प्रेरक व् प्रेरित से महान बनती है प्रेरणा : एक ही परिवार की तीसरी पीढ़ी ने कराई नसबंदी

आश्चर्य हुआ होगा – यह क्या खबर है
बिलकुल आजकल ऐसी खबर आश्चर्य के रूप में देखि जाती है, क्यूंकि हमने अपने सामाजिक और वैचारिक मूल्यों को ताक पर रखकर स्वयमेव जयते के आगोश में रहना पसंद कर लिया है l
\”नसबंदी\” विगत दशको का अनुभव देखे तो यह शब्द एकबारगी किसी महामारी की तरह लगता है, लेकिन वर्तमान में इक्का दुक्का बार इस शब्द से परिचय का अवसर मिलता है, चिकित्सकीय प्रारूप में नसबंदी परिवार नियोजन हेतु स्त्री और पुरुष दोनों के लिए उपलब्ध है, स्वयं विशेषज्ञ मानते है की इसकी सफलता की दर पुरुषो में स्त्रीयों के मुकाबले अधिक रहती है, पूर्व में नसबंदी को शारीरिक दुर्बलता के साथ इसलिए जोड़ा गया था क्यूंकि स्त्री और पुरुष दोनों ही शारीरिक श्रम से जीवन यापन हेतु अर्जन करते थे l वर्तमान में जीवन स्तर की सुविधाओं के चलते रोजगार के साधनों पर शारीरिक श्रम की निर्भरता एक चौथाई हो गयी है l
आम तौर पर पुरुष नसबंदी करवाने से कतराते है, लेकिन चूँकि सभ्य समाज में परिवार नियोजन सक्षमता की निशानी है अत: समझदार परिवारों में आज भी इस हेतु कोई भ्रान्तिया नहीं है उदाहरण के तौर पर –
सीरवी समाज बिलाडा के दिग्गज परिवारों में शुमार भाकरानी (राठौड़) परिवार की तीसरी पीढ़ी के पुरुष ने नसबंदी करवाकर समूचे बिलाड़ा क्षेत्र के दशको पुराने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पुरुष नसबंदी का पहला मामला बन कर सुर्खिया बटोर रहा है, ऐसा इसलिए क्यूंकि परिवार नियोजन की सारी जिम्मेदारी पुरुष प्रधान समाज ने स्त्री पर लाद रखी है, किन्तु सामान्य जीवन और बिरले जीवन जीने वाले महापुरुषों में अंतर युही नहीं होता l बिलाड़ा के भाकरानी कृषि फ़ार्म पर निवास करने वाले 82 वर्षीय बुजुर्ग किशनलाल भाकरानी ने 1972 में स्वेच्छा से नसबंदी करवा कर अनुकरणीय उदाहरण स्थापित किया, यु तो मानने वाले मानते है की वह ज़माना आपातकाल का था और उस समय तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा समूचे देश में नसबंदी को आवश्यक दर्जा देकर लागू करवाया था, लेकिन किशनलाल भाकरानी परिवार ने इस मिथक को तोड़ा 2001 में जब उनके सुपुत्र चैनाराम भाकरानी जो पेशे से जीवन बीमा और कृषि का कार्य करते है ने स्वेच्छा से अपनी पत्नी को प्रेरणा मान कर नसबंदी करवाई, आज उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी किशन लाल भाकरानी के बड़े सुपुत्र शम्भू सिंह के पुत्र महेन्द्र सिंह ने स्वेच्छा से अपने परिवार की महान सोच को ध्यान में रखते हुए नसबंदी करवाकर इस बात को पुख्ता किया की देश की खुशहाली के लिए स्वयं से शुरू करने की आवश्यकता है, हर सरकार देश की बढती आबादी और कम होते संसाधनों के प्रति चिंतित रहती है, और परिवार नियोजन हेतु करोडो अरबो रुपीये प्रचार प्रसार में खर्च कर देश के नागरिको को प्रेरित करती है, किन्तु सरकार के लिए यह आग्रह की विषय वस्तु है जोर जबरदस्ती की नहीं – छोटा परिवार सुखी परिवार – कमोबेश हर गाँव चावक चौराहों गलियों की दीवारों पर रंगा पुता दिख जाता है, लेकिन एक महान प्रेरक ही प्रेरणा को जन्म देता है l
इस प्रमुख प्रेरणा की जनक है बिलाडा नगर पालिका क्षेत्र के वर्तमान वार्ड संख्या 5 के पतालियावास क्षेत्र में कार्यरत महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुमित्रा चौधरी जिन्होंने राजकीय मरुधर केसरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिलाडा में प्रथम पुरुष नसबंदी को प्रेरणा का स्त्रोत बनाया और प्रेरित महेन्द्र सीरवी ने अपने इस कदम को समाज और देश हित के लिए समर्पित किया l
यु तो सीरवी समाज मेहनतकश दृढनिश्चय वाली जाती है, किन्तु इतिहास में अपने ऐसे निर्णयों के कारण आज भी समूची जाती व्यवस्था में अपना आधार अस्तित्व निभाती है, प्रेरक सुमित्रा चौधरी द्वारा अब तक 200 महिलाओं की नसबंदी प्रेरणा स्वरूप करवाई गयी है, बिलाडा में पुरुष नसबंदी नहीं होने की वजह से उन्होंने स्वयं जैतारण व् सोजत के अस्पतालों में ले जाकर पुरुष नसबंदी करवाए है, वर्तमान में राजकीय मरुधर केसरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिलाडा के सर्जन डॉ. रविन्द्र सेवर ने प्रथम पुरुष नसबंदी का ऑपरेशन कर प्रेरक की प्रेरणा को नयी राह दिखाइ है l
आज समूचे बिलाडा में सीरवी समाज के इस परिवार और प्रेरक सुमित्रा चौधरी जो की एक सम्रद्ध किसान परिवार की बहु है को एक मील के पत्थर की तरह नवाजा जा रहा है, अनेकानेक प्रबुद्ध नागरिको ने इसे बिलाडा क्षेत्र के साथ साथ सीरवी समाज और मारवाड़ क्षेत्र के लिए अनुकरणीय प्रेरणा बताया l उनका मानना है की सीरवी समाज सदेव प्रेरणा के महानतम कार्यो की शुरुआत करने में आगे आती रही है, और यही से सामुदायिक व्यवस्था में अन्य समुदाय सदेव उनसे प्रेरणा लेते रहते है l
डॉ. रविन्द्र सेवर के अनुसार पुरुष नसबंदी एन एस वी बिना जटिलता के , बिना चीरा व् बिना टांका के लगभग दस से पंद्रह मिनट में की जा सकती है , नसबंदी के आधा घंटे के बाद आदमी अस्पताल से घर जा सकता है , यह सरल सुरक्षित दर्दरहित व् प्रभावशाली है l पुरुष नसबंदी में फेलियर की संभावना में 5 हजार में से एक की होती है जबकि महिला नसबंदी में यह संभावना 100 पर एक है l सरकार की तरफ से परिवार नियोजन के प्रोत्साहन हेतु पुरुष नसबंदी करवाने वाले को 2 हजार रुपीये एवं प्रेरक को 300 रुपीये प्रोत्साहन राशि दी जाती है l
प्रेरक सुमित्रा चौधरी का मानना है की प्रेरक का कार्य ही प्रोत्साहन देना है, कार्यक्षेत्र में प्रेरणा देना कभी कोई मुश्किल तथ्य नहीं रहता, इंसान स्वयम बहुत समझदार होता है किन्तु एक प्रेरक उसकी मनोभावना के पक्ष में जाकर उसके भविष्य से सम्बंधित प्रोत्साहन प्रदान करे तो व्यवस्था निर्माण में कोई कमी नहीं रह सकती, प्रत्येक लोकसेवक का कार्य आम जनता के लिए सुविधा क्षेत्रो का निर्माण करना और उन्हें सर्वजन हित हेतु लागू करना रहता है, कोई भी प्रेरक बन सकता है सिर्फ अपने कार्य के प्रति न्याय करने की मनोभावना को बल देना जरुरी है l

सूचना समाचार प्रेरित – दैनिक भास्कर बिलाडा संस्करण दिनांक 29/8/19                                          कॉपी बाय सीरवी समाज डॉट कॉम

 

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