जय माताजी री छा.
।.आज का विचार
संस्कारों का.!
हमें अपनी संस्कृती को बचानी है.।
जिस देश में राष्ट्ररक्षक,
धर्म संस्कृति रक्षक जब तक जीवित रहती है, तब तक देश व समाज अमर व जीवित रहेगा,।
सीरवी समाज के अपने रीतिरिवाज व परम्परा से प्रेणित है, । लेकिन आजकल के समय के अभाव से कु.-संस्कारों को फ़ैशन के रूप में स्विकारते है,।
फ़ैशन व समय के अभाव से अपने संस्कारों को ही बेच रहै हो, समाज की संस्कृति को ही बेच रहै है, । समाज के संस्कार व समाज धर्म के नियम भी छोड़ते जा रहे है, । बस आगे समाज का अतिंम संस्कार ही बाक़ी बच रहै है,। पुरा घर लुटा जा रहा है,। फिर भी हम नही जाग रहै है,। जब पुरा समाप्त हो जायगा फिर हम रोते रहेंगे.अब जल्द हमें जागना होगा .कुंभकर्ण की नींद से जागना होगा.व आँखों पर बंदी धन्न की पट्टी को उतारना होगा.हमारे पुर्वजो ने क्षत्रिय वंश का बलिदान किया, ओर पुर्वजो ने मॉं अँम्बे के रूप में श्री. आईमाताजी को स्विकारा व चर्णो शिश नवाया. मॉं श्री आईमाताजी के दुव्यारा बताए गए, कासोसूत, रे ग्याराह गाट, ग्याराह नियम बंधन हमारे पुर्वजो ने अपनाए व नियमों का पलन करते आ रहे है,। समय के आभास के चलते हमारे पुर्वजो ने दो अक्षर क्या पढ़ाए हमें. जो आज संस्कारों का ही व्यापार करने में लगए है, । अब हमें समाज को संस्कार,संघटन,शिक्षा, से एकत्र संघटित करना ही होगा.
हमारे शरीर में शौर्य का ख़ून है तब तक
मातृभूमि,मातृसंस्कृति के लिए एक मंच, एक समाज, एक संस्कारो का व्यापार छोड़ ना ही होगा.समाज के वीर भामाशाहो को व सत्वंशाली पुर्वजो को याद करके समाज के संस्कारों को बचाने की जरूत है,।
जय माताजी री छा.
आपका
राजाराम भायल पुना-नरसिहपुरा