”आत्म बलिदान एक अदभुत घटना बडेर चौक बिलाड़ा”
तपस्वी दीवान रोहितदासजी आई माताजी के परम भक्त थे। आई माताजी की भक्ति में सदा लीन रहते थे। बेरा रनिया बिलाड़ा में नीचे धूनी में 12 वर्ष घोर तपस्या की । आपकी तपस्या साधना से आई माता जी ने प्रसन्न होकर कई बार अपने भक्त को प्रत्यक्ष दर्शन दिए और मनवांछित वचन सिद्धि का वरदान दिया । आप अपने वचन सिद्धि से भक्तों के कष्ट निवारण करते, अंधविश्वास, कुरीतियां, पाखंड मिटाते। यह सारी प्रक्रिया देख कुछ इष्यालू लोगों ने जोधपुर दरबार के कान भरे। जोधपुर दरबार ने तपस्वी दीवान साहब को जोधपुर बुलाकर जेल में बंद करवा दिया । जेल में हाथों पांवों की बेड़ियां बनवाई वो भी छोटी पड़ गई। जब बेड़िया बड़ी बनवाई गई तो हाथ पांव पतले बन गये जब दीवान रोहितदासजी को जोधपुर बुलाया गया तो पीछे बिलाड़ा के बड़े चोक में सरकारी हुकूमत के दरवाजे के पास ही सीरवीयों ने आत्मबलिदान करना शुरू कर दिया। इस प्रकार 149 सीरवी तथा 1 राव देखते ही देखते आत्मबलिदान कर चुके थे। यह देख हाकिम घबराया और सीरवीयों को रोहितदासजी की सौगंध दिलाकर जोधपुर भाग कर गये और दरबार में सारी स्थिति का वृतांत सुनाया तो दरबार ने बड़ा पश्चाताप किया और अपनी भूल महसूस की। इस प्रकार का आत्मबलिदान पूरे विश्व के इतिहास में एक अद्भुत घटना थी। आज तक किसी धर्म या देश में ऐसी घटना नहीं हुई। इस घटना ने जोधपुर दरबार के रोंगटे खड़े कर दिए तथा उन्हें एक फरमान जारी कर तांबा पत्र निकालना पड़ा कि उनके वंशज तथा उनके अधीन कोई भी जागीरदार बिलाड़ा दीवान की गद्दी पर बैठने वाले को अपने यहां कोई नहीं बुला सकेगा। इस आत्मबलिदान स्थान पर जो पुरानी कचहरी (हवाला) के पास एक कोने में बलिदान स्थल हैं उस पर एक बड़ा ऊंचा चबूतरा बना हुआ था जिसे हटाकर दिनांक 12.1.68 को सीरवी समाज ने तत्कालीन कोटवाल करनारामजी हाम्बड़ व प्रतिष्ठित पंचो की देखरेख में एक सुंदर सभा भवन का निर्माण करवाया। जब चबूतरे को हटाया जा रहा था और खुदाई हो रही थी तब उसके नीचे भारी मात्रा में मानव अस्थियाँ तथा विचित्र बात यह थी कि आज के आदमी के मुकाबले जो अस्थियाँ मिली वह बड़ी थी । शायद उस समय का आदमी आज के व्यक्ति से ज्यादा मजबूत व बड़ा होता हो ऐसा महसूस होता है । यह स्थान आज सीरवी सभा भवन के नाम से है।आत्मबलिदान की यह घटना और किसी भी धर्म या स्थान पर हुई हो ऐसा इतिहास में कहीं उल्लेख नहीं है। आई पंथ में यह एक विशेष महत्व की बात है । यह धर्म और समाज के लिए गौरव की बात है । इन शहीदों के आत्म बलिदान की स्मृति में सीरवी नवयुक मंडल बिलाड़ा ने शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरुप बडेर चौक के बीच एक चबूतरा बना हुआ था (“जिसे रावजी का चबूतरा कहते थे”) के ऊपर हुतात्मा स्मारक बडेर चौक के बीच में विक्रम संवत् 1947 चेत्र वद 13 दिनांक 14.3.91 को बनवाकर वर्तमान दीवान माधव सिंह जी तथा सीरवी समाज के इतिहासकार शिवसिंहजी मल्लाजी चोयल भावी के कर कमलों द्वारा करवाया गया । पूर्व में इस सभा भवन का उपयोग सीरवी समाज की पंच पंचायती के लिए काम में लिया जाता था परंतु पाया कि जैसे ही पंचायती की बात शुरू होती वहां मौजूद सब लोगों में जोश का इस प्रकार संचार होता था कि आपस में ही झूझने लगते, गजब का जोश आ जाता। आपस में ही लड़ने लगते । 2-3 वर्ष कोशिश की पर एक भी पंचायती का फैसला नहीं हो सका । तब किसी ने बताया कि ये स्थान आज भी उन अमर बलिदानियों की आत्मा से जागृत हैं यहां जोश की बात हो सकती है शांति कि नहीं । इसके बाद पंचायती करनी यहां बंद की । शहीदों की आत्माएं, जैसा पुराणों में आता है, जागृत रहती है आज भी 400 वर्ष के बाद यह स्थान जागृत हैं ।
लेखक: प्रभुलाल लखावत (पुर्व मैनजर) जोधपुर केन्द्रीय सहकारी बैंक लि. एवं लालुराम मुलेवा – पुर्व अध्यापक शिक्षा विभाग राजस्थान सरकार यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए पुस्तक – युगपरुष दीवान रोहितदासजी {पुस्तक में पढ़े पेज दृश्य न:२२}