
सीरवी जाति में कृष्ण भक्तों का प्रमुख त्यौहार देवझुलनी एकादशी है । इस दिन जगह-जगह मेले भरते हैं । अन्य गांवों की तरह भावी ग्राम में इस दिन बड़ा मेला भरता है । यह मेला साय: 4:00 से भरने लगता है । वैसे प्रातः काल से ही गांव में हर्ष उल्लास का माहौल रहता है । बालक व पुरुष तालाब में नहाते हैं । साय: 4:00 बजे बैंड की सुरीली आवाज में ढोल ढमाकों के साथ तथा जय जयकार के साथ आगलेचा मंदिर से मेला प्रारंभ होता है । पुरुष अपने कंधों पर देवसिंहासन (रेवाड़ी) को रखकर चलते हैं । इनमें श्रीकृष्ण विराजमान रहते हैं । यहां से चलकर पितावतों के मंदिर से एक रेवाड़ी और शामिल होती हैं तथा देवरा के चौंक में पहुंचते हैं । यहां से दो रेवाड़ी शामिल होती हैं । मेले में आगे-आगे झांकियां (शोभायात्रा) चलती है जो सजी-धजी होती है । इनके पीछे बैंड व उनके पीछे रेवाड़ीयों को भक्तगण कृष्ण कन्हैया के भजन गाते हुए, नाचते हुए तथा जय जयकार करते हुए भक्तगण चलते हैं। यहाँ से चलते हुए ये तालाब पर पहुंचते हैं । यह मेला मुख्य रूप से पुराने शिव मंदिर के पास तालाब पर भरता है जहां गांव के सभी स्त्री-पुरुष बालक-बालिकाएं तथा निकटवर्ती क्षेत्रों के लोग भी एकत्रित होते हैं। तालाब मे भगवान को नहलाया जाता है तथा वहां पुजा-अर्चना करके पुन: मंदिर की ओर लौटते हैं । इस दिन लोग देव सिंहासन (रेवाड़ी) के नीचे से निकलते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके नीचे से निकलने पर सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । मंदिर पर पहुंचने पर पुनः पूजा अर्चना की जाती है । लोग ककड़ी, मतीरा, फल, बाजरे की कलगी (बाजरे की सीटी) भगवान को चढ़ाते हैं । सभी लोग मंदिर से चरणामृत व प्रसाद ग्रहण करके अपने अपने घरों की ओर लौटते हैं । शाम को रात्रि जागरण (सत्संग) का आयोजन किया जाता है ।
इस प्रकार यह पर्व प्रतिवर्ष मेले के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।
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