाण और धीरे धीरे चौहान कहलाये | (राजपूत वंशावली पृष्ठ १०५)