आज भी अपोणो समाज पिछड़ियों क्यू हैं ? कि समझ में नी आवें ! आज सीरवी समाज दुसरी समाजो सूं पूजा पाठ, व्यापार-व्यवहार, खावण-पीवण बुद्धि हर तरह सू लारे नी है, पण तो भी सोचों तो लागे कि समाज दूसरी समाजों सू आज भी लारे है ! ओ क्यू लागे ? कदेई आप भी विचार करयों ? विचार करो तो सीधो तीर अपोणी समाज री कुरीतियों माते इज लागे । कुरीतियों तो केई प्रकार री है ! पण खास जड़ तो ए जीवता नाता है ! इण जीवता नाता वाली कुरीति रे कारण ही बाल विवाह होवे । अगर ऐ नाता नी रेवता तो मां बाप आपरी लड़की रो पेला इज होच हमझ और अच्छी तरह सूं परख ने रे बाद में ही सगपण करता । अगर ऐड़ो रेवतो तो आ नाता री नौबत नी आवती । आज री टेम में जको पंच पंचायतियां होवें, इण जीवता नाता जेड़ी कुरिति रे कारण ही होवें है।
आज सीरवी समाज पंचों रे बंधन में बन्धिजियोड़ो है। पंचों रो निवेड़ो ही समाज में चाले । अगर निवेड़ो नी रियोड़ो है तो भी पंच जको के दियों वो सही है। पंचों रो सामनो कुण करें । कोई भई हिम्मत करने सामने बोल भी देवे तो ओलबा रो हेलो कराये ने बिखर जावें । इण सूं तंग आयने वो भाई भी वापस समाज में आवण खातर पंच जो गुन्हागारी भाके जकों गुन्हागारी देयने समाज में शामिल होवुनी कोशिश करें । गुन्हागारी लेवणी गलत नी है पण हकनाक बेकसुर कनू गुन्हागारी लेवें वा गलत है। में पंच पंचायती रे खिलाफ नी हूं । पण झुठी पक्षपात री पंचायति में ज्यादातर जेब भरणिया और पक्षपात वाली चंडाल चौकड़ी ही देखण मिले है । न्याय री बात करणियां भाई तो जुतोवाली जागा माते ही बैठा मिले है।
तो हां में बात करतों हो जीवता नाता री आ कुरिति जब तक अपोणो समाज लेने हाली । जट तक इण समाज में सुधार आवतो नी दिखे । आज हर परिवार में जीवता नाता रो चेड़ो लागोड़ो है । समाज जिण टेम तक आगे नी बढ सकेला । जब तक छोड़ा मेलो और पंच पंचायतियां नी मिटेला । तीस चालीस बरस पेला पंच छोड़ा मेला री फीस खाली 101/- रुपये लेवता । बाद में 501/- उणा बाद 1001/- फिर 11000/- फिर 51000/- फिर 100000/- और आगे तो आ फीस मिनखपणा री सीमा पार करने पांच लाख तक रेगी । बापड़ा गरीबों ने तो आ फीस सुणने बाका फाटा रा इज रे जावे । जट तक ओ धड़ो यू ही चालतो रेई । अपोणो समाज यू ही खाड़ा में पड़यों जाई । इण कुरिति रे कारण समाज में अच्छा खान दान भी इण झपेटा में आवण लागा है । जको घर इण छोड़ा मेला रा चक्कर में पड़यों वो घर तो पइसा सू साफ रेगो ।
छोड़ा मेला रे बाद अच्छा खानदान भी बिगड़ैल परिवारों रे साथ रिश्ता जोड़न वास्ते मजबुर रे जावें क्यूकि बेटी रे छोड़ा मेला में पैसा सूं धुप जावें । इनी भरपाई वो बेटी ने बेच ने पुरी करें । छोड़ा मेला रे बाद गनायत भी ऐड़ा इज मिलें । इण पैसा रा लेन देन वाला रिश्ता में कदेई शान्ति नी रें सकें । क्योंकि पैसा कभी शान्त रही रह सकता पैसा रे कारण बाद में लड़िजता रेवे और पाछी पंच पंचायतियां यूं इज चालती रेवे और पचड़ा में बापड़ी बेकसुर लड़की पिसीजती रेवे । तीन चार जागा बेटी ने पनावणो ही बाप रो धर्म है कांई ? कदेई विचार तो करों ।
आजकल ज्यादा किस्सा इणी कुरिति रे कारण रेंहवे । आज इण कुरिति रे कारण ही पचास बरस रो बूढो पच्चीस बरस री लड़की सू नातो करने लावे । इण छोड़ा मेला री कुरिति रे कारण ऐड़ी कितरी मासूम लड़कियों री जिन्दगी बरबाद रेवे । कदेई इण कुंआ रे मायने उड़ो जांक ने देखों ए समाज रा लोगों की इण कुंआ में किती बहनों आपने ‘बचावो-बचावो’ री आवाज लगाय री है । उनोनें घुट घुट ने मरने रे वास्ते छोड़ देवणो कटा तक शोभा देवे । में समाज रा हेतालु भाईयों बहनों व माताओं ने ओइज लिखणी चावु कि अपौ और कितराक दिनों तोई देखता रेवों इन गन्दी हरकतो ने । अपोणो समाज इन टेम कीचड़ में पड़ियोड़ो है । इण कीचड़ सूं बारे कीकर आविजेला वा तो आवण वाली टेम ही बताय ।
अबे अपोने जागणो है । ओरु कितराक दिन इण कुम्भकरण की नीन्द में हुता रेवो । घरका गमाय ने युं कीकर गेला बाजण ढुका हो । पण ओ दर्द तो वोइज जाणे जिने ओ घाव रियोड़ो है । म्हारा साथी रा साथ में भी आ परेशानी आई और मो उण परेशानी रो सामनो भी करयों, पण मोरो सामनो की कोम नी आयो । आखिर मौने हार मोननी पड़ी । ऐकलो चणो भाड़ नी फोड़ सके क्योंकि इण डाकण रो झाड़ो में अकेलों नी दे सकूं । आ डाकण मारे एकला सूं ताबा में नही आवे । म्हारों साथ इण पूरा समाज ने देवणो पड़ी । जणेइज ओ चेड़ों मिटी ।
म्हारा साथी रे साथ में जको मार्मिक घटना घटी, घटी वा मने झकझोर ने रख दियो । घर में सोवु तो भी म्हारो दोस्त री वा दुख भरी कहानी ही दिमाग में घुमें । म्हारों मन उदास रेगो । उन दिन मनें बराबर नींद ई कोनी आई । थोड़िक आंख मिली तो सपनों भी आवे तो उनमें में एक कविता लिखणी चालु कर दी, सपने में अन्धाधुन्ध बकणो चालू कर दियो – वो नीचे हाजर है :-
“मन चाले की बहनों ने सतावणियों रो कत्ल कर दूं ।
सरेआम गधे रे माते बैठाय ने बंदोली काड दूं ।।
एड़ा मिनख निजर नी आवें अपोणी समाज में ।
जो अपणा दुर्गण परोसे दूजोरी थाली में ।।
जी चावे कि दूजो ने बिगाड़न वालों ने गोली सू उड़ाय दूं ।
रंगे हाथों पकड़ ने कांच पिघाल ने मुडा में डाल दूं ।
झुठी पक्षपात री पंचायती करणीयां,
अमलेड़ो री ओखियों फोड़ दूं ।
समाज री भलाई ने खुंटी में टोकणियों,
थोने सूली माते चढ़ाय दूं ।
एड़ो टीको बणाय ने लगाऊं की आगे कोई गंदगी न पापे ।
देउ ऐड़ो सबक की सगली ओणी अमीरी भुलाय दूं ।।
बहनो ने सतावणियों ने लुट र भिखारी बणाय दूं ।
तोड़ के इणरी तिकड़मबाजी ने ओणी औकात बताय दूं ।
शेर री खाल पहनियोड़ा इण बर्बर भेड़ियों ने ।
थोड़ो सो शेर रो अहसास झटका में कराय दूं ।
म्हारे जीवन री हर सांस में मानव पे कुर्बान कर दूं ।
म्हारे शरीर रा टुकड़ा टुकड़ा ने ज्यौछावर कर दूं ।
थोड़ो भी नी हिचकुंला मानवता रे गेला में ।
तुरन्त प्राण तक भी दे दूला हंसतो हंसतो इण गेला में ।
म्हारी प्रार्थना स्वीकार करों श्री आईमाता ।
करदो विनाश इण षड्यन्त्रकारियों का पल में ।
थोड़ा क दिनों री मोहलात G.R.P. आपने भी देउ हूं ।
वरना और नी रुकला इण आदमखोरों रा वध में ।।”
इतराक में म्हारे घर कने हड़माने जी रो मन्दिर आयोड़ो है। मन्दिर में पुजारी प्रभातियों टंकारों बजायो तो म्हारी नींद उड़गी । आंख खुलगी, नही तो ओरु कांई कांई बकतो ने कटेक रुकतो किने मालुम………
प्रस्तुति – मोहनलालजी राठौड